चोरी छिपे तंग करने वाली मुकदमेबाजी (निवारण) विधेयक पारित करा ले गई शिवराज सरकार

भोपाल। विधानसभा की कार्रवाई को अपने रिमोट पर रखने में शिवराज सरकार सिद्धहस्त हो गई है। कांग्रेस शोर मचाती रह जाती है और सरकार अपने एजेंडे पर काम करके भाग जाती है। इस बार भी ऐसा ही हुआ। व्यापमं का शोर मचता रहा और सरकार चुपके से आई, तंग करने वाली मुकदमेबाजी (निवारण) विधेयक 2015 पारित कराकर ले गई।

इस विधेयक के लाए जाने की सूचना सरकार की ओर से विधानसभा सचिवालय को आनन-फानन में भेजी गई। इस विधेयक का पूर्व में जमकर विरोध होता रहा है, इसे लोकतंत्र की मूलभावना के खिलाफ बताया गया था परंतु सदन में इसे लेकर कोई चर्चा ही नहीं हुई। सरकार ने विधेयक पास किया, बहुमत उसके पास था। इसलिए पारित किया और खेल खतम।

क्या है तंग करने वाली मुकदमेबाजी (निवारण) विधेयक 2015
मंत्री, विधायक एवं अधिकारियों के खिलाफ लगातार न्यायालयों में लगाई जा रहीं याचिकाओें के बीच मध्यप्रदेश सरकार ने प्रदेश में एक नया कानून बनाया है। इस कानून के अनुसार यदि कोई व्यक्ति लगातार विभिन्न मामलों में कोर्ट में याचिका लगाता रहता है और उससे सरकार, मंत्री, विधायक या अधिकारी परेशान होते हैं, तो ऐसी याचिकाओं पर राज्य के एडव्होकेट जनरल उच्च न्यायालय को उस प्रकरण में राय देंगे कि वह याचिका परेशान करने के नीयत से लगाई गई, इसलिए उस पर सुनवाई नहीं की जाए।

आरटीआई कार्यकर्ताओं ने किया था विरोध
सरकार द्वारा बनाए गए इस कानून का विरोध कांग्रेस सहित प्रदेश के आर.टी.आई. कार्यकर्ताओं ने भी किया था। इस तरह के कानून बनाए जाने की भनक लगते ही पहले ही दिन से इसका विरोध शुरू हो गया था। सूचना के अधिकार पर कार्यरत प्रयत्न संस्था के अजय दुबे ने कहा था कि, ‘‘यदि यह पारित हो जाए, तो प्रदेश के लिए काला कानून होगा। विरोध स्वरूप उन्होंने विधेयक को विधानसभा के बाहर जलाया भी था।

इस विधेयक पर मध्यप्रदेश बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष रामेश्वर नीखरा ने कहा था कि यह संविधान की भावनाओं के विपरीत है। सरकार स्वयं दूसरे के खिलाफ मुकदमा करती है और अपने बचाव के लिए ऐसा कानून बनाकर आड़ चाहती है। उच्च न्यायालय तो स्वयं परेशान करने वाले मुकदमों पर जुर्माना लगाता है, फिर इसकी क्या जरूरत है।

पूर्व महाधिवक्ता विवेक तन्खा का कहना था कि किसी को न्याय पाने के लिए याचिका लगाने के अधिकार पर अंकुश लगाने का अधिकार किसी सरकार को नहीं है।

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