भोपाल। विकास योजनाओं की समीक्षा के दौरान जिला पंचायतों के सीईओ लगातार अपने अपने कलेक्टरों की शिकायतें कर रहे हैंं उनका आरोप है कि विकास योजनाओं के मामले में कलेक्टर कुछ नहीं करते, ‘स्वच्छता मिशन’ में भी कलेक्टरों की रुचि नहीं है।
पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग द्वारा शुरू की गई संभागीय समीक्षा बैठकों में यह सिलसिला लगातार जारी है। पांच संभागों की हो चुकी समीक्षा बैठकों में कलेक्टरों पर 'पुअर परफारमेंस' के आरोप लगाए गए हैं। समीक्षाओं की पूरी रिपोर्ट जून माह के अंत तक तैयार होने की संभावना है।
पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग ने 8 अप्रैल से संभागीय समीक्षा बैठकें शुरू की हैं। बैठकें 8 मई तक चलेंगी। समीक्षाओं से पता चला है कि ग्वालियर संभाग में किसी भी जिले ने स्वच्छता के नाम का टास्क पूरा नहीं किया है। जबलपुर, रीवा, शहडोल और चंबल संभागों के जिलों में केन्द्रीय योजनाओं के टारगेट काफी पिछड़े हुए हैं। सतना और सीधी में तो इंदिरा आवास योजना की हवा ही निकल गई है।
जिले के अफसरो में तनातनी
कई जिलों में कलेक्टर और सीईओ जिला पंचायत के बीच पटरी नहीं बैठ पाने से कल्याणकारी योजनाएं प्रभावित हो रहीं हैं। सतना जिले में विकास संबंधी फाइलें रुकी हुई हैं। यह जिला स्वच्छता के नाम पर काफी पीछे है। आरोप लगाए गए हैं कि कि प्रमोटी आईएएस जिन्हें सीधे कलेक्टरी दी गई है, वे पंचायत और ग्रामीण विकास पर अधिक रुचि नहीं ले रहे हैं। शासन ने तय किया था कि नए आईएएस को पहले जिला पंचायत का सीईओ बनाया जाएगा जिससे उन्हें विकास योजनाओं का ज्ञान हो सके लेकिन, तत्कालीन मुख्य सचिव राकेश साहनी और अवनि बैस के समय से इस सिस्टम को तोड़ दिया गया है। यही कारण है कि प्रमोटी आईएएस एमबी ओझा, कवीन्द्र कियावत, प्रकाश जांगड़े, सीबी सिंह जैसे अधिकारी सीधे कलेक्टर बने।
कलेक्टरों में लीडरशिप का अभाव
विभाग के आला अफसरों के सामने सबसे जानकारी सामने आई है कि कोई भी कलेक्टर, राजीव गांधी जलग्रहण मिशन का मिशन लीडर नहीं बन पाया है। कलेक्टरों को इस योजना का ‘लीडर’ कहा जाता है। कई कलेक्टरों की शिकायतें मिली हैं वे फाइलों को अनावश्यक रूप से पेंडिंग रखते हैं। सीईओ के प्रस्तावों को कई दिनों तक रोके रखा जा रहा है।