भोपाल। एक तरफ मप्र के सारे बड़े प्रोजेक्ट PPP मोड पर चल रहे हैं, सरकार की चवन्नी भी खर्च नहीं हो रही, दूसरी तरफ डवलपमेंट के नाम पर सरकार ने बाजार 1000 करोड़ का कर्जा उठा लिया। इसके साथ ही मप्र पर कर्जे की रकम 1 लाख करोड़ को पार कर गई। इसे आप मप्र की आर्थिक बदहाली की शुरूआत कह सकते हैं।
अभी नया वित्तीय वर्ष शुरू ही हुआ हे और सरकार ने प्रोजेक्ट डेवलपमेंट के नाम पर कर्ज ले लिया। प्रदेश में अधिकतर बड़े-बड़े प्रोजेक्टों के काम पीपीपी, बीओटी और एन्यूटी जैसे मोड पर चल रहे हैं। इनमें सरकार का पैसा नहीं लगता है। इसके बावजूद सरकार को कर्ज की जरूरत पड़ रही है।
पिछले वित्तीय वर्ष 2014-15 के समाप्त होने से 20 दिन पहले राज्य सरकार को अपने जरूरी खर्च चलाने बाजार से 1200 करोड़ का कर्ज लिया था। इतना ही नहीं पिछली बार वित्तीय स्थिति संभालने के लिए सरकार ने 15 जनवरी से सभी विभागों में खरीदी पर रोक लगाई थी, लेकिन इसके बावजूद सरकार को जनवरी, फरवरी और मार्च में ही 3200 करोड़ का कर्ज बाजार से लेना पड़ा।
वित्त विभाग के अधिकारियों का कहना है कि उनके द्वारा पूंजीगत निवेश यानी सड़क, पूल और पुलिया जैसे इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए कर्ज लिया जा रहा है। इससे प्रदेश की एसेट्स यानी संपत्ति तैयार होने पर सरकार को टैक्स के रूप में पैसा रिटर्न मिलता है। वित्त विभाग के एक अधिकारी ने यह भी कहा कि प्रदेश की जीएसडीपी 6 लाख करोड़ है, इसके हिसाब से राज्य सरकार 3 प्रतिशत तक एफआरबीएम (राजकोषीय घाटे) का 18 हजार करोड रुपए तक इस वित्तीय वर्ष में कर्ज ले सकती है।
कर्ज एक लाख करोड़ पार
हर वर्ष बाजार से कर्ज उठाने के चलते राज्य सरकार का कर्ज एक लाख करोड़ से ऊपर हो गया है। आज की तारीख पर राज्य सरकार पर 107263.64 लाख करोड़ का कर्ज हो गया है, जो पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में 1000 करोड़ अधिक है।
हर साल बढ़ रहा कर्ज
प्रदेश में हर साल हजारों करोड़ का कर्ज बढ़ रहा है। वर्ष 2011-12 में 71478.10, वर्ष 2012-13 में 77413.87, वर्ष 2013-14 में 96163.64, वर्ष 2014- 15 में 106263.64 और वित्तीय वर्ष 2015-16 में 12 जून तक 107263.64 लाख करोड़ का कर्ज हो गया है।