भोपाल। किसी जमाने में एक एक एडमिशन के लिए बड़े बड़े व्हीआईपी को नखरे दिखाने वाले इंजीनियरिंग कॉलेजों के संचालक अब पाई पाई बचाने के लिए रहम की भीख मांग रहे हैं। निर्धन छात्रों की फीस में 1 रुपया भी कम ना करने वाले कॉलेज संचालकों ने संबद्धता शुल्क कम करने के लिए राज्यपाल से गुहार लगाई है।
मध्यप्रदेश में इंजीनियरिंग कॉलेज संचालकों की सारी अकड़ निकल गई है। इन दिनों वो एक एक एडमिशन के लिए दर दर की ठोकरें खाने को खुशी खुशी तैयार हैं, फिर भी हालात यह हैं कि उन्हें स्टूडेंट्स नहीं मिल रहे हैं। इसी के चलते प्रदेश के 64 प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेजों ने विभिन्न ब्रांच की करीब आठ हजार सीटें सरेंडर कर दी हैं। इसकी वजह हर साल सीटें खाली रहना है। कॉलेज संचालकों का कहना है कि नए शैक्षणिक सत्र के पहले करीब 25 हजार सीटें सरेंडर करने का लक्ष्य रखा गया है।
इसके अलावा राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विवि (आरजीपीवी) द्वारा बढ़ाई गई संबद्घता फीस के निर्णय के खिलाफ प्राइवेट कॉलेज संचालकों के प्रतिनिधिमंडल ने शनिवार को राज्यपाल (कुलाधिपति) रामनरेश यादव से मुलाकात की है। उन्होंने मामले में उचित कार्रवाई करने का आश्वासन दिया है।
प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेजों में हर साल खाली रहती सीटों ने संचालकों की चिंता बढ़ा दी है। इस बार के शैक्षणिक सत्र 2014-15 में भी करीब 55 हजार सीटें खाली रह गई थीं। इसके बाद कॉलेज संचालकों ने सीटें सरेंडर करने का निर्णय लिया था। अब तक प्रदेश के 64 इंजीनियरिंग कॉलेज करीब आठ हजार सीटें सरेंडर कर चुके हैं। यह वही सीटें हैं जो हर साल खाली रह जाती थीं।
इस सत्र में हैं 1 लाख सीटें
प्रदेश में वर्तमान में 222 इंजीनियरिंग कॉलेज हैं। इनमें वर्तमान में सीटों की संख्या करीब 1 लाख है। यदि इंजीनियरिंग कॉलेज संचालक लक्ष्य पूरा करने में सफल हो जाते हैं, तो प्रदेश में इंजीनियरिंग की करीब 75 हजार सीटें रह जाएंगी।
ईसी, आईटी और सीएस की डिमांड कम
पिछले कुछ वर्षों में मुख्य तौर पर जिन ब्रांच की डिमांड में कमी आई हैं। इनमें ईसी, आईटी और सीएस की ब्रांच शामिल है। सभी प्राइवेट कॉलेज का लक्ष्य है कि वो कम डिमांड और खाली रहने वाली ब्रांच की करीब तीस फीसदी सीटें सरेंडर कर दें।
राज्यपाल से की मुलाकात
प्रदेश के प्राइवेट कॉलेज संचालकों ने शनिवार को राज्यपाल यादव से मुलाकात की। कॉलेज संचालकों ने उन्हें बताया कि विवि ने अंडर ग्रेजुएट कोर्स की संबद्घता फीस 60 सीटों के लिए 50 हजार और पोस्ट ग्रेजुएशन की 18 सीटों के लिए एक लाख रुपए कर दी है। जबकि पहले यही फीस यूजी के लिए 10 हजार और पीजी के लिए करीब 20 हजार रुपए थी। संचालकों के मुताबिक कम एडमिशन होने से उनकी आर्थिक स्थिति पहले ही ठीक नहीं है। ऐसे में संबद्घता फीस बढ़ाने से उन्हें कॉलेज संचालित करने में और परेशानी का सामना करना पड़ेगा। लिहाज बढ़ी हुई फीस वापस ली जानी चाहिए। इस पर राज्यपाल ने जल्द ही आरजीपीवी के कुलपति प्रो. पीयुष त्रिवेदी से चर्चा करने का आश्वासन दिया है।
इस बार 80 हजार हुए हैं रजिस्ट्रेशन
प्रदेश के सरकारी और प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेज में जेईई मेन्स के जरिए एडमिशन होते हैं। इस बार इसके लिए करीब 80 हजार रजिस्ट्रेशन हुए हैं। जेईई मेन्स अप्रैल में होना है।
लगातार जारी है चर्चा का दौर
इंजीनियरिंग सीटें खाली रहने को लेकर एसोसिएशन चिंतित है। सीटों को सरेंडर करवाने के लिए एसोसिएशन लगातार कॉलेज संचालकों के साथ बैठक कर रहा है। सीटें कम होंगी तो भरने वाली सीटों पर ज्यादा फोकस किया जा सकेगा। इससे शिक्षा में गुणवत्ता भी आएगी। इस बार 25 हजार सीटें सरेंडर करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। ज्यादा संख्या में सीटें खाली रहने से संदेश भी गलत जाता है।
सुनील बंसल
चेयरमैन, एटीपीआई
गुणवत्ता पर भी दें ध्यान
इंजीनियरिंग कॉलेजों में कितनी सीटें कम हो गई इस बारे में फिलहाल आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता है। एआईसीटीई की ओर से आधिकारिक सूची होने पर ही इस बारे में कुछ कहा जा सकेगा। कॉलेज संचालकों को सीटें सरेंडर करने के साथ ही गुणवत्ता पर भी ध्यान देना।
आशीष डोंगरे
संचालक तकनीकी शिक्षा
