भोपाल। मप्र के हरदा जिले के एक छोटे से गांव में रहने वाली ज्योति विश्नोई जब भोपाल में 12वीं बोर्ड एग्जाम में टॉप करके मैडल ले रही थीं, उस वक्त उसके पिता और भाई-बहनों की आंख से आंसू नहीं रुक रहे थे। शायद वे सोच रहे थे कि उन लोगों से कितना बड़ा गुनाह होते-होते रह गया।
500 में से 488 अंक हासिल कर मप्र माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की बारहवीं क्लास में टॉप करने वाली ज्योति की यह सफलता उस समय भंवर में फंस गई थी, जब उसके परिवार के सदस्योँ ने ही आगे की पढ़ाई करवाने से इंकार कर दिया था।
दादाजी पढ़ाई के खिलाफ थे
एक संभ्रांत और संयुक्त परिवार में रहने वाली ज्योति बताती हैं, 'हरदा से 10 किमी दूर हमारा गांव है। मैं पढ़ना चाहती थी, लेकिन मेरे दादाजी ने मुझे पढ़ाने से इंकार कर दिया था। उनका कहना था कि आजकल माहौल बहुत खराब है, इसलिए इतनी दूर अकेले पढ़ने के लिए नहीं भेज सकते। दादाजी की जिद के आगे परिवार के बाकी सदस्य भी हार गए थे लेकिन, मैं पढ़ना चाहती थी और बढ़ी मिन्नतों के बाद मैंने दादाजी को मनाया। मेरी पढ़ाई जारी रखने में मेरे स्कूल ने बहुत बढ़ा योगदान दिया है।'
स्कूल ने लगाई स्पेशल वैन
ज्योति सरस्वती विद्या मंदिर, हरदा से मैथ साइंस में 12वीं पढ़ी हैं। वे बताती हैं, 'यदि स्कूल मदद नहीं करता, तो शायद मैं बारहवीं पढ़ ही नहीं पाती। पढ़ाई के प्रति मेरी लगन को देखते हुए स्कूल ने मेरे लिए विशेष वैन लगाई, जो रोज मुझे गांव से लेकर आती थी और छोड़ने जाती थी। तब जाकर दादाजी का डर खत्म हुआ। मैं आईएएस ऑफिसर बनना चाहती हूं।'
ज्योति ने बहुत मेहनत की
ज्योति के पिता उमाशंकर बताते हैं, 'ज्योति ने मेहनत से कभी जी नहीं चुराया। 10 से 12 घंटे वह पढ़ाई करती थी। उसकी मेहनत को देखकर बाद में उसके दादाजी भी पसीज गए और फिर उसे सपोर्ट करने लगे। आज ज्योति के दादाजी ने उससे सबसे पहले बात कर उसे बधाई दी है।'