राकेश दुबे@प्रतिदिन। भारत के खेल इतिहास की सबसे दुखद दुर्घटना है यह ,केरल के एक खेल होस्टल में चार किशोरियों की आत्महत्या की कोशिश और उनमें से 15 साल की एक लड़की की मौत और बाकी तीन अस्पताल में हैं। ये लड़कियां प्रतिभावान और होनहार खिलाड़ी थीं, जिन्हें अपनी प्रतिभा को निखारने के लिए चुना गया था। कहा जा रहा है कि होस्टल के अधिकारियों व वरिष्ठ खिलाड़ियों के उत्पीड़न से तंग आकर उन्होंने यह कदम उठाया। होस्टल की वार्डन का यह कहना है कि कुछ दिनों पहले इन लड़कियों को उन्होंने शराब पीते हुए पकड़ लिया था और ग्लानि या सजा के डर से इन्होंने आत्महत्या की।
जो भी हो, यह साफ है कि ये लड़कियां होस्टल में उत्पीड़ित और भावनात्मक रूप से असुरक्षित महसूस कर रही थीं और इसके लिए होस्टल के प्रबंधन पर सवाल तो उठते हैं। भारतीय खेल प्राधिकरण के खाते में कई उपलब्धियां हैं और युवा खिलाड़ियों को चुनकर होस्टल में रखने की योजना से कई अच्छे खिलाड़ी सामने आए हैं। कई नामी खिलाड़ियों ने अपनी खेल प्रतिभा को प्राधिकरण के होस्टलों में रहकर ही निखारा है, मगर प्राधिकरण सरकारी ढर्रे पर ही चलता है और अक्सर उसकी किसी योजना की कामयाबी किसी एक अधिकारी की नेकनीयत और समर्पण पर निर्भर होती है। उसकी कई अच्छी योजनाएं नौकरशाही व लालफीताशाही के षड्यंत्रों में खत्म हो गईं। इनमें से एक योजना ग्रामीण या आदिवासी इलाकों के विशेष कौशल को ध्यान में रखते हुए खिलाड़ियों को चुनना था और इसके अच्छे नतीजे आ रहे थे, लेकिन इसे ठीक से आगे नहीं बढ़ाया गया।
खेल प्राधिकरण के होस्टलों में रहने वाले ज्यादातर छात्र निम्न या निम्न मध्यवर्गीय परिवारों और ग्रामीण या आदिवासी इलाकों के होते हैं। ऐसे में, अक्सर होस्टलों में उनके साथ अपमानजनक व्यवहार होता है। इसकी एक वजह तो खिलाड़ियों और अधिकारियों के बीच वर्ग व संस्कृति की खाई है। दूसरी, अधिकारी सरकारी नौकर होते हैं और ज्यादातर सरकारी कर्मचारियों की तरह वे महसूस करते हैं कि किसी को सरकारी सुविधा देना एहसान करना है। एक और गलतफहमी भारत की खेल संस्कृति में यह है कि कोच या अधिकारियों को खिलाड़ियों से दूरी बनाकर रखनी चाहिए, जबकि अनुभव यह है कि दोस्ताना व्यवहार करने वाले कोच या अधिकारी ज्यादा कामयाब होते हैं। भारत में यह रिश्ता आश्रयदाता और आश्रित का होता है। ऐसे में, अक्सर अधिकारी व कोच यह नहीं समझते कि होस्टल में घर से दूर रहने वाले किशारों की समस्याएं क्या हो सकती हैं? खासकर अगर लड़कियां हों, तो ज्यादा संवेदनशीलता की जरूरत होती है। ये बच्चे इसलिए सब कुछ बर्दाश्त कर रहे होते हैं कि अगर उन्हें होस्टलों से निकाल दिया जाए, तो उनका करियर व भविष्य नष्ट हो जाएगा और वे किस मुंह से अपने घर जाएंगे।
शायद इन लड़कियों के साथ ऐसी ही उलझनें रही होंगी। यह तो जरूरी है ही कि इस घटना की जांच हो और दोषियों की पहचान हो, लेकिन यह भी जरूरी है कि अन्य खेल होस्टलों में भी यह देखा जाए कि किशोर खिलाड़ियों के साथ कैसा व्यवहार हो रहा है, उनकी समस्याएं क्या हैं और अधिकारी संवेदनशील हैं या नहीं। जो मां-बाप भरोसे और उम्मीद के साथ अपने बच्चों को होस्टलों में भेजते हैं और जो बच्चे बड़ा खिलाड़ी बनने के लिए यहां आते हैं, उनका भरोसा बना रहे, ऐसा माहौल हर होस्टल में होना चाहिए। सबसे जरूरी यह है कि उत्पीड़न या शारीरिक यंत्रणा को पूरी तरह प्रतिबंधित किया जाए। यह घटना भारतीय खेल जगत व भारतीय खेल प्राधिकरण, दोनों को झकझोरने वाली है और खेल मंत्रालय को व्यापक सुधारों की ओर ध्यान देना चाहिए।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क 9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com