इंदौर। 35 वर्षीय राजू सैनी देवास में स्टेशन मास्टर हैं। वे रेलवे की ड्यूटी के साथ एक दूसरी ‘ड्यूटी’ भी निभा रहे हैं- बस्ती के बच्चों का भविष्य बनाने की। गोमा की फैल में रहने वाले राजू समय निकालकर युवाओं को प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करवाते हैं। खुद क्लास लेते हैं। उनकी मेहनत का ही असर है कि बस्तियों के युवा फूड इंस्पेक्टर से लेकर कांस्टेबल बन गए हैं। इनमें से पहले कोई अखबार बांटता था तो कोई फ्रूट का ठेला लगाता था। यही नहीं राजू की मुहिम से अब दूसरे युवा भी जुड़ रहे हैं।
राजू के पिता कन्हैयालाल कहते हैं सोमनाथ की चाल, लाला का बगीचा और पंचम की फैल जैसी बस्तियों का माहौल और बदनाम छवि को बदलने के लिए राजू ने खुद पढ़ाई कर मुकाम पाया और आज युवाओं को प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयारी करवा रहा है। 2002 से शुरू हुए छोटे से प्रयास के बाद अब तक इन बस्तियों से 448 युवा प्रतियोगी परीक्षाओं के जरिए सरकारी सेवा के विभिन्न पदों पर चयनित हो चुके हैं।
मजदूर से एसबीआई में मैनेजर तक: विजय सोनी (34 वर्ष)
पिता सराफा में ज्वेलरी दुकान पर हेल्पर का काम करते थे। विजय ने भी मजदूरी की और साथ ही रेलवे व बैंक की परीक्षा दी। बैंकिंग क्षेत्र को चुनकर आज वह स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में मैनेजर है।
10 युवाओं ने की शुरुआत और बदल गई तस्वीर
गोमा की फैल का एक छोटा सा मकान। पिता ऑटो रिक्शा चलाते थे। राजू में पढ़ाई की ललक दिखी तो पिता भी पीछे नहीं हटे। बीएससी और फिर एमए। 2002 में राजू सहित बस्ती के ही 10 युवा जुटे। एक साथ प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी की। 2006 में चार का चयन हो गया। राजू रेलवे भर्ती बोर्ड की परीक्षा के माध्यम से सहायक स्टेशन मास्टर बने। चारों ने तय किया कि बाकी छह की तैयारी भी वे जारी रखवाएंगे। इसी दौरान चाणक्य नाम से एक संगठन बनाया और दूसरे युवाओं को भी जोड़ा। राजू पदोन्नत होकर अब स्टेशन मास्टर हैं। वे और उनके साथी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के लिए बस्ती के युवाओं की नियमित रूप से क्लास ले रहे हैं। करीब 100 युवा उनके ग्रुप के माध्यम से प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं। ग्रुप से जुड़े सहायक वाणिज्यिक कर अधिकारी दिलीप राठौर ने बताया उन्होंने भी विपरीत परिस्थिति में अपना करियर बनाया। उनके साथ शिक्षक धीरज हार्डिया और कुंदन पपरालिया भी नियमित रूप से क्लास ले रहे हैं।
सिलाई करती थी, टैक्स असिस्टेंट बनी: सोनू जोरम (27 वर्ष)
सोनू को भी पढ़ाई के लिए माहौल नहीं मिल रहा था। चाणक्य ग्रुप से जुड़ी। साथ में घर में मां के साथ सिलाई का काम करती थीं। मेहनत की और चयन हो गया। इंदौर वाणिज्यिक कर विभाग में टैक्स असिस्टेंट हैं।
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पेपर बांटते थे, अब टीसी हैं: कन्हैया प्रजापति (28 वर्ष)
न्यूज पेपर बांटते थे। ग्रुप से जुड़े और प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी शुरू की। रेलवे की परीक्षा पास कर टीसी बने। अब क्षेत्र की छवि सुधारने के लिए ग्रुप में जुड़कर नए छात्रों को भी तैयारी करवा रहे हैं।
दिहाड़ी मजदूर थे, सूबेदार बन गए: दिनेश कुमार लात्या (34 वर्ष)
माता-पिता बीड़ी कारखाने में मजदूरी करते हैं। दिनेश भी मजदूरी करते थे, लेकिन आगे बढ़ने की ललक कायम रही। ग्रुप से जुड़कर परीक्षा दी। चयन हुआ आगर में सूबेदार के पद पर सेवा दे रहा है।
