व्यंग्य@शैलेन्द्र गुप्ता। जी हाँ आज इस कड़ाके की सर्दी में हम नहाने की चर्चा कर रहे है इसके लिए हम क्षमा प्रार्थी हैं। आइये हम आपको "ना नहाने" की महत्ता बतायें, नहाने की बात पर याद आया, कि अभी पिछले दिनों, एक दिन हमारे मित्र लवलेश जी बोले “यार नहाने जाना है….हमने छूटते ही पूछा “यार! तुम इन सब चक्करो मे कब से पड़ गये? तुम तो वैसे ही बहुत साफ़ सुथरे दिखते हो, नहाने की क्या जरूरत है?”
लोगों को नहाने के मामले पर सेन्टी करने के लिये यही उपाय बेस्ट रहता है, आप बस इतना बोल दो, बाकी तो फ़िर तो अगला बोलेगा। स्कूल कालेज टाइम मे इस वाक्य को हम लोग कई प्रकार से प्रयोग कर लेते है। गुस्सा दिलाना हो तो “तुम तो वैसे ही गन्दे हो, नहा के भी क्या उखाड़ लोगे?” या फ़िर “तुम तो हमेशा ही साफ़ सुथरे दिखते हो, अभी पिछले रविवार को ही तो नहाये थे, आज क्या जरुरत आन पड़ी” वगैरहा वगैरहा।
लवलेश जी बहुत ही भारी मन से बोले “नही यार! आज तो नहाना ही पड़ेगा, मन्दिर जाना है, जिस दिन मन्दिर जाना होता है, उस दिन नहाना जरूरी होता है. अगर नही नहाये तो, घर मे बहुत बवाल हो जायेगा, हम समझ गये बेचारे के पर ऊपर से नहाने के लिये बहुत प्रेशर है और बेचारे कुछ कह भी नही पा रहे है। हम समझ गये कि अपने लवलेश के साथ ज्यादती हो रही है, वो भी हमारी सरजमीं पर जहाँ अगर कड़ाके की सर्दी हो तो अधिकांश लोग पानी को धोखा देकर चले आते है या फिर आधुनिक युग के तरीके इख़्तियार करते है जैसे
• *नहाये हुए व्यक्ति को छू कर यदि 'त्वम् स्नानं मम् स्ननां ' बोला जाये तो छूने वाला व्यक्ति भी नहाया हुआ माना जायेगा.
• *Online Bath- कंप्यूटर पर गंगा के संगम की फोटो निकाल कर उस पर 3 बार माउस क्लिक करें और फेसबुक पर उसे Background Photo के रूप में लगाएं.
• *Mirror Bath- दर्पण में अपनी छवि को देखकर एक-एक कर तीन मग पानी शीशे पर फेंकें और हर बार "ओह्हहा" करें.
• *Virtual Bath- सूरज की ओर पीठ कर अपनी छाया पर लोटे से पानी की धार गिराएँ और जोर-जोर से "हर-हर गंगे" चिल्लाएं.
खैर हम तो यहाँ लवलेश जी की बात कर रहे थे, बेचारे लवलेश जी को सुना तो मन भर आया।
एक और हमारे दोस्त की दास्ताँ सुनकर तो हम दंग रह गए, ये साहब है "नैन कुमार भार्गव"
इन्होने (नैन कुमार जी) ने बताया कि बचपन मे हम बहुत कम नहाते थे, ऐसा नही कि बाथरूम मे नही जाते थे, जाते थे, पूरा पूरा आधा घन्टा बाथरूम मे बिताते थे। इस आधे घन्टे मे से पच्चीस मिनट सोचने मे लगा देते थे कि पानी डालूँ या ना डालूँ…डालू या ना डालूँ. नहाने का मूड हुआ तो पाँच मिनट मे फ़टाफ़ट नहाकर बाहर निकल आते औरा यदि मूड नही बना तो फ़िर बाल्टी गिराकर वापस, बाल थोड़े से गीले करते हुए टहलते हुए बाहर आ जाते। बाल्टी का पानी गिराने मे इतनी एक्स्पर्ट थे कि अच्छे से अच्छा भी नही समझ पाता।
लेकिन .हाय रे बैरी जमाना…….शादी के बाद जीवन साथी सिर्फ हमारे नहाने पर नज़र गड़ाए रखता है, नैन कुमार जी ने हमें बताया, जो में आपको भी बताना चाहता हूँ नैन कुमार जी ने कुछ सूत्र बचपन मे(“ना नहाने के सिद्दान्त) बनाये थे, अब बचपन तो निकल गया, सुत्र रह गये, आप भी नजर डाल लीजिये,
1. नहाते का समय अक्सर वो चुनिये, जब घर के बड़े बुजुर्ग अपने अपने कामों मे व्यस्त हो, जैसे माता जी पूजा वगैरहा में जिससे कोई आप ही पर गौर न करे,
2. गुसलखाने मे वक्त गुजारना सीखिये, कोई जरूरी नही कि आप नहायें, लेकिन वहाँ बैठिये जरूर
3. अक्सर बीमार होने का बहाना कीजिये…बुखार सही तरीका है, अगर शरीर को गरम करना हो तो बगल मे प्याज दबाकर रात को सो जाइये, सुबह बाडी टेम्परेचर मनमाफ़िक मिलेगा….
4. हमेशा ऐसे व्यक्ति के साथ रहें जिसकी स्वच्छता में गुडबिल मानी जाती हो, आपका स्टेटस अपने आप नहाने वाला हो जायेगा
5. अक्सर साबुन को नाली से बहा दीजिये, आखिर कितने साबुनो की बलि दी जा सकती है, एक ना एक दिन तो साबुन लगाने से बचेंगे|
6. कंकड़ स्नान(जिसमे साबुन ना लगाना पड़े) का भरपूर समर्थन कीजिये।
7. खड़े रहकर बाल्टी को अपनी ऊँचाई तक उठाइये और धीरे धीरे पीठ के पीछे की तरफ़ पानी को फ़ैलाना शुरु कीजिये, स्मरण रहे पानी अगले हिस्से को छूकर भी न जाने पाये
8. गुसलखाने से बाहन निकलने से पहले ये जरुर देख लें कि आपके बाल गीले है कि नही, नही है तो कर लीजिये।
9. अक्सर साबुनों की बुराई करिये और कोई ऐसा साबुन डिमान्ड करिये जो आसपास ना मिलता हो। कहिए मौजूद साबुन से एलर्जी होती है इसलिए जल्दी से हर-हर गंगे कर ली।
अब जब आपने यह व्यंग्य पूरा पढ़ ही लिया है तो आपको पूरे मकर संक्रांति सहित 108 स्नानों का पुण्य प्राप्त हो गया है। अब जब तक आपके बदन से पसीने की बदबू ना आने लगे, आपको नहाने की आवश्यकता नहीं हैं
