भोपाल। छत्तीसगढ़ की बैगा आदिवासी महिलाओं की नसबंदी उजागर होने के बाद मप्र में नसबंदी घोटाले की पदचाप सुनाई दे रही है। इस मामले में नया तथ्य यह सामने आया है कि मप्र की प्रशासनिक टीम ने ना केवल संरक्षित जाति की महिलाओं की नसबंदी कर डाली बल्कि उन्हें प्रोत्साहन राशि भी नहीं दी।
छत्तीसगढ़ के लोरमी ब्लॉक में रहने वाली संरक्षित जनजातीय की 15 बैगा महिलाओं की गुपचुप तरीके से मध्यप्रदेश ले जाकर नसबंदी कराने का मामला उजागर होने के बाद प्रशासनिक हलकों में खलबली मची हुई है। छग मीडिया ने बैगा आदिवासियों के गांव जाकर उनसे चर्चा की तो पता चला कि मितानिन और स्वास्थ्य कार्यकर्ता उन्हें नसबंदी कराने लेकर तो गए, लेकिन न तो उन्हें प्रोत्साहन राशि दी गई और न ही उन्हें घर छोड़ा गया। महिलाएं 35 किलोमीटर पैदल चलकर अपने घर पहुंचीं।
बैगा आदिवासी संरक्षित जनजातीय होने के कारण नसबंदी पर पूरी तरह से प्रतिबंधित है। इसके बाद भी मितानीन और स्वास्थ्य कार्यकर्ता पैसे का लालच देकर बड़े पैमाने पर ऑपरेशन करा रहे हैं। ऐसा ही एक मामला लोरमी ब्लॉक के अंतर्गत आधा दर्जन से भी अधिक बैगा गांवों में सामने आया है, जहां पिछले साल एक-एक करके 15 बैगा महिलाओं की मध्यप्रदेश ले जाकर नसबंदी करा दी गई।
मामला उजागर होने के बाद छग मीडिया ने जब गांवों का जायजा लिया तो महिलाओं ने खुलकर अपनी बातें रखीं। ग्राम मौहाभाचा निवासी मानबाई पति करिया बैगा को पिछले साल नसबंदी के लिए मध्यप्रदेश के गोरखपुर लेकर गए थे, जहां उसकी नसबंदी तो कराई गई, लेकिन प्रोत्साहन राशि के रूप में फूटी कौड़ी भी नहीं दी गई। इसी तरह ग्राम मंजूरहा निवासी दशरी बाई पति मोती बैगा का भी ऑपरेशन एमपी के बहारपुर में किया गया था। प्रोत्साहन राशि के रूप में उसे सिर्फ 6 सौ रुपए थमा दिए गए।
मितानिन और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने ऑपरेशन के बाद उसे बहारपुर (दलदल) में ही छोड़ दिया था। दशरी बाई ऐसी ही हालत में 35 किलोमीटर पैदल चलकर अपने घर पहुंची। मंजूरहा निवासी भागमति पति असरू बैगा की नसबंदी भी छत्तीसगढ़-मध्यप्रदेश के बार्डर में स्थित बहारपुर में हुई थी। उसे भी 6 सौ रुपए प्रोत्साहन राशि देकर मौके पर ही छोड़ दिया गया।
ग्राम मौहाभाचा निवासी शांति बाई पति अघ्घन बैगा ने भी अपना दुखड़ा सुनाया। खुद से निकाला टांका नसबंदी जैसे राष्ट्रीय कार्यक्रम में किस हद तक लापरवाही बरती जा रही है इसका अंदाजा लोरमी ब्लॉक में रहने वाली बैगा महिलाओं की स्थिति से लगाया जा सकता है। मध्यप्रदेश में लगाए गए नसबंदी शिविर में मंजूरहा निवासी भागमति पति असरू बैगा ने भी ऑपरेशन कराई थी। टांका लगाने के बाद मितानीन ने उसे ऐसे ही छोड़ दिया। टांका खुलवाने के लिए भी महिला के पास नहीं गई। ऐसी स्थिति में घरवालों ने ब्लेड से ही टांका खोला।
ग्रामीण युवक है सक्रिय
लोरमी विकासखंड निवासी बैगा आदिवासी एक युवक ही समाज की महिलाओं को पैसे का लालच देकर सालों से मध्यप्रदेश ले जाकर नसबंदी करा रहा है। इसके एवज में महिलाओं को मिलने वाली प्रोत्साहन राशि भी वह हजम कर जाता है। पिछले साल इस संबंध में शिकायत हुई थी। जांच में मामला उजागर होने के बाद भी अब तक आरोपी युवक के खिलाफ किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं हुई है।
मप्र में इनका हुआ ऑपरेशन
राजकुमारी पति मोहन बैगा बिजराकछार
मानबाई पति करिया बैगा मौहाभाचा
शांति बाई पति अघन बैगा मौहाभाचा
श्याम बाई पति मुन्ना बैगा सलगी
दशरी बाई पति मोती बैगा मंजूरहा
भागमति पति असरू बैगा मंजूरहा
सीमा बैगा पति सम्हर बैगा मंजूरहा
किसानीन पति पनका बैगा मंजूरहा
साम बैगा पति जीवन बैगा मंजूरहा
शिवकुमारी पति भगवान बैगा सरसोहा
सोनिया पति रतन बैगा शांतिपुर
रामबती पति जेठूराम बैगा शांतिपुर
भारती पति राजकुमार बाबूटोला
शिवमति पति विश्राम बैगा घमेरी
इस मामले में सवाल यह उठता है कि क्या यह एक असंगठित घोटाला है या इसे संगठित रूप से अंजाम दिया जा रहा है। नसबंदी के बाद प्रोत्साहन राशि का भुगतान ना करने के कई मामले पहले भी प्रकाश में आ चुके है और सामूहिक नसबंदी कांड को अंजाम देने के लिए शिविर भी लगाए जाते हैं।