नक्सलवाद: सोचने का नहीं करने का वक्त

राकेश दुबे@प्रतिदिन। नक्सलवादी हमले छतीसगढ़ में ने कई बार देखे हैं, पर वे इतने आक्रामक कभी नहीं दिखे, जैसी आक्रमकता पिछले तीन दिनों में दिखाई है। एक के बाद एक चार हमले। ऐसा लगता है कि नक्सलियों ने सुरक्षा बलों को उनके कैम्पों में ही रोककर रखने की कोई नई रणनीति अपनाई है।

बचेली के छत्तीसगढ़ आर्म्स फोर्स (सीएएफ)के कैंप से कुछ ही दूरी पर इतनी शक्तिशाली बारुदी सुरंग तैयार करना जो सुरंग रोधी वाहन को भी उड़ा दे, आखिर क्या दर्शाता है। इन तीन दिनों में जो दो बड़े हमले हुए हैं उनमें छत्तीसगढ़ आर्म्स फोर्स के ही जवान शहीद हुए हैं। नियमित गश्त में इसी फोर्स के जवानों को लगाया जाता रहा है, क्योंकि इसमें स्थानीय युवाओं की टीम होती है जो इलाके से परिचित होते हैं। इन दो दशकों में ऐसा कभी नहीं हुआ कि 100-50 के समूह में एकत्र होकर हमला करने वाले नक्सलियों का किसी गश्ती दल  पर हमले के दौरान दल को पीछे से सुरक्षा दे रही सुरक्षा बलों की किसी पार्टी से सामना हुआ हो और उन्हें कोई बड़ा नुकसान पहुंचा हो। इसका अर्थ यह है कि नक्सलियों का खुफिया तंत्र हमारे सुरक्षा बलों से कहीं ज्यादा मजबूत है। साधन-सुविधाओं के मामले में नक्सलियों से आगे होने के बावजूद हमलों में जवानों की आए दिन हो रही शहादत रुक नहीं रही है, इस पर सोचने की जरुरत है।

केन्द्र में मोदी सरकार के सत्ता संभालने के साथ गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने नक्सलवाद को देश की आंतरिक सुरक्षा की सबसे बड़ी समस्या बताया था और इसके समाधान के लिए इस समस्या से जूझ रहे राज्यों में एक साथ बड़ा अभियान शुरू करने की घोषणा की थी।परंतु स्थिति इसके ठीक विपरीत दिखाई देती है। खासकर बस्तर के मामले में तो यही लगता है। बस्तर में तैनात सुरक्षा बलों को कमाण्ड कौन कर रहा? सुरक्षा बलों में क्या आपसी तालमेल का अभाव है? जब कोई रोड ओपनिंग पार्टी निकलती है तो उसकी सुरक्षा का खास ध्यान क्यों नहीं रखा जाता है? कुछ दिनों की इस शंाति को पढऩे में तो कहीं चूक नहीं हो रही है।

नक्सली सुरक्षा बलों को निशाना बनाकर हथियार भी लूट ले जा रहे हैं। अभी तक वे 9 ग्रेनेड लांचर लूट चुके हैं। ऐसे घातक हथियार उनके हाथ आने के खतरे को भांपा जा सकता है। सुरक्षा बलों के हथियारों का उनके ही खिलाफ हमले में इस्तेमाल होने की यह स्थिति बड़ी और खतरनाक लड़ाई की ओर ले जा सकती है।सोचने का नहीं कुछ करने का वक्त है|

लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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