भोपाल। मप्र के 6 बड़े प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों मे सरकारी कोटे की सीटें बेच दिए जाने के मामले में करोड़ों के भ्रष्टाचार का खुलासा हुआ था लेकिन इस मामले में अभी तक कॉलेज मालिकों के खिलाफ कोई एफआईआर नहीं हुई है। कांग्रेस का आरोप है कि मेडिकल माफिया को बचाने के लिए स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने करोड़ों का Political protection tax वसूला है। पढ़िए कांग्रेस के प्रवक्ता केके मिश्रा का यह प्रेस बयान:—
मान्यवर पत्रकार बंधुओ,
इस पत्रकार वार्ता के माध्यम से कांगे्रस पार्टी प्रदेश के बहुचर्चित व्यापम महाघोटाले की एक बार पुनः सीबीआई से जांच कराये जाने की मांग दोहराती है, क्योंकि उच्च न्यायालय, जबलपुर द्वारा पारित कई निर्णयों/अभिमतों में अब यह बात लगभग स्पष्ट हो चुकी है कि इस महाघोटाले की जांच कर रही एजेंसी एसटीएफ और उच्च न्यायालय के निर्देश पर उसकी निगरानी कर रही एसआईटी में आपसी समन्वय का अभाव है।
प्रदेश के महामहिम राज्यपाल रामनरेश यादव द्वारा उनके विरूद्व एसआईटी के माध्यम से उच्च न्यायालय के निर्देश एसटीएफ द्वारा वनरक्षक भर्ती परीक्षा-2013 को लेकर दर्ज याचिका को उच्च न्यायालय द्वारा निराकृत किये जाने के बाद जहां कांग्रेस का उक्त आरोप स्पष्ट हो रहा है, वहीं एसटीएफ द्वारा की जा रही कार्यवाही भी संदिग्ध प्रतीत हो रही है? यदि राज्यपाल के विरूद्व एसटीएफ और एसआईटी की कार्यवाही न्यायसंगत नहीं थी तो एसटीएफ और एसआईटी के विरूद्व राज्यपाल को प्रताड़ित करने के खिलाफ क्या कार्यवाही होगी?
यही नहीं राज्यपाल के विरूद्व दर्ज प्रकरण को लेकर वनरक्षक भर्ती परीक्षा-2013 की एफआईआर डेढ़ वर्ष बाद दर्ज किया जाना भी विभिन्न शंकाओं से परिपूर्ण है, क्योंकि जब व्यापमं के चीफ सिस्टम एनाॅलिस्ट नितिन महिन्द्रा 18 जुलाई, 2013 से पुलिस/ न्यायिक अभिरक्षा में हैं, तब एफआईआर दर्ज करने में विलंब होने का एक मात्र कारण यही था कि उसमें राज्यपाल और मंत्री जयंत मलैया की पत्नी डाॅ. सुधा मलैया की भूमिकाओं का स्पष्ट समावेश था।
व्यापम घोटाले को लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान, प्रदेश से संबद्ध सभी केंद्रीय मंत्री सहित भारतीय जनता पार्टी के नेतागण बार-बार यह दोहराते हैं कि कानून अपना काम करेगा और जांच प्रक्रिया ठीक चल रही है। इस लिहाज से मुख्यमंत्री सहित अन्य सभी नेताओं को यह बात सार्वजनिक करना चाहिए कि राज्यपाल के खिलाफ उच्च न्यायालय द्वारा दर्ज एफआईआर रद्द किये जाने के पारित आदेश के विरूद्व क्या राज्य सरकार सर्वोच्च न्यायालय की शरण लेगी?
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2007 से लेकर वर्ष 2013 तक व्यापम के माध्यम से प्रदेश में 168 परीक्षाएं आयोजित की गईं और कांग्रेस पार्टी के दबाव में सबसे अंत में परिवहन आरक्षक भर्ती परीक्षा-2012 में हुई गड़बड़ियों को लेकर एसटीएफ को एफआईआर दर्ज करना पड़ी। इस भर्ती परीक्षा में समय-समय पर जो-जो नाम कांग्रेस पार्टी ने सार्वजनिक किये थे, कमोवेश उन सभी के विरूद्ध एफआईआर दर्ज कर उन्हें आरोपी मान लिया गया है, किंतु एसटीएफ इस भर्ती परीक्षा में सबसे महत्वपूर्ण बिन्दु को आज तक राजनैतिक दबाव के कारण छू भी नहीं पायी है। जिसके अंतर्गत इस परीक्षा में परिवहन आरक्षकों की सीधी भर्ती हेतु व्यापमं/राज्य सरकार द्वारा प्रसारित विज्ञापन में 198 परिवहन आरक्षकों की सीधी भर्ती करने हेतु अधिसूचना मई-2012 में प्रकाशित करायी गई थी, किंतु बिना किसी सक्षम प्राधिकारी की स्वीकृति लिये बगैर अवैधानिक तरीकों से 332 परिवहन आरक्षकों का चयन कर लिया गया। कांग्रेस पार्टी द्वारा सूचना का अधिकार कानून-2005 के तहत न ही व्यापमं और न ही परिवहन विभाग इस बात की जानकारी दे रहा है कि 198 स्वीकृत पदों के एवज में 332 परिवहन आरक्षकों की भर्ती कैसे कर ली गई?
कांग्रेस पार्टी का सीधा आरोप है कि इस अतिरिक्त भर्ती में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के परिवार की सीधी संलिप्तता है, इसी कारण इस गंभीर अनियमितता की जानकारी उजागर नहीं की जा रही है। कांग्रेस के पास जो पुख्ता जानकारी हासिल हुई है उसके अनुसार चयन संबंधी सामान्य अनुदेश को लेकर व्यापम और परिवहन विभाग के बीच फाईलों और पत्राचारों का जो आदान-प्रदान हुआ है वह इस प्रकार है:-
कार्यालय परिवहन आयुक्त, मध्यप्रदेश, ग्वालियर के पत्र क्रमांक 2090/स्था./टीसी/10, दिनांक 28.04.201 मध्यप्रदेश शासन, परिवहन विभाग, मंत्रालय, भोपाल के पत्र क्रमांक एफ-1-109/2005/आठ, दिनांक 22.02.2011, पत्र क्र. एफ-1-109/05/आठ दिनांक 14.07.2011 परिवहन विभाग का पत्र क्र. एफ-1-109/05/आठ, दिनांक 27.12.2011 तथा ज्ञाप क्र. एफ-1-109/2005 आठ, दिनांक 30.12.2009 के अनुसार कार्यालय परिवहन आयुक्त, मध्यप्रदेश, ग्वालियर के अंतर्गत रिक्त तृतीय श्रेणी (कार्यपालिक) के परिवहन आरक्षक के रिक्त पदों पर सीधी भर्ती हेतु चयन परीक्षा-2012 के लिए यह निर्देश लागू होंगे।
कांग्रेस का सीधा आरोप है कि 198 परिवहन आरक्षकों की सीधी भर्ती के एवज में 332 परिवहन आरक्षकों की अवैधानिक भर्ती संबंधी आदेश तत्कालीन अतिरिक्त मुख्य सचिव और वर्तमान मुख्य सचिव एंटोनी डिसा जो तत्कालीन परिवहन विभाग के भी प्रभारी थे, के हस्ताक्षर से जारी हुए हैं। इस गंभीर अनियमितता को लेकर एसआईटी और एसटीएफ ने अभी तक संज्ञान क्यों नहीं लिया है? इससे संबंधित फाइल गायब क्यों कर दी गई है? सूचना के अधिकार के तहत जानकारी क्यों नहीं दी जा रही है? यही नहीं इस भर्ती परीक्षा में शारीरिक अर्हताओं के बिंदु भी व्यक्तिगत सुविधाओं हेतु तय किये गये और आरक्षण प्रक्रिया में भी महिलाओं के आरक्षण को लेकर मनमाफिक बिंदु एवं निर्णय बतौर प्रावधान सुनिश्चित कर लिये गये, ऐसा क्यों और किसलिए हुआ? इन महत्वपूर्ण बिंदुओं पर भी एसटीएफ द्वारा संज्ञान नहीं लिये जाने के पीछे क्या कारण है?
कांग्रेस का दूसरा गंभीर और बड़ा आरोप है कि प्रदेश के 6 निजी मेडीकल काॅलेजों द्वारा सरकारी कोटे की सीटें मेनेजमेंट कोटे से भर दिये जाने और उसमें हुए करोड़ों रूपयों के भ्रष्टाचार के खुलासे और मध्यप्रदेश शासन चिकित्सा शिक्षा विभाग, मंत्रालय की जांच रिपोर्ट क्र. एफ-9/127/2014/1-55 (पार्ट), भोपाल, दिनांक 7 अक्टूबर, 2014 में भी अनियमितता/भ्रष्टाचार स्वीकारे जाने के बावजूद भी एसटीएफ ने अब तक कौन सी दिखाई देने वाली कार्यवाही की है? यही नहीं इस गड़बड़ी के खिलाफ प्रमुख सचिव, चिकित्सा शिक्षा ने भी इन निजी मेडीकल काॅलेजों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने के निर्देश दिये थे, किंतु प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा मंत्री डाॅ. नरोत्तम मिश्रा ने 6 सितम्बर, 2014 को जारी अपनी नोटशीट पर एफआईआर दर्ज करने के बजाय कठोर कार्यवाही करने के निर्देश जारी कर इस घोटाले पर सरकार की नीयत पर सवालिया निशान लगा दिया है। कांग्रेस का सीधा आरोप है कि निजी मेडीकल काॅलेजों पर डाॅ. नरोत्तम मिश्रा इस कृपा के बदले करोड़ों रूपये रिश्वत की अदायगी की गई है। इस पूरे काम में भोपाल के ही एक चिकित्सक ने मध्यस्थ की भूमिका निभाई है।
इसी प्रकार पार्टी का यह भी गंभीर आरोप है कि एसटीएफ की स्टाइल ‘पिक एंड चूज’ वाली है। व्यापमं की पूर्व अध्यक्ष वरिष्ठ आईएएस रंजना चौधरी, जिन्हें लेकर जेल में बंद व्यापम के परीक्षा नियंत्रक पंकज त्रिवेदी ने अपने मेमोरेंडम में 42 लाख रूपये दिये जाने की बात कही है, सहित अन्य प्रामाणिक आरोपों के बावजूद गिरफ्तारी क्यों नहीं की? इसमें कितनी सच्चाई है कि उन्हें सरकारी गवाह बनाया जा रहा है? ग्वालियर एसटीएफ में दर्ज एफआईआर में फरार आरोपी और मुख्यमंत्री के रिश्तेदार डाॅ. गुलाबसिंह किरार की गिरफ्तारी क्यों नहीं हो रही है? वनरक्षक भर्ती परीक्षा-13 में वित्त मंत्री जयंत मलैया की पत्नी डाॅ. सुधा मलैया को लेकर कार्यवाही सुप्त अवस्था में क्यों है? मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव एस.के. मिश्रा, तत्कालीन परिवहन मंत्री जगदीश देवड़ा और परिवहन आरक्षक भर्ती परीक्षा के दौरान तत्कालीन परिवहन आयुक्त एस.एस. लाल, अपने सेवाकाल के दौरान तीन बार परिवहन विभाग में प्रतिनियुक्ति पर रहे मुख्यमंत्री के रिश्तेदार व तत्कालीन अतिरिक्त परिवहन आयुक्त आर.के. चौधरी व जगदीश देवड़ा के पीए दिलीपराज द्विवेदी की संदिग्ध भूमिकाओं को एसटीएफ किस दबाव में नजरअंदाज कर रहा है?
इस महाघोटाले को लेकर दर्ज एफआईआर, सीडीआर, एक्सल शीट और अन्य उपलब्ध रिकार्ड में केंद्रीय मंत्री सुश्री उमा भारती, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबद्ध सुरेश सोनी की संलिप्तता जगजाहिर है, फिर भी वे जांच प्रक्रिया से अछूते क्यों हैं?
इसी तरह मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग में 10 वर्षों तक उत्तर पुस्तिकाएं व 20 वर्षों तक रिजल्ट रिकार्ड में रखा जाता है। व्यापम में भी लगभग यही प्रक्रिया निर्धारित है, फिर भी इस महाघोटाले से संबद्व दस्तावेज नष्ट कैसे हो गये, एसटीएफ ने इस गंभीर अपराध को लेकर जबावदेही किन लोगों की निर्धारित की है? इसी प्रकार जेल में बंद प्रमुख आरोपियों से जब्त एक्सल शीट और कम्प्यूटर रिकार्ड में और भी कई प्रभावी लोगों के नाम सामने आये हैं, उन सभी को विभिन्न दर्ज एफआईआर में आरोपी क्यों नहीं बनाया जा रहा है?
यही नहीं भारी भरकम रिश्वत की राशि देकर विभिन्न परीक्षाओं में चयनित आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद विभिन्न न्यायालय में दर्ज चालानों में एसटीएफ द्वारा यह दर्शाया गया है कि आरोपीगण 02 लाख, 03 लाख रूपये देकर चयनित हुए थे, जबकि यह राशि 25, 50, 70, 75 और 80 लाख रूपयों के आसपास थी। एसटीएफ द्वारा ऐसा किये जाने के पीछे मंशा क्या है, स्पष्ट होना चाहिए?
इसी प्रकार पीएमटी घोटाले को लेकर भी कांग्रेस पार्टी और उसके वरिष्ठ नेतागण डीएमई की भूमिकाओं को लेकर भी बार-बार सवाल उठा रहे हैं कि उनकी भूमिका इतने बड़े महाघोटाले में नगण्य हो, ऐसा हो नहीं सकता है। लिहाजा, इस दिशा में एसटीएफ की भूमिका पारदर्शी क्यों नहीं है? वर्तमान डीएमई डाॅ. एस.एस. कुशवाह जो विभिन्न किस्म के प्रामाणिक भ्रष्टाचार में लिप्त होकर राजनैतिक रसूखदार है, क्या यही कारण है कि उनके विरूद्व जांच प्रक्रिया अपने आप को छोटा महसूस कर रही है।
भवदीय
(के.के.मिश्रा)
मुख्य प्रवक्ता