भोपाल। करीब 20 करोड़ रुपए के कोयला घोटाले की जांच कर रही CBI ने गुरुवार को साउथ ईस्टर्न कोलफील्डस लि.(SECL) के मप्र के शहडोल जिले में स्थित सोहागपुर और छत्तीसगढ़ के बिलासपुर, भटगांव, विश्रामपुर में कार्रवाई की।
यह है पूरा मामला...
लंबे समय से कोयला कारोबार से जुड़ी छत्तीसगढ़ की एक कंपनी ने सिर्फ 4 महीने के अंदर करीब 20 करोड़ रुपए का कोयला चोरी-छुपे बेच दिया था। यह और बात है कि मामले को सामने आने में लगभग 6 साल लग गए। CBI इस मामले की जांच कर रही है। CBI जांच में सामने आया है कि करीब 15 सालों से कोयले का परिवहन कर रही इस कंपनी ने कोयला खदानों से ताप विद्युत घरों तक परिवहन के दौरान करोड़ों रुपए का अच्छी गुणवत्ता का कोयला चोरी कर बाजार में बेचा है।
इस मामले में CBI ने सबसे पहले 9 सितम्बर, 2009 को छत्तीसगढ़ के कोरबा स्थित दो ढुलाई केंद्रों, तापीय विद्युतगृहों, कंपनी के निदेशकों के आवासों, बिलासपुर के फील्ड कार्यालय और गुड़गांव हरियाणा में कॉरपोरेट कार्यालयों पर एक साथ छापा मारा था। इस घोटाले में सीबीआई ने महाप्रबंधक और भारत सरकार के साउथ ईस्टर्न कोलफील्डस लि.(SECL) के पूर्व अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक जीसी मृग के अलावा कंपनी के निदेशकों सहित राजस्थान राज्य विद्युत निगम से संबद्ध ट्रान्सपोर्ट कंपनियों के खिला़फ एफआईआर दर्ज कराई है।
अब तक जांच...
CBI की जांच के मुताबिक, एक कंपनी ने सीईसीएल से राजस्थान के कोटा और सूरतगढ़ विद्युत गृहों के लिए 2006 में अप्रैल से जुलाई तक कोयला उठाया था। हालांकि सीईसीएल और पूर्व सैनिक ट्रांसपोर्ट कंपनियों ने सांठगांठ करके 73488.64 मीट्रिक टन कोयला सप्लाई ही नहीं किया था।
जब यह घोटाला सामने आया तब प्रधानमंत्री ने राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन की अध्यक्षता में 6 सांसदों की समिति गठित की थी। समिति ने अपनी जांच में पाया कि कंपनी रोज 20 हज़ार टन कोयला बिना किसी लिखा-पढ़ी के गायब कर देती थी। इसकी कीमत करीब दो करोड़ रुपए होती थी।
कंपनी खाली दीपिका गेवरा खदान में से 1.25 लाख से 1.50 लाख टन कोयले का लोडिंग परिवहन करती थी। समिति की जांच के अनुसार अच्छी क्वालिटी का ए-ग्रेड कोयला वासरी में लाया जाता था। लेकिन कोयले की धुलाई के दौरान ही अच्छे ग्रेड का कोयला ताप विद्युत गृहों को न भेजकर निम्न श्रेणी का कोयला और कोयले की राख सप्लाई की जाती थी। कंपनी खदान से ही 31 प्रतिशत राख वाला कोयला सीधे ऊर्जा संयंत्रों को भेज देती थी। समिति ने अपनी जांच में पाया था कि दोनों श्रेणी के कोयले की कीमतों में करीब 800 रुपए प्रति टन का अंतर था। यानी घोटाला पकड़े जाने तक यह कंपनी करीब 4 करोड़ टन कोयला उठाकर 3200 करोड़ रुपए की कोयले की हेराफेरी कर चुकी थी।
- इन्होंने उठाए थे सवाल...
- छत्तीसगढ़ सरकार के तत्कालीन मुख्य सचिव राघवन ने 31 जुलाई 2003 को कोयला मंत्रालय के सचिव से जांच की मांग की थी।
- सीबीआई ने वर्ष 2004 में भोपाल परिक्षेत्र के तत्कालीन डीआईजी सुधीर मिश्रा के नेतृत्व में जांच के बाद कंपनी को क्लीन चिट दे दी थी।
- कोल इंडिया ने 5 नवम्बर 2004 को अपनी जांच के बाद ट्रान्सपोर्ट कंपनी की हेराफेरी और सीबीआई की जांच पर उंगली उठाई थी।
- वर्ष 2005 में गुजरात विद्युत बोर्ड ने भी एक कमेटी बनाकर जांच कराई थी।