उपदेश अवस्थी@लावारिस शहर। लगता है मप्र में तेल माफिया आकार ले रहा है। कुछ समय पहले मप्र शासन ने बिना हेलमेट पेट्रोल-डीजल पर प्रतिबंध लगाया था, हाईकोर्ट ने स्टे लगाया, फिर भी कई कलेक्टरों ने प्रतिबंध जारी रखा, शिवपुरी कलेक्टर ने तो एक पेट्रोल पंप ही सील कर डाला। मीडया ने बवंडर मचाया तो मामला शांत हुआ, अब NGT कूद पड़ा है। आदेश जारी किए हैं कि जिनके पास पीयूसी ना हो, उन्हें पेट्रोल-डीजल ना दिया जाए।
राजधानी भोपाल स्थिति नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने अपने एक अहम आदेश में साफ किया है कि पॉल्यूशन अंडर कंट्रोल सर्टिफिकेट (पीयूसी) दिखाए बिना वाहन मालिकों को पेट्रोल-डीजल-गैस न दें। पेट्रोल पम्प-गैस एजेंसी संचालक इसका गंभीरता से पालन सुनिश्चित करें।
क्या प्रभाव पड़ेगा
इस आदेश के बाद कालाबाजारी शुरू हो जाएगी। 75 का पेट्रोल 85 में दिया जाएगा। तेल माफिया को 10 रुपए लीटर का फायदा होगा। पूरे प्रदेश में एक दिन में 10 करोड़ से ज्यादा। फिर यह रकम पेट्रोल पंप संचालक, एनजीटी और दूसरे मानीटरिंग अफसरों के बीच बांट ली जाएगी। यह अनुमान इसलिए, क्योंकि ऐसा ही होता आया है। तमाम तरह के प्रतिबंधों के बाद वस्तु की उपलब्धता आसान नहीं रहती और लोग उसे ब्लेक में खरीदने लगते हैं।
कैसे जांचेंगे PUC
एनजीटी ने कहा है कि बिना पीयूसी पेट्रोल-डीजल ना दें। मान लीजिए एक व्यक्ति अपने हाथ में पीयूसी लिए खड़ा है तो यह पेट्रोल पंप संचालक यह कैसे पता लगाएंगे कि यह असली दस्तावेज है, कूटरचित नहीं है। इन दिनों जब इंदौर कलेक्ट्रेट में फर्जी प्रमाण पत्रों के मामले सामने आ रहे हैं, सरकारी दस्तावेजों की कूटरचना की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। पेट्रोल पंप संचालक कोई सरकारी अथॉरिटी तो है नहीं जो सिस्टम में जाकर जांच ले, यह काम तो सरकारी मशीनरी ही कर सकती है।
अपना काम दूसरों पर क्यों थोपना
सवाल यह है कि पर्यावरण की सुरक्षा सरकार का काम है, जनता जागरुक हो सकती है लेकिन उसकी जिम्मेदारी तय नहीं की जा सकती। एक चोर को पकड़ने के लिए पूरे समाज को मुफ्त में चौकीदारी की ड्यूटी नहीं सौंपी जा सकती। इसके लिए सरकार के पास कर्मचारी होते हैं, कम पड़ रहे हैं तो और नियुक्तियां कर लें। जो चोरी करे, उसे दण्डित करें। चालान की रकम 10 गुना बढ़ा दें, लेकिन इस तरह निजी हाथों में सरकारी काम सौंपना कतई न्यायोचित नहीं कहा जा सकता।
सिर्फ एक सवाल
यह गोलमाल क्या है। क्यों पेट्रोल-डीजल का आम आदमी की पहुंच से दूर कने का षडयंत्र किया जा रहा है। कभी ये विभाग, कभी वो विभाग। क्या मप्र में तेल माफिया जड़ें जमा रहा है। क्या मप्र में पेट्रोल-डीजल को ब्लेक में बेचने की प्लानिंग चल रही है। पेट्रोल-डीजल को आम उपभोक्ताओं के लिए सुलभ नहीं रहने दिया जा रहा ताकि हाहाकार मचे और काम बन जाए। सवाल सिर्फ एक है, खेल क्या है और किस स्तर पर चल रहा है ?
