इंदौर। सरकार ने गरीबों को खेती करने के लिए जमीन दी थी। यह जमीन विक्रय के लिए नहीं थी परंतु सरकारी मिली भगत से बिल्डर्स ने गरीबों की जमीन हथिया ली और कुछ रुपए देकर उन्हें चलता कर दिया। पूरे 40 साल तक लगातार यह खेल चलता रहा और काली कमाई में मस्त अफसरशाही चुप बनी रही। अब जाकर इस मामले की जांच शुरू हुई है। कलेक्टर आकाश त्रिपाठी ने इस मामले में 67 खरीदारों को नोटिस दिए हैं। प्रकरण उनके पास सुनवाई में चल रहा है।
राऊ क्षेत्र के कैलोद करताल गांव में 1975-80 के दौर में राज्य सरकार ने 14 भूमिहीनों को पट्टे पर जमीन दी थी। भूमिहीनों को यह जमीन खेती के लिए दी गई थी। करीब 30 एकड़ के रकबे में से यह जमीन अलग-अलग टुकड़ों में दी गई। कुछ साल तक तो सबकुछ ठीक रहा, लेकिन 1996 आते-आते भू-माफिया की नजर इस जमीन पर पड़ी। पैसे का लालच देकर उन्होंने भूमिहीनों से यह जमीन अपने नाम करवाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे यह जमीन एक से दूसरे, तीसरे खरीदार से होते हुए बिल्डरों के हाथ में चली गई।
कलेक्टर की बिना अनुमति बिके पट्टे
वास्तव में जिन भूमिहीनों को सरकारी जमीन पट्टे पर दी जाती है, उसमें यह शर्त होती है कि वे इसे बेच नहीं सकते। पट्टे अहस्तांतरणीय होते हैं। यदि बेचना भी हो तो इसके लिए कलेक्टर से अनुमति लेनी होती है, लेकिन भूमिहीनों ने कोई अनुमति नहीं ली।
चंपू अजमेरा के पिता ने कंट्री क्लब को बेची
मामला सामने आने के बाद कलेक्टर आकाश त्रिपाठी ने तहसीलदार से जांच कराई। जांच में सामने आया कि इस जमीन का एक टुकड़ा बिल्डर रीतेश उर्फ चंपू अजमेरा के पिता ने खरीदा। बाद में उन्होंने इसे कोलकाता के एक कारोबारी को बेच दिया, जिस पर कंट्री क्लब नाम का होटल व फॉर्म हाउस बन चुका है।
अफसरों ने कर दिया डायवर्शन
सरकारी जमीन बिकने में अफसरों की मिलीभगत भी सामने आ रही है। जमीन बिकने के बाद इसका नामांतरण और डायवर्शन भी कर दिया गया। अधिकारियों ने डायवर्शन करने से पहले जमीन का रिकॉर्ड भी नहीं देखा कि ये जमीन पट्टे की सरकारी जमीन है।
नोटिस जारी किए हैं
कैलोद करताल में भूमिहीनों को सरकारी जमीन पट्टे पर दी गई थी, लेकिन यह जमीन कंट्री क्लब और अन्य लोगों को बिक गई है। इस मामले में हमने खरीदी-बिक्री करने वाले 67 लोगों को मप्र भू-राजस्व संहिता की धारा-165(7) बी के तहत नोटिस जारी किए हैं। इसकी सुनवाई चल रही है।
आकाश त्रिपाठी, कलेक्टर