सुरेन्द्र कुमार पटेल। जिन्हें अध्यापकों से अधिक अध्यापक संगठनों की चिंता है , उनसे ये सवाल जरूर पूछा जाना चाहिए कि अध्यापक संगठनों के स्वयंभू नेता जब सरकार की दलाली करने लग जाएं तो अध्यापक अपनी समस्याओं के निराकरण के लिए कहां जाएं ?
एक से बढ़कर एक विसंगतियां मौजूद हैं और अध्यापक संगठनों को सरकार की चाटुकारता करने से फुर्सत नहीं है तो ऐसे में अपनी समस्याओं के निराकरण के लिए अलग से संघ न बनाएं तो अध्यापक क्या करें ? अब कुछ ये कहने लग गए कि ज्यादा संघ हो गए तो अध्यापकों में बिखराव हो गया। सरकार पर दबाव नहीं बन रहा।
बात सत्य है परंतु इसके लिए पूर्ववर्ती अध्यापक संगठन ही जिम्मेदार हैं। अब आप सोचिए , सहायक अध्यापकों की अंतरिम राहत राशि में 4000 की गफलत है अंतरिम राहत के आदेश हुए 1 वर्ष हो गए फिर भी अध्यापक संगठनों के स्वयंभू नेताओं की नींद नहीं खुल रही। ऐसे में अंतरिम राहत की विसंगति दूर कराने अगर सहायक अध्यापक अलग से संघ बना लें तो इसमें उनकी क्या गलती ? इसलिए जिन अध्यापक संगठनों को अध्यापकों की चिन्ता है वे खुले मन से इस विसंगति के निराकरण की जिम्मेदारी स्वीकार करें या अध्यापक संगठनों के कमजोर होने का रोना रोते रहें।
शिक्षा विभाग में संविलियन का नारा देने वाले सरकार के टुकड़ों पर पलने लग गए। तब अध्यापक करें क्या, हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें क्या ? अगर एक नहीं हो सकते हो तो बिखर जाओ, इतना बिखर जाओ कि कोई थोक के भाव तुम्हें बेचने का कोई दुस्साहस न कर सके।