जबलपुर। मध्यप्रदेश के बहुचर्चित व्यापमं घोटाले को लेकर राज्यपाल रामनरेश यादव के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज किए जाने को चुनौती देते हुए उनकी ओर से दायर की गयी याचिका पर उच्च न्यायालय ने अाज सुनवायी के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
राज्यपाल नामनरेश यादव की ओर से न्यायालय में प्रसिद्ध वकील रामजेठमलानी पेश हुए थे। राज्यपाल रामनरेश यादव के खिलाफ दर्ज एफआईआर को चुनौती देने वाली याचिका पर सोमवार को हाईकोर्ट में दिन भर बहस हुई। सुनवाई पूरी होने के बाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एएम खानविलकर और न्यायाधीश रोहित आर्या की खंडपीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया। इस मामले में अगली तारीख 17 अप्रैल लगाई गई है।
राज्यपाल रामनरेश यादव की ओर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता रामजेठमलानी ने व्यापमं घोटाले में प्रकरण दर्ज करने और राज्यपाल का नाम अभियुक्त क्रमांक 10 में जोड़े जाने पर आपत्ति की। जेठमलानी ने कहा कि नितिन महिन्द्रा के कार्यालय में लगे कम्प्यूटर से जब्त सेकड हार्ड डिस्क 16 जुलाई 2013 को जब्त की गई। उन्होंने सवाल उठाए कि गुजरात की प्रयोगशाला में 6 माह तक क्या होता रहा। जिसने परीक्षण के बाद 20 अक्टूबर 2014 को चार माह अपने पास रखने के बाद प्रतिवेदन प्रस्तुत किया।
एक्सल शीट में तैयार फाइल
जेठमलानी ने कहा कि दो वर्ष पूर्व से निरूद्ध अन्य प्रकरणों के आरोपी नितिन मोहिन्द्रा के कथन के बाद यह एफआईआर दर्ज की गई। एफआई आर में इस तथ्य का भी उल्लेख नहीं है कि जेल में निरूद्ध अपराधी कब मजिस्ट्रेट के आदेश से और कब न्यायिक अभिरक्षा में पहुंच गया। जिन्हें सूची में रिमार्क कॉलम में उल्लेखित कर एक्सल शीट में फाइल तैयार कराई गई। जिसमें गवर्नर शब्द का उल्लेख था। एसटीएफ ने उसका आशय गवर्नर रामनरेश यादव मान कर एफआईआर दर्ज की। जेठमलानी के साथ हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता आदर्श मुनि त्रिवेदी ने भी तर्क रखे।
शासन की ओर से महाधिवक्ता रवीश अग्रवाल और अतिरिक्त महाधिवक्ता पुरुषेन्द्र कौरव ने तर्क दिया। उन्होंने कहा कि राज्यपाल के खिलाफ एफआईआर हो सकती है पर चालान प्रस्तुत करने के बाद ही अपराधिक कार्रवाई मानी जाए। एफआईआर से उनके खिलाफ अपराधिक प्रक्रिया शुरू नहीं मानी जा सकती है।
