असम भी देश का हिस्सा है,सरकार !

shailendra gupta
राकेश दुबे@प्रतिदिन। असम के कोकराझार और सोनितपुर जिलों में जो खूनी खेल उग्रवादियों ने खेला, वह हैरत में डालने वाला है। जिस समय पूरी दुनिया आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता की जरूरत महसूस कर रही है, बोडो उग्रवादियों ने चाय बागानों में काम करने वाले कमजोर, गरीब, मासूम आदिवासियों के साथ ऐसी बर्बरता दिखाकर खुद को नरपिशाच आतंकियों की पांत में ला खड़ा किया है। इस हिंसा के दो कारण हैं| एक बंगलादेशी घुसपैठ और दूसरा सरकार द्वरा बातचीत के अधूरे प्रयास|



पहले भी बोडो उग्रवादी जब-तब हिंसा करते रहे हैं, उनकी एक बड़ी शिकायत यह रही है कि बांग्लादेशी घुसपैठिए उनके इलाके में आकर उनकी रोजी-रोटी और धर्म-संस्कृति के लिए चुनौती खड़ी कर रहे हैं और इसके चलते वे अपने ही इलाके में अल्पसंख्यक बनते जा रहे हैं। हालांकि सरकार का तर्क है कि यह शिकायत भी तथ्यों और तर्कों की कसौटी पर पूरी तरह खरी नहीं उतरती। ब्रह्मपुत्र घाटी के तराई वाले इलाकों में बाहरी लोगों का आना बहुत लंबी और धीमी प्रक्रिया का हिस्सा है।

वैसे एनडीएफबी अपनी मांगों को अतिरेकपूर्ण ढंग से उठाने के लिए मशहूर रहा है। स्वायत्तशासी क्षेत्र से बहुत आगे जाते हुए उसका एक धड़ा बोडो इलाकों को एक अलग देश बनाने का नारा भी देता रहा है। स्वाभाविक रूप से भारत सरकार इस मांग को देश के खिलाफ साजिश के रूप में लेती है। ऐसे में अगर सरकार इस संगठन की गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए आवश्यक कार्रवाई करती है तो इसमें कुछ भी अतार्किक नहीं है। लेकिन संगठन इससे परेशान है। इन्हीं कार्रवाइयों के दबाव में दो दिन पहले एनडीएफबी के सोंगबिजित गुट ने धमकी दी थी कि अगर भारत सरकार ने उसके खिलाफ अपना अभियान नहीं रोका तो वह जवाबी कदम उठाएगा।

गौरतलब है कि एनडीएफबी (सोंगबिजित) शांति वार्ता के भी खिलाफ रहा है। बातचीत का रास्ता बंद करने के बाद इसी तरह की चौंकाने वाली घृणित कार्रवाइयां करना इस संगठन की नियति बन गई है। अभी हाल यह है कि सभी तर्कों को ताक पर रख कर यह संगठन 'जिसे भी संभव हो उसे मारने की नीति' पर चल पड़ा है। ऐसे गिरोह को कोई भी समाज अपने बीच कब तक झेल सकता है?

लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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