राकेश दुबे@प्रतिदिन। नरेंद्र मोदी के सूट की नीलामी को लेकर समाचार गर्म है| ये समाचार और उसकी उत्पत्ति दोनों ही दिलचस्प हैं| नरेंद्र मोदी देश के पहले बड़े नेता और प्रधानमंत्री हैं, जिनकी वेशभूषा की शैली इतनी चटख और रंगीन है। आजादी के आंदोलन से अब तक हमारे नेताओं की सार्वजनिक वेशभूषा अमूमन सफेद कुरता-पाजामा रही है। अगर वे कुछ रंगीन पहनते भी हैं, तो बहुत हल्के रंग का। महिला राजनेता भी ज्यादातर हल्के रंग की साड़ियां ही पहनती हैं। उनकी यह शैली नये राजनेताओं मिजाज के अनुकूल है और ख़ास बात यह कि मोदी अपनी जीवन शैली और पसंद को छिपाते नहीं हैं, न उनमें इसे लेकर कोई अपराध बोध है।
उनके उपहारों जिसमे चर्चित सूट भी शामिल है की नीलामी की जा रही है और नीलामी से मिलने वाला पैसा ‘स्वच्छ भारत’ अभियान में लगाया जाएगा। सूट कि बोली 1.25 करोड़ रुपये की लग चुकी है। समर्थक यह कह रहे हैं कि मोदी ने भेंट मिली चीजों को जनता की भलाई के लिए इस्तेमाल किया। विरोधी कह रहे हैं कि इस सूट की वजह से जो आलोचना हुई, उसकी भरपायी के लिए यह प्रचार का हथकंडा है। यह तकरीबन नामुमकिन ही था कि इतनी आलोचना के बाद मोदी फिर से उस सूट को पहनते, इसलिए अगर किसी अच्छे काम में उसका उपयोग होता है, तो कोई बुरी बात नहीं है।
‘स्वच्छ भारत’ अभियान एक बहुत महत्वपूर्ण अभियान है और भारत को इसकी बहुत जरूरत है। भारत को स्वच्छ करने के लिए बहुत ज्यादा पैसे की नहीं, बल्कि लोगों को जागरूक करने व सरकारी मशीनरी को सक्रिय करने की जरूरत है। अगर अपने देश में हम सफाई के प्रति थोड़े भी सतर्क हो जाते हैं, तो स्वास्थ्य संबंधी खर्च में काफी कटौती हो सकती है। वैसे यह भी कोई अच्छी बात नहीं है कि हमारे देश में स्वच्छता के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अभियान चलाना पड़े।
सफाई किसी समाज की स्वाभाविक आदत होनी चाहिए, लेकिन हमने गंदगी फैलाने को अपनी स्वाभाविक आदत बना लिया है। वस्त्र विन्यास भी आदत होती है, पर प्रदर्शन से पहले यह देखना चाहिए कि हम जिनका प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, वे कैसे दिन गुजार रहे हैं| देर से ही सही, जब जागो तभी सबेरा|
लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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rakeshdubeyrsa@gmail.com
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