ईसाईयों के लिए तलाक का अलग कानून गलत: सुप्रीम कोर्ट

नईदिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने ईसाइयों के लिए तलाक के अलग कानून को अनुचित बताया है। सोमवार को कोर्ट ने पूछा किया आपसी सहमति से तलाक मांगने के बाद भी एक ईसाई दंपत्ति को दो साल तक अलग क्यों रहना पड़ा जबकि अन्य समुदायों के लिए यह समय केवल एक साल का है. जस्टिस विक्रमजीत सेन और एएम सप्रे की बैंच ने कहाकि, ईसाई दंपत्ती के लिए अलग मानदंड का कोई मतलब नहीं है.

इसके साथ ही बैंच 146 साल पुरानी धारा पर विचार करने का भी राजी हो गई. इस धारा के अनुसार ईसाई दंपत्ती को आपसी सहमति होने पर भी तब तक तलाक की अनुममि नहीं दी जा सकती जब तक कि वे कम से कम दो साल तक अलग नहीं रहे. इस मामले में बैंच ने केन्द्र से जवाब मांगा है.

इस पर एक जनहित याचिका दायर की गई थी और इसमें 1869 के डिवॉर्स एक्ट की धारा 10 ए(1) को रद्द करने की मांग की गई थी. याचिकाकर्ता अल्बर्ट एंथनी के वकील राजीव शर्मा ने बताया कि केरल हाईकोर्ट ने इस अवधि को घटाकर एक साल कर दिया था लेकिन कर्नाटक हाईकोर्ट ने इसे पलट दिया.

याचिका में कहा गया कि, ईसाइयों के लिए अलग रहने की अवधि दो साल जबकि अन्य लोगों के लिए एक साल असंगत है। स्पेशल मैरिज एक्ट 1954, द हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 13-बी और पारसी मैरिज की धारा 32 बी में तलाक के लिए एक साल का समय दिया गया है. जबकि आपसी सहमति से तलाक लेने के इच्छुक ईसाई समुदाय के सदस्यों के लिए दो साल की अवधि दमनकारी है.

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