भोपाल। प्रदेश कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता के.के. मिश्रा ने मंगलवार को राज्य मंत्रिमंडल की हुई बैठक में मंजूर मप्र तंग करने वाला मुकद्देबाजी निवारण विधेयक-2015 को भ्रष्ट मंत्रियों, नौकरशाहों और प्रभावशाली व्यक्तियों को संरक्षित करने वाला तानाशाहीपूर्ण फैसला बताते हुए कहा है कि इससे बेहतर तो यही होता कि मंत्रिमंडल द्वारा प्रदेश को ‘‘महाभ्रष्ट राज्य’’ घोषित करते हुए भ्रष्टाचार करने का विधिवत लायसेंस ही जारी किये जाने का निर्णय ले लिया जाता। उन्होंने कहा कि पार्टी इस निर्णय के विरोध में जमीनी संघर्ष के साथ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटायेगी।
आज यहां जारी अपने बयान में मिश्रा ने कहा कि इस विधेयक के माध्यम से कतिपय भ्रष्ट मंत्री, नौकरशाह और प्रभावशाली लोग उनके द्वारा किये गये प्रामाणिक भ्रष्टाचार के संभावित खतरों से भयभीत हैं। इन्हीं लोगों से जुड़े संगठित गठबंधन ने इस निर्णय के माध्यम से हमारे संवैधानिक मूल्यों, न्यायिक/ मानव अधिकारों, अभिव्यकित की स्वतंत्रता को षड्यंत्रपूर्वक दबाने का चुनौतीपूर्ण दुस्साहस किया है। कांगे्रस उन्हें कामयाब नहीं होने देगी, क्योंकि आजादी के बाद आम जनता को न्याय दिलाने हेतु प्रिवीपर्स की समाप्ति और बैंकों के राष्ट्रीयकरण जैसे क्रांतिकारी कदम उठाने के बाद कांगे्रस ने ही देश में सूचना का अधिकार कानून-2005, लागू कर भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के विरूद्व क्रांतिकारी कदम उठाया है, जिसकी वजह से आज देश और प्रदेश में भ्रष्टाचार के मामले और भ्रष्टाचारियों के चेहरे सार्वजनिक हो रहे हैं। प्रदेश मंत्रिमंडल का उक्त निर्णय इन्हीं स्थितियों से भयभीत होने की एक गंभीर कवायद है।
मिश्रा ने मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान से जानना चाहा है कि एक ओर उनकी सरकार द्वारा भ्रष्टाचार को लेकर ‘जीरो टालरेंस’ की बात प्रचारित की जा रही है, भ्रष्टाचार को लेकर प्रदेश विधानसभा में विशेष न्यायालय अधिनियम-2011 पारित करवाया गया, जो आज खोदा पहाड़ निकली चुहिया की तर्ज पर काम कर रहा है। अब भ्रष्टाचार को लेकर ‘जीरो टालरेंस’ के प्रणेता की ही अध्यक्षता में संपन्न मंत्रिमंडल की बैठक में उक्त प्रस्तावित विधेयक को मंजूरी मिल गई है। लिहाजा, भ्रष्टाचार को लेकर उसके प्रणेता के ही दो अलग-अलग स्वरूप उनकी किस पारदर्शी सोच को दर्शा रहे है, स्पष्ट होना चाहिए?