भोपाल। व्यापमं मामले में सीएम शिवराज सिंह चौहान लगातार मीडिया से बचते आ रहे हैं। इस मामले में वो चुनिंदा पत्रकारों से ही बात कर रहे हैं और उनके सधे हुए बयान बाहर निकलकर सामने आ रहे हैं। बीते रोज नवदुनिया ने भी व्यापमं मामले में शिवराज सिंह चौहान से चर्चा की। पढ़िए क्या जवाब दिए सीएम शिवराज सिंह चौहान ने:-
आखिर आपकी सरकार इस पूरे मामले की जांच सीबीआई को क्यों नहीं सौंप देती?
इसकी कोई जरूरत ही नहीं है। यह मेरा नहीं बल्कि माननीय न्यायालय का कहना है। जुलाई 2014 में ही हाईकोर्ट ने दिग्विजय सिंह की एक याचिका को खारिज करते हुए सीबीआई जांच की मांग को निरस्त कर दिया था। बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने भी माना कि इस मामले की जांच सीबीआई से कराने की कोई जरूरत ही नहीं है।
दिग्विजय सिंह ने दो ऐसे मोबाइल नंबरों का खुलासा किया है, जिनका इस्तेमाल व्यापमं घोटाले में हुआ है। साथ ही उन्होंने आरोप लगाया कि इनका इस्तेमाल आपके परिजन करते थे?
इससे बड़ा कोई मजाक नहीं हो सकता। वो इतने घटिया स्तर पर उतरकर राजनीति करेंगे, यह हम सोच भी नहीं सकते। उनके सभी आरोप निराधार हैं। मेरे परिजन ने कोई एसएमएस फारवर्ड नहीं किया।
इस पूरे मामले में मंत्री सहित कई आरोपी जेल में हैं। लेकिन आपके स्टाफ में रहे प्रेमकुमार को जमानत मिल गई। क्या यह संयोग भर है?
देखिए, यह सब फैसला करने वाला कोर्ट है। फैसला सुनाने का काम मेरा नहीं है। कोर्ट पर कोई राज्य सरकार का प्रभाव तो होता नहीं है कि वो फैसले में दखलअंदाजी कर सके।
पहले मप्र में नौकरी पाने के लिए मूल निवासी होने की शर्त को खत्म करना, फिर अधिकांश सरकार भर्ती की जिम्मेदारी व्यापमं को देना और आखिर में यह घोटाला सामने आना। यह सरकार के फैसले के प्रति आम जनता के मन में शक पैदा करता है।
जहां तक मूल निवासी होने का सवाल है तो यह तो भारत के हर नागरिक का मूल अधिकार है कि वो अपनी काबिलियत के आधार पर कहीं भी नौकरी हासिल कर सके। जहां तक व्यापमं को भर्ती की जिम्मेदारी सौंपने का मुद्दा है तो हमने पारदर्शिता बढ़ाने और भर्तियों में एकरूपता लाने के लिए यह फैसला किया था। इसके पहले तो पटवारी हो या सिपाही हर किसी की भर्ती स्थानीय स्तर पर अधिकारियों की मनमानी से हो रही थी।
द्विवेदी कमेटी ने विस में हुई भर्तियों के बारे में अपनी रिपोर्ट वर्ष 2006 में ही दे दी थी। लेकिन इतने सालों बाद अब जाकर उस मामले में दिग्विजय सिंह व श्रीनिवास तिवारी के खिलाफ केस दर्ज करने से ऐसा लग रहा है कि ये कार्रवाई राज्य सरकार बदले की नीयत से कर रही है।
देखिए, पहली बात तो यह है कि इस मामले में पुलिस में शिकायत विस सचिवालय ने दर्ज करवाई है न कि राज्य सरकार ने। वैसे भी हमारी सरकार बदले की भावना से इस तरह की घटिया राजनीति नहीं करती है।
फिर आखिर विस को शिकायत दर्ज कराने में नौ साल का लंबा वक्त क्यों लग गया।
देखिए, विस को जब रिपोर्ट मिली तब उसने यह कार्रवाई की। हमने तो पहले ही द्विवेदी कमेटी की सिफारिश के मुताबिक विस घोटाले की जांच सीबीआई को भेजी थी। लेकिन सीबीआई ने यह कहकर जांच से इंकार कर दिया था कि राज्य सरकार इस मामले की जांच करने में सक्षम है।
क्या आपको लगता है कि एफआईआर दर्ज होने के बाद भी राज्यपाल को पद पर बने रहने का अधिकार है।
देखिए, राज्यपाल का पद संवैधानिक होता है। इसलिए मेरा इस मुद्दे पर कोई भी टिप्पणी करना मुनासिब नहीं है।