पहली बार पीड़ित पतियों के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। कोर्ट पहुंचने वाले अधिकांश पारिवारिक विवादों में पत्नियों के प्रति सहानुभूति का भाव देखा गया है, लेकिन इस बार सुप्रीम कोर्ट ने पीड़ित पतियों के पक्ष में टिप्पणी की है। मामला केस ट्रांसफर का है। अब तक महिलाओं को उस स्थान पर केस ट्रांसफर की सुविधा थी, जहां आने-जाने में उन्हें ज्यादा परेशानी न सहना पड़े, लेकिन इस बार सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह छूट महिलाओं को ही क्यों मिले और पति ही क्यों परेशानी झेले?

दरअसल, बीते दो दशक में सुप्रीम कोर्ट ने परित्यक्ता पत्नियों के केस ट्रांसफर की कई याचिकाओं को स्वीकार किया है, लेकिन ऐसे ही एक मामले में सुनवाई करते हुए मंगलवार को चीफ जस्टिस एचएल दत्तू और जस्टिस एके सिकरी ने कहा, पति द्वारा दायर केस को महिला द्वारा अपनी सुविधा वाले स्थान पर ट्रांसफर करवाना चलन बनता जा रहा है। उन्हें इसकी अनुमति देने में हमने भी उदारता दिखाई है, लेकिन पतियों के भी कुछ अधिकार हैं?

कोर्ट ने इस मामले में केस ट्रांसफर की अनुमति नहीं दी। साथ ही संकेत दिए किए कि अब वे पति द्वारा दायर केस का अध्ययन करने के बाद तय करेगा कि केस ट्रांसफर करना है या नहीं?

पति द्वारा केस दायर किए जाने के बाद महिलाएं केस को अपने शहर में ट्रांसफर करवा लेती थीं। इससे पति अपनी कामकाजी जिंदगी के बीच भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। अधिकांश मामलों में कोर्ट यह सोचकर केस ट्रांसफर की अनुमति देता रहा है कि पति के घर से निकलने के बाद महिला अपने माता-पिता के यहां चली जाती है। उसे आने-जाने में असुविधा भी होती है।

सुप्रीम कोर्ट में यह व्यवस्था जिस मामले में ही है, जिसमें पति गाजियाबाद का है और महिला मध्यप्रदेश के बैतूल में केस ट्रांसफर करवाना चाहती थी।

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