राकेश दुबे@प्रतिदिन। राहुल बाबा की ताजपोशी भी रीति-नीति से हटकर हो सकती है। पहले पार्टी संविधान में संशोधन के जरिए उपाध्यक्ष बने राहुल कांग्रेस अधिवेशन से पहले अध्यक्ष घोषित हो सकते हैं। राहुल को हर हाल में कांग्रेस अध्यक्ष बनाने पर तुली पार्टी अब अधिवेशन तक इंतजार करने के पक्ष में नहीं है, और इस ताजपोशी कि तैयारी दिल्ली पुलिस को महंगी पड़ रही| सारी बलायें घूमफिर कर दिल्ली पुलिस के मत्थे आ गई हैं और बस्सी जवाब देते फिर रहे हैं| मजेदार बात यह है कि जवाब भी वही मांग रहे है जिन्होंने पल-पल की जानकारी जुटाने का जिम्मा सौंपा था| राजनीति में ऐसा ही होता है|
राहुल बाबा का गुट फौरन उनकी ताजपोशी चाहता है| अधिवेशन तक का इंतजार उसे मंजूर नहीं है| दूसरी और पार्टी में इस योजना को लेकर भारी विरोध है। जहां टीम राहुल इस प्रस्ताव के हक में है, वहीं पार्टी का एक तबका अधिवेशन तक रुकने के पक्ष में है। पार्टी के इस फैसले के पीछे पार्टी में राहुल को लेकर बढ़ते विरोध से जोड़कर देखा जा रहा है। जबकि, अधिवेशन में उनके नाम पर मुहर महज औपचारिकता साबित होगी।
दिल्ली सरकार इस मामले कि खबर हर क्षण चाहती है| जैसे भी हो, पुलिस और उसकी खुफिया शाखा को सारी नवीनतम जानकारी रखें कि मजबूरी है | जैसे भी मिले | बेचारे बस्सी यह तो नहीं कह सकते हैं कि उस जानकारी का उपयोग राजनीतिक आका कैसे करें | मध्यप्रदेश में एक मंत्री के घर के बाहर राजस्थान पुलिस के आदमी हमेशा मिलते है | मध्यप्रदेश के ही दो शीर्ष मंत्रियों कि टेलीफोनी कानाफूसी कि गुपचुप रिकॉर्डिंग भी बाज़ार में है|
वैसे मार्च का महीना, पुलिस और कांग्रेस नेतृत्व में कुछ अजब सा कनेक्शन है। इससे किसे लाभ है किसी से छिपा नहीं है| अतीत में भी ऐसे ही एक कनेक्शन की वजह से राजनीति को खामियाजा भुगतना पड़ा है। कांग्रेस ने पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी की सुरक्षा समीक्षा पर जासूसी का रंग चढ़ा दिया है। 24 साल पहले मार्च 1991 में चंद्रशेखर की सरकार को कांग्रेस नेता की जासूसी कराने की वजह से सत्ता से हाथ धोना पड़ा था। अब बेचारे बस्सी की शामत आई हुई है|