शैलेन्द्र गुप्ता। नई सरकार के गठन के बाद सबसे ज्यादा जिस शब्द का हाहाकार मचा वो था "ईमानदारी", प्रशासनिक लब्ज़ों में इस शब्द के मायने "अपना काम नीति-नियमो से देशहित व् जनहित में करना समझा जाता रहा है, फिल्म "पीके" की भाषा में कहें तो "इ गोले पे भांति-भांति के ईमानदारों की कौम देखने को मिलती है आम धारणा की बात करें तो आज के जमाने में कोई ईमानदार है तो इसका मतलब उसको बेईमानी करने के उचित अवसर नहीं मिले या उसके दिमाग के सभागार में कोई केमिकल लोचा रह गया है जिसका खामियाजा उसको ईमानदारी की जिन्दगी बसर करके भुगतना पड़ रहा है।
नई सरकार बनते ही हल्ला हुआ कि सरकार ईमानदार नौकरशाहों को जिम्मेदारी के काम सौंपेगी। जगह पर ईमानदार और जिम्मेदार अफ़सर जगह जगह पर तैनात भी किये गए ।सरकार ने ईमानदार अफ़सरों का आह्वान किया कि वे आगे आयें और ईमानदारी से काम करें।
यहाँ हमारे सरकार के संचालक मित्रों ने यह तो बताया नहीं कि उसको किस तरह के ईमानदार चाहिये। लेकिन हमारे पास ईमानदारी के मामले में कुछ वैराइटी हाथ लगी है सही और सटीक हो तो हौसला-अफजाही जरूर चाहूँगा।
"ठोस ईमानदार"
इस तरह का ईमानदार जिन्दगी में हमेशा ईमानदारी को तरजीह देता है।काम भले न हो लेकिन ईमानदारी की हमेशा रक्षा करता है। कोई भी काम उसके पास आये वह उसमें कोई न कोई बेईमानी की गुंजाइश देख ही लेता है। बेईमानी की गुंजाइश का पता लगते ही काम को रद्द कर देता है। कभी किसी काम में अगर कोई बेईमानी पकड़ न पाया तो मानता है कि कार्य का प्रस्ताव अव्यवहारिक है। कोई भी सरकारी योजना कैसे हो सकती है जिसमें गड़बड़ी की कोई गुंजाइश न हो? बाद में जब व्यवहारिक प्रस्ताव आता तो उसको उसकी गड़बड़ी के अनुसार उसको निरस्त कर देता है।
"घोषणावीर ईमानदार"
यह ईमानदार हरदम अपनी ईमानदारी का हल्ला मचाते रहते हैं। अपनी हर कमी को अपनी ईमानदारी के आंचल में छिपाते रहते हैं। कोई काम न कर पाये तो कहते हैं बेईमानी हमसे न हो सकेगी। अपनी ’ईमानदारी का चालीसा’ पढ़ने को ही वे अपना फ़ुल टाइम काम मानते हैं।
"चतुर ईमानदार"
चतुर ईमानदार खुद कभी कोई ऐसा काम नहीं करता जिसमें बेईमानी की जरा सी भी गुंजाइश हो। लेकिन इसके चलते वह काम में कभी कोई हर्जा नहीं होने देता। वह जिस भी किसी काम में गड़बड़ी की जरा सी भी गुंजाइश देखता है उसको कभी हाथ नहीं लगाता । एक दो दिन छुट्टी पर चला जाता है और अपने अधीनस्थ को काम करने की सख्त हिदायत दे जाता है। इस तरह वह अपनी ईमानदारी और काम दोनों के बीच संतुलन बनाकर चलता है।
"व्यक्तिगत ईमानदार"
इस तरह का ईमानदार व्यक्तिगत तौर पर बड़ा ईमानदार होता है। लेकिन काम को ईमानदारी से ज्यादा महत्वपूर्ण समझता है। वह काम चोरी को सबसे बड़ी बेईमानी समझता है। इस चक्कर में कई ऐसे भी निर्णय लेता है जो काम के हित में होते हैं लेकिन किसी किसी नियम को शब्दश: पालन न करके उसकी भावना के हिसाब से पालन करता है। इस चक्कर में तमाम अक्सर जांच के चक्कर में फ़ंसा रहता है। लोग उसे बेवकूफ़ ईमानदार कहते हैं।
"कैल्कुलेटिव ईमानदार"
लोकतांत्रिक ईमानदार हमेशा बहुमत के हिसाब से काम करता है। ईमानदारी के निर्धारण में अपना दिमाग नहीं लगाता। साथ के लोग जैसा काम करते हैं उसी के हिसाब से काम करता है। वह मानता है जैसा बाकी लोग करते आ रहे हैं वही ईमानदारी का सही रास्ता है। बहुमत की राय से चलने के कारण कभी कोई ऊंच-नीच हो भी जाती है तो फ़ंसने की गुंजाइश नहीं होती। कभी फ़ंसे भी तो बहुमत के चलते बचने की हमेशा गुंजाइश रहती है।
"बाबला ईमानदार"
ये सबसे खतरनाक टाइप के ईमानदार होते हैं। ये न खुद कभी बेईमानी करते हैं न अपने आप-पास किसी को करने देते हैं। इनको लगता है कि बिना बवाल किये ईमानदारी की रक्षा हो ही नहीं सकती। कालान्तर में यह मानने लगते हैं कि जिस किसी काम में बवाल न हुआ इसका मतलब उसमें बेईमानी हुई है। उसके चलते कभी-कभी पूरे हुये काम को निरस्त करवा कर मानते हैं।
"कलयुगी ईमानदार"
इन लोगों के का मतलब बॉस का आज्ञा का आंख मूंदकर पालन करना होता है। साहब जो कहें वह काम ईमानदारी का होता है बाकी सब बेईमानी। हमारे मित्र ने जानकारी देते हुये बताया कि आजकल इसई तरह के ईमानदार बहुतायत में पाये जाते हैं। वे अपने परिवार और बॉस और परिवार को सुखी रखते हुये खुद भी सुखी रहते हैं।
"चलो आज आपसे पूछते है कि बताओ कि आजकल सबसे ज्यादा किस तरह के ईमानदार प्रभावशाली हैं?