एसोचैम ने खोली शिवराज की पोल: शिक्षा और स्वास्थ्य में फिसड्डी अवार्ड

भोपाल। मप्र की शिवराज सरकार उद्योगों के नाम पर विकास के दावे कर रही है वहीं दूसरी देश के प्रमुख उद्योग मंडल द एसोसिएशन चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्टीज ऑफ इडिया (एसोचैम) ने  आज  'सुशासन' वाले मध्यप्रदेश की सरकार के दावों को एक झटके में धो दिया। एसोचैम कहा कि इस राज्य की शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाएं अन्य राज्यों के मुकाबले खस्ता हाल है। अपनी रिपोर्ट में उसने मप्र की पूरी कलई ही खोलकर रख दी और प्रमाणित कर दिया कि मप्र में सिर्फ चुनिंदा सेक्टर्स में ही विकास हुआ है। बाकी में तो खाली ढोल पीटा जा रहा है। एसोचैम ने शिवराजसिंह चौहान सरकार को समानतापूर्ण विकास और सामाजिक सशक्तीकरण के लिए सार्थक कदम उठाने की सलाह दी है।

एसोचैम द्वारा 'स्टेट्स इमर्जेन्स कॉम्पेरेटिव एनालीसिस ऑफ ग्रोथ एंड डेवलपमेंट' विषय पर कराए गए एक ताजा अध्ययन के अनुसार, शिक्षा तथा स्वास्थ्य सेवाओं के विकास के मामले में मध्यप्रदेश देश के 20 प्रमुख औद्योगिक राज्यों में फिसड्डी साबित हुआ है।

इस राज्य में शिशु मृत्युदर 54 प्रति हजार है और हाल के वर्ष (2007-08 से 2013-14) में स्कूलों में विद्यार्थियों के नामांकन (एनरोलमेंट) के मामले में भी इस प्रदेश ने करीब एक प्रतिशत की ऋणात्मक साल दर साल विकास दर (सीएजीआर) दर्ज की है। एसोचैम के आर्थिक अनुसंधान ब्यूरो (एईआरबी) द्वारा कराए गए अध्ययन के मुताबिक, स्कूलों की संख्या में बढ़ोतरी के मामले में वर्ष 2007-08 से 2013-14 के दौरान राज्य ने 1.7 प्रतिशत की सीएजीआर हासिल की। इस तरह यह राज्य 20 प्रमुख औद्योगिक राज्यों में 11वें स्थान पर है।

एईआरबी के अनुसार, मध्यप्रदेश अपने साथी राज्यों उत्तर प्रदेश (3.6 प्रतिशत), राजस्थान (2.5 प्रतिशत) तथा बिहार (2 प्रतिशत) से भी पीछे है। विद्यालयों की संख्या में वृद्धि के लिहाज से पंजाब 6.5 प्रतिशत सीएजीआर के साथ इस सूची में शीर्ष पर है। उसके बाद केरल (5.4 प्रतिशत) और जम्मू कश्मीर (5.3 प्रतिशत) की बारी आती है। इसी अवधि में पूरे देश में स्कूलों की संख्या में 2.5 प्रतिशत सीएजीआर के हिसाब से बढ़ोतरी हुई।

रिपोर्ट में कहा गया है कि स्कूलों में विद्यार्थियों के नामांकन के मामले में मध्यप्रदेश 20 में से 19वीं पायदान पर है। वह केवल हिमाचल प्रदेश से ही आगे है, जिसकी इस मामले में सीएजीआर शून्य से नीचे यानी 1.9 प्रतिशत रही है। ताजा अध्ययन के अनुसार, साल 2007-08 से 2013-14 के बीच विद्यार्थी नामांकन में वृद्घि के मामले में पंजाब करीब प्रतिशत सीएजीआर के साथ अव्वल रहा है। उसके बाद हरियाणा (पांच प्रतिशत) दूसरे और गुजरात (तीन फीसद) तीसरे स्थान पर रहा।

इस तस्वीर का निराशाजनक पहलू यह है कि राष्ट्रीय स्तर पर इसी अवधि में स्कूलों में विद्यार्थी नामांकन में मात्र एक प्रतिशत की ही वृद्धि हुई। विद्यार्थी शिक्षक अनुपात के मामले में भी मध्यप्रदेश काफी पिछड़ा है। इस मामले में वह देश के 20 प्रमुख राज्यों में से 16वीं पायदान पर है। हालांकि इस मामले में मध्यप्रदेश का प्रदर्शन पहले से थोड़ा बेहतर हुआ है। वर्ष 2007-08 में जहां एक शिक्षक पर औसतन 36 विद्यार्थी थे, वहीं यह साल 2013-14 में घटकर प्रति शिक्षक 29 विद्यार्थी हो गया है। ताजा रिपोर्ट बताती है कि मध्य प्रदेश में केवल 13 प्रतिशत विद्यालयों में कम्प्यूटर की सुविधा है। इस लिहाज से यह राज्य देश के 20 प्रमुख औद्योगिक राज्यों में 13वीं पायदान पर है।

देश में वर्ष 2013-14 में करीब 2.3 प्रतिशत स्कूल कम्प्यूटर सुविधा से युक्त थे, जबकि साल 2007-08 में ऐसे केवल 14 फीसद स्कूल ही थे। एसोचैम के राष्ट्रीय महासचिव डी़ एस़ रावत ने कहा "परिणामपरक ग्रामीण शिक्षा नीति बनाई जानी चाहिए। इसका उद्देश्य शिक्षण संस्थाओं तथा शिक्षकों का वित्तपोषण होना चाहिए।  एसोचैम की रिपोर्ट में मध्यप्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं पर भी सवाल उठाया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, शिशु मृत्युदर के मामले में राज्य की स्थिति बेहद खराब है। प्रति हजार 54 की दर के साथ यह राज्य सबसे निचली पायदान पर है। इस मामले में केरल (प्रति हजार 12) शीर्ष पर है, जबकि तमिलनाडु (प्रति हजार 21) दूसरे तथा महाराष्ट्र (प्रति हजार 24) तीसरे स्थान पर है। भारत में शिशु मृत्युदर प्रति हजार 40 है।

एसोचैम के अध्ययन के मुताबिक, 20 में से 12 प्रदेश ऐसे हैं जहां शिशु मृत्युदर राष्ट्रीय औसत से कम है। वहीं आठ राज्यों का औसत इससे ज्यादा है। जीएसडीपी के प्रतिशत के मामले में स्वास्थ्य क्षेत्र पर खर्च करने के लिहाज से मध्यप्रदेश 10वें स्थान पर है। यह दिलचस्प है कि इस मद पर राज्य सरकार द्वारा किए जाने वाले खर्च में कमी आई है। वर्ष 2007-08 में यह राज्य स्वास्थ्य सेवाओं पर अपने कुल जीएसडीपी का 1.6 प्रतिशत हिस्सा खर्च करता था। वहीं 2013-14 में यह खर्च घटकर 1.5 फीसदी रह गया है।

एसोचैम ने प्रचार में सबसे आगे रहने वाली शिवराज सरकार को सुझाव दिया है कि "स्वास्थ्य सेवाओं के मूलभूत संकेतकों की निशानदेही को बेहतर करने के लिए इन सेवाओं के मूलभूत ढांचे तथा सुपुर्दगी प्रणाली को बेहतर बनाने, श्रमशक्ति का समुचित प्रावधान करने, पर्याप्त उपकरण तथा दवाएं उपलब्ध कराने तथा अंतर-क्षेत्र समन्वय को बेहतर बनाने की सख्त जरूरत है।"

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