इंदौर। खरगोन जिले के ग्राम सिप्टान में नमाज अदा करने को लेकर लगी याचिका पर हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने फैसला सुनाया है कि मुस्लिम समुदाय को उनकी निजी भूमि पर नमाज अता करने से रोका नहीं जा सकता है।
हाईकोर्ट ने निचली अदालत के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें निजी भूमि पर नमाज अदा करने पर रोक लगाई गई थी। फैसला हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति एससी शर्मा ने सुनाया। यह मामला पांच साल से विभिन्न अदालतों में चल रहा था। फैसले में हाईकोर्ट ने टिप्पणी की कि निचली अदालत को परिस्थितियों, तथ्य व गुणदोषों के आधार पर सुनवाई करना चाहिए। फैसला 18 मार्च को सुनाया गया, लेकिन इसकी कॉपी बुधवार को सामने आई।
ग्राम सिप्टान के सिद्दीकी ट्रस्ट के सदर (अध्यक्ष) मोहम्मद जुबैर सैय्यद ने हाईकोर्ट में याचिका दायर करते हुए नमाज पढ़ने देने की स्वतंत्रता मांगी थी। इनकी ओर से वकील मोहम्मद इशाक खान और मोहम्मद इकबाल खान ने पक्ष रखा कि ट्रस्ट की निजी भूमि पर कुछ समुदाय के लोग नमाज अदा करने से रोकते हैं। वे कहते हैं कि यह सार्वजनिक भूमि है, इसलिए नमाज अदा नहीं कर सकते। जब यह साबित किया गया कि जमीन निजी है तो दूसरे पक्ष ने कोर्ट में केस लगाया। कसरावद (खरगोन जिला) की सिविल अदालत ने वहां नमाज अदा करने पर रोक लगाने का फैसला सुनाया। फैसले को प्रथम अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, मंडलेश्वर की कोर्ट में चुनौती दी गई। कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को सही मानते हुए अपील खारिज कर दी। जब मामला हाईकोर्ट पहुंचा तो कसरावद और मंडलेश्वर की अदालत के फैसले निरस्त कर दिए गए।
महिला ने दान की थी जमीन
सिप्टान में 25-30 मुस्लिम परिवार हैं। गांव में मस्जिद नहीं होने से वे नमाज पढ़ने दूसरे गांव जाते थे। वहां तक पहुंचने के लिए एक नदी पार करना पड़ती थी। गांव की महिला हसीना बी ने मदरसे के लिए 9 अक्टूबर 2010 को जमीन खरीदी। बाद में इसे समाज को दान कर दिया। समाज ने सिद्दीकी ट्रस्ट बनाया और इस जमीन पर नमाज अदा करने लगे।
मामला एक नजर में
2010 में अन्य समुदाय द्वारा नमाज पढ़ने का विरोध करने पर मामला कोर्ट में पहुंचा।
30 मार्च 2014 को कसरावद कोर्ट और 16 सितंबर 2014 को (अपीलीय न्यायालय) अतिरिक्त जिला जज ने फैसला सुनाया। इसके बाद मामला हाईकोर्ट पहुंचा।