भोपाल। नवंबर, 2014 में हुए सांची महोत्सव में प्रस्तुति देने वाले कलाकार संस्कृति संचालनालय में अपने भुगतान को लेकर भटक रहे हैं। दरअसल, ये वो कलाकार हैं, जिन्हें अचानक मौखिक आदेश पर कार्यक्रम के लिए बुला लिया था, लेेकिन जब भुगतान की बात आई, तो अनुबंध न होने का कहकर बेइज्जत करके लौटा दिया गया।
संस्कृति संचालनालय में कलाकारों का शोषण थमने का नाम नहीं ले रहा। संचालनालय के अंतर्गत आने वाली अकादमी ने पहले कलाकारों से काम करवा लिया और बाद में उनसे कहा गया, परफारमेंस अच्छा नहीं है, पैसे नहीं मिलेंगे। कुछ लोगों को मौखिक आदेश पर बुलाया गया था। बाद में कह दिया गया कि, आपसे तो कोई अनुबंध ही नहीं हैं? इस वजह से 5 महीने से ऐसे कलाकार परेशान हो रहे हैं, जिन्होंने विभाग के अधिकारियों और प्रोग्राम ऑफिसरों पर भरोसा कर काम किया।
किस तरह का था कार्यक्रम
भारत-सिंगापुर द्विपक्षीय संबंधों की 50वीं वर्षगांठ के अवसर पर इस कार्यक्रम की प्रस्तुति सांची महोत्सव में नवंबर 2014 में हुई थी। आदिवासी लोक कला एवं बोली विकास अकादमी के प्रोग्राम ऑफिसर राजीव सक्सेना ने ख्यातिप्राप्त म्यूजिक कंपोजर अभय फग्रे से म्यूजिक कंपोज करने के लिए बात की। उसके बाद अक्टूबर में डिप्टी डायरेक्टर अनिल सिंह फग्रे को पत्र लिखकर कहा कि वह म्यूजिक तैयार करें। फग्रे ने महात्मा बुद्ध की जातक कथाओं पर आधारित बैले के लिए म्यूजिक कम्पोज किया। इसकी प्रस्तुति 29-30 नवंबर 2014 को सांची महोत्सव में हुई।