सीनियर सिटीजंस को बंदूकों के लाइसेंस दे दो

जगदीश तपिश। वृद्धावस्था में मानव शरीर अत्यंत क्षीण हो जाता है  में यदि  गुंडा बदमाश उनपर हमला करे तो उससे सुलझना वृद्ध जनों शारीरिक क्षमता से बाहर हो जाता है -लेकिन तब  भी बचाव की  कोशिश तो की ही जाती है। अक्सर वृद्धावस्था तक पहुँचते पहुंचते बच्चे जवान इधर उधर नौकरी या रोजगार के लिए चले जाते  हैं और माता पिता अकेले रह जाते  हैं।

अब अगर ये  भी मान लिया जाए की बच्चे कहीं शहर में ही नौकरी या बिजनिस करते हैं तब भी वृद्धों को अकेले ही रहना पड़ता है। बदमाश इसी अकेलेपन का फायदा उठा कर उनकी हत्या तक करने में नहीं हिचकते।

देश में लगातार वृद्धजनों की हत्याओं मामले बढ़ते रहे हैं। कई बार संपन्न परिवारों में नौकरों द्वारा ही लालचवश वृद्धों की हत्या कर दी जाती है। अब ये अलग बात है की बाद में अपराधी पकडे भी जाते हैं लेकिन तब भी वृद्धों की सुरक्षा का सवाल अपनी जगह यथावत रहता है ।

तब प्रश्न उठता है की सरकार द्वारा सीनियर सिटीजन की सुरक्षा के क्या उपाय किये जाते हैं। बस इतना की सूचना मिलने पर पुलिस तत्काल घटनास्थल पहुंचकर कार्यवाही करने के तत्पर रहती है लेकिन पुलिस को सूचना दिए जाने और पुलिस के पहुंचने तक के अंतराल में अपराधी अपराध करके फरार हो जाते हैं। वृद्धों सीनियर सिटीजन को प्रभावी सुरक्षा प्रदान किये जाने का सबसे बेहतर -उपाय भी शासन के पास है। यदि शासन सीनियर सिटीज़न के हक़ में शस्त्र लायसेंस प्रदान करने की प्रक्रिया को सरल कर उनके आवेदन पर निश्चित समय सीमा में  रिवाल्वर -पिस्टल - हलकी गनों हेतु आत्मरक्षार्थ लायसेंस प्रदान किया जाना अनिवार्य कर दे ?-ऐसा किये जाने से वृद्ध सीनियर सिटीजन अकेले रहते हुए भी स्वयं सुरक्षा के प्रति काफी हद तक आश्वस्त रह सकते हैं। सरकार को वृद्धजनों की सुरक्षा के प्रति अपनी इच्छाशक्ति का परिचय देना चाहिए। यदि शासन सुझाव पर अमल करता है तो ये अमल वृद्धों की वृद्धों सुरक्षा में मील  पत्थर साबित हो सकता है।

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