पढ़िए विधि आयोग की चालाक सिफारिशें

चुनाव सुधार के लिए विधि आयोग द्वारा इस पेश की गईं सिफारिशों को आप 'चालाक सिफारिशें' कह सकते हैं। आयोग ने अपनी सिफारिशों में आम नागरिक के राजनैतिक अधिकारों को छीन लेने की सिफारिश की है, इतना ही नहीं आयोग आम नागरिकों को नामसझ मानते हुए राइट टू रीकॉल देने से भी इंकार करता है।

विधि आयोग ने बृहस्पतिवार को चुनाव सुधार पर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी। रिपोर्ट में आयोग ने निर्दलीय उम्मीदवार के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने की सिफारिश की है। दलील दी गई है कि निर्दलीय उम्मीदवार ज्यादातर या तो डमी उम्मीदवार होते हैं या फिर गंभीर उम्मीदवार नहीं होते हैं। कुछ निर्दलीय तो अन्य उम्मीदवार के समान नाम होने के कारण मतदाताओं में भ्रम पैदा करने के लिए चुनाव में खड़े हो जाते हैं। आयोग ने कहा है कि जनप्रतिनिधित्व कानून (आरपी एक्ट)की धारा चार और पांच में संशोधन किया जाए और सिर्फ पंजीकृत राजनीतिक दल को ही लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ने की इजाजत दी जाए।

तात्पर्य यह कि आम नागरिक के राजनैतिक अधिकारों को समाप्त कर दिया जाए। यदि वो राजनीति में आना चाहता है तो बाध्यता हो कि उसे किसी ना किसी विचारधारा, किसी ना किसी दल से संबद्ध होना होगा। जबकि इसके खिलाफ स्वतंत्र चुनावों के लिए स्वतंत्र प्रत्याशियों की सिफारिशें पूर्व में की जा चुकीं हैं और पंचायती राज के चुनाव बिना दल वाले प्रत्याशी ही लड़ते हैं।

  • विधि आयोग शायद अध्ययन नहीं कर पाया कि
  • भारत में 250000 ग्राम पंचायतें हैं जिस पर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े सरपंच प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
  • इसके अलावा जिला पंचायत सदस्य, जनपद पंचायत सदस्य, उप सरपंच, पंच, जनपद पंचायत अध्यक्ष एवं जिला पंचायत अध्यक्ष पद की सभी कुर्सियों पर निर्दलीय प्रत्याशी ही प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • भारत की विधानसभा एवं लोकसभाओं में कई बार निर्दलीय प्रत्याशी चमत्कारी रूप से जीतकर बाहर आए हैं।
  • कांग्रेस में तो पार्टी के गलत निर्णय के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लड़कर जीतने की परंपरा रही है। ऐसे हजारों उदाहरण मौजूद हैं।
  • चुनाव लड़ने के अधिकार का हनन आम नागरिक के मूल अधिकारों के हनन और लोकतंत्र को बंधक बनाने का प्रयास कहा जाएगा।

इसके अलावा विधि आयोग ने सिफारिश की है कि किसी भी प्रत्याशी को सिर्फ एक ही सीट से चुनाव लड़ने की इजाजत दी जाए। इसके लिए आयोग ने आरपी एक्ट की धारा 33 (7) संशोधित करने की बात की है जिसमें अभी उम्मीदवार को दो सीटों से चुनाव लड़ने की इजाजत है। विधि आयोग ने लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकायों के चुनाव में एक ही मतदाता सूची इस्तेमाल करने के चुनाव आयोग के सुझाव का भी समर्थन किया है।

स्पीकर आफिस की गरिमा बनाए रखने के लिए संविधान की दसवीं अनुसूची में संशोधन हो।राष्ट्रपति और राज्यपाल ऐसे मामले में चुनाव आयोग की सलाह पर फैसला लेंगे। राजनीतिक दलों और प्रत्याशी के चुनाव खर्च व पार्टी चंदे के बारे में आयोग ने विस्तृत सिफारिशें की हैं। कहा है कि प्रत्याशी के चुनाव खर्च की गिनती की अवधि में बदलाव किया जाए।

हालांकि विधि आयोग अनिवार्य मतदान और नोटा में पड़े मतों के आधार पर उम्मीदवार का चुनाव निरस्त करने और चुने गए उम्मीदवार को वापस बुलाने के लिए राइट टु रिकाल का अधिकार देने के पक्ष में नहीं है। आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति एपी शाह का कहना है कि मौजूदा स्थिति में वे ऐसे अधिकार नहीं दिए जा सकते।


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