जन स्वास्थ्य तो दूर की कौड़ी

राकेश दुबे@प्रतिदिन। पता नहीं भारत में वो दिन कब आयेंगे, जब आलोचना के स्थान पर कुछ ठोस काम भी होगा| सरकार समर्थक एक तबका है, जो कोई भी सरकार हो उसके साथ होता है| ऐसे लोग बगैर सोचे समझे मान ही नहीं लेते, कह भी देते है| “ कभी पॉजिटिव भी लिखे”| उन मित्र से आग्रह थोडा सच के साथ भी रहे सरकार को समझाने की यह कोशिश, देश के सामने सत्य प्रगट करने से ज्यादा कुछ नही है| जन स्वास्थ्य के दुःख में सभी सरकारें दुबली हुई है, और अफसर मोटे| हकीकत यह है की डाक्टर ही पूरे नहीं है तो अस्पताल और दवाई तो दूर की कौड़ी है|

सवा अरब की आबादी वाले हमारे देश में करीब दस लाख ही डॉक्टर उपलब्ध है, अभी देश को करीब 14 लाख और डॉक्टरों की जरूरत है। इन दस लाख पंजीकृत डॉक्टरों में से भी काम करने वाले डॉक्टरों की संख्या केवल साढ़े छह लाख ही बचती है। इस लिहाज से देखें तो करीब 1217 लोगों पर एक डॉक्टर। इतना ही नहीं, बुरी बात तो यह है कि इन काम करने वालों डॉक्टरों में भी अधिकांश शहरों या उसके आसपास ही तैनात हैं। दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों और आदिवासी अंचल में तो दूर-दूर तक कोई डॉक्टर नहीं होता। 

अनुमान है कि ग्रामीण क्षेत्रों में करीब 12500 लोगों पर एक डॉक्टर मिल पाता है। कई जगह तो गाँव वालों को डॉक्टर को दिखाने के लिए 50 से 100 किमी तक का सफर तय कर जिले या तहसील के अस्पतालों में जाना पड़ता है। सरकारी अस्पतालों में हर दिन ऐसे हजारों मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं लेकिन ज्यादातर को इलाज की जगह निराशा ही हाथ लगती है। वजह डॉक्टरों की कमी। 

नियमों के मुताबिक हर जिला स्तरीय अस्पताल में सभी रोगों के इलाज के लिए डॉक्टर होना चाहिए लेकिन शायद ही कोई ऐसा अस्पताल होगा जिसमें जरूरत के मुताबिक डॉक्टरों की पर्याप्त तैनाती हो। ऐसे में मरीजों की परेशानी का अंदाजा लगाया जा सकता है। 

गांवों में सरकारी डॉक्टरों की कमी की वजह से ग्रामीण क्षेत्रों में झोलाछाप डॉक्टरों की भी चाँदी हो गई है। इन्हें न तो कोई प्रशिक्षण मिला होता है और न ही कोई डिग्री। ये लोग धंधे की तरह इसे डील करते हैं और मरीजों की जान के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। कई बार इनके इलाज से मरीजों की मौत और बीमारी बढ़ जाने की खबरें भी आती रहती है, फिर भी इन पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं होने से ये अपना धंधा बदस्तूर चला रहे हैं। गाँव वालों की मजबूरी होती है। 

सरकार ने संसद में माना है कि देशभर में 14 लाख डॉक्टरों की कमी है। राज्यसभा में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री जेपी नड्डा ने बताया था कि देश के अस्पतालों में 14 लाख डॉक्टरों की कमी है जबकि हर साल करीब 5500 डॉक्टर ही मेडिकल कॉलेजों से तैयार हो पाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक डॉक्टर-मरीज का अनुपात मानक एक हजार तय है यानी 1000 लोगों पर एक डॉक्टर लेकिन हमारे यहां यह अनुपात बेमानी है, भारत में यह अनुपात बहुत कम है। उसमें भी ग्रामीण क्षेत्र में तो यह आंकड़ा और भी कम हो जाता है। 

श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com


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