राजेश शुक्ला/अनूपपुर। जिले के पुष्पराजगढ़ जनपद पंचायत अंतर्गत ग्राम पंचायत पिचरवाही के ग्राम बेलापानी में बैगा तथा गोंड आदिवासियों की 500 की आबादी निवास करती है, एक तरफ इन जनजातियों के लिए किए जाने वाले खर्च के दावे और दूसरी तरफ सरकारी की 100 प्रतिशत योजनाओं से अंजान ग्रामीण। आज तक इन्हे किसी भी योजना का कोई लाभ नहीं मिला। क्या आप समझ रहे हैं इसकी गंभीरता, किसी भी योजना का कोई लाभ नहीं मिला।
इस ग्राम में न तो सड़क है न स्वास्थ्य के लिए कोई सुविधा और बिजली के बारे में गांव के लोगो ने सिर्फ सुना है, इतना ही नही मनरेगा जैसी योजना भी यहां कभी फलीभूत नही हो पाई गांव के पुरूष आदिवासी हर वर्ष पलायन कर अपना और अपने परिवार का जीवकोपार्जन करते है।
जिले भर में आदिवासियों के विकास और उन्हे समाज की मुख्यधारा से जोडऩे के नाम पर करोड़ो रूपए स्वाहा किए जा चुके है। हर वर्ष नई योजना और नया बजट किन्तु उद्देश्य एक मात्र विकास का, शासन और प्रशासन की तमाम दावो की पोल खोल रहा है पुष्पराजगढ़ जनपद पंचायत का ग्राम बेलापानी, इस ग्राम में संरक्षित जनजाति के बैगा आदिवासी और गोड़ निवास करते है बाहर की दुनिया इनके लिए किसी दिवास्वप्र से कम नही है।
नाम बेलापानी, लेकिन पानी की बूंद तक नहीं
इस ग्राम का नाम वर्षो पूर्व बेलापानी रखा गया था किन्तु वर्तमान में पानी के लिए ही सबसे ज्यादा जद्दोजहद करनी पड़ती है, पेयजल दैनिक निस्तार के लिए ग्रामीण पहाड़ी नाले पर आश्रित है, गर्मियों में यह नाला भी सूख जाता है और पानी की आपूर्ति दूसरे गांव से लगभग पांच किलोमीटर से की जाती है, गांव में पिछले दशक में चार हैण्डपंप कराए गए थे जो अब किसी मीनार की तरह ग्रामीणो को मुंह चिढ़ा रहे है।
स्वास्थ्य सुविधाएं: वो क्या होतीं हैं
आंगनबाड़ी, उप स्वास्थ्य केन्द्र और दूसरी उन तमाम सुविधाओं से इस ग्राम के ग्रामीण वंचित है, गांव में किसी भी गर्भवती महिला को आज तक किसी भी तरह का टीकाकरण नही किया गया, नवजात शिशु भी टीकाकरण के अभियान से वंचित ही रहते है। बीमार होने पर मरीज को कावंर में बैठाकर पहले 15 किलोमीटर की दूरी तय कर लेढरा और उसके बाद वहां से राजेन्द्रग्राम ले जाया जाता है।
योजनाएं: वो क्या होता है
कागजो में अवतरित होने वाली तमाम शासकीय योजनाएं बेलापानी के धरातल तक पहुंचने से पूर्व ही दम तोड़ देतीं है, वृद्धा पेंशन योजना, विधवा पेंशन योजना, विकलांग पेशन योजना के साथ ही एक रूपए किलो चावल और गेहूं जैसी सुविधा का लाभ ग्रामीणों ने आज तक नही लिया आज भी कोदो, कुटकी के साथ जंगल में मिलने वाले कंदमूल और गिरौठा खाकर आदिवासी ग्रामीण अपनी क्षुधा शांत करते है।
एक मात्र युवक शिक्षित
जीर्णशीर्ण अवस्था में गांव में विद्यालय के नाम पर जर्जर भवन उपलब्ध है, जहां शिक्षा की व्यवस्था शिक्षक की इच्छा पर निर्भर करता है, गांव की किसी भी लड़की ने पांचवी से ज्यादा तक की पढ़ाई नही की वहीं गोपालदास कुशराम इस गांव का एक मात्र युवक है जिसने तमाम विपरीत परिस्थतियों के बाद मास्टर डिग्री हासिल की।
कहां चले जाते हैं विकास योजनाओं के करोड़ों
बैगा विकास प्राधिकरण का गठन करके उसे प्रत्येक वर्ष करोड़ो रूपए बैगाओं के संरक्षण व उनके उत्थान के लिए खर्च किए जा रहे है, बावजूद इसके बेलापानी जैसे दर्जनो गांवो में बैगाओं की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। विज्ञापनो और दीवारों पर आदिवासियों की तस्वीरों के साथ विकास के बड़े-बड़े दावे किए जा रहे है जबकि स्थिति ठीक विपरीत है।
कलेक्टर भी बैगा: दोनों अंजान
इस जिले के तो कलेक्टर भी बैगा आदिवासी जैसे ही निकले। आदिवासियों को योजनाओं का पता नहीं है, कलेक्टर आदिवासियों के हाल से अंजान हैं, पूछने पर कहते हैं 'आपके द्वारा इस ग्राम की जानकारी दी गई है, मै स्वयं जाकर वस्तुस्थिति का जायजा लेने के साथ ही अव्यवस्थाओं को दूर करने के प्रयास किए जाएगें।'
एन.एस. परमार, कलेक्टर, अनूपपुर