निजी स्कूलों में नहीं चलता शासन का नियम

shailendra gupta
राजेश शुक्ला/अनूपपुर। भले ही ग्वालियर कलेक्टर ने वहां के प्राइवेट स्कूलों में नकेल कस दी हो लेकिन अनूपपुर में ऐसा नहीं है। यहां निजी स्कूल धड़ल्ले से पेरेंट्स की जेब काट रहे हैं और कलेक्टर की कार्रवाई दूर की बात, चेतावनी तक जारी नहीं की जा रही है।

केन्द्र सरकार ने शिक्षा के अधिकार का अधिनियम लागू कर दिया गया है। नियम उपलब्ध हैं कि प्राईवेट स्कूल किताबों पर यूनीफार्म के लिए पेरेंट्स को किसी दुकान विशेष से खरीदने के लिए मजबूर नहीं कर सकते। स्कूल परिसर में इस तरह के सामन का विक्रय प्रतिबंधित कर दिया गया है परंतु उपरोक्त तमाम नियम अनूपपुर में शायद अभी तक लागू नहीं किए गए हैं।

हर वर्ष निजी स्कूलों के संचालक नियम विरूद्ध अधिक बस्ते का बोझ बढ़ा देते है। इस बोझ में एैसे कई किताबें होती है जो बच्चों के लिये उपयोगी नहीं है लेकिन फिर भी इन्हें पाठ्यक्रम में शामिल कर लिया जाता है। इस तरह से बच्चों के बस्ते का बोझ हटने की बजाय बढ़ रहा है। इस पर रोक लगाने के लिये शिक्षा का अधिकार अधिनियम में कई प्रावधान किए गये हैं, लेकिन इन पर अमल नहीं हो रहा है।

समय से नहीं मिल रही है पुस्तकें

निजी स्कूलों द्वारा शिक्षा विभाग को फरवरी माह तक किताबों की सूची देनी थी। इसके बाद इस सूची को सभी पुस्तक विक्रेताओं को जारी होना चाहिए। जिससे विक्रेताओ को इन किताबों को समय से मंगा कर विक्रय के लिये उपलब्ध करा सकें किंतु विक्रेताओं को अभी तक सूची न मिलने से पुस्तकें नहीं आ सकी है। और विद्यालय प्रारंभ हो चुके हैं, बच्चों को पुस्तके उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं।

गत वर्ष भी नहीं हो सका नियम का पालन

पिछले वर्ष भी निजी स्कूलों ने किताबों की सूची को जारी नहीं किया था। उल्लेखनीय है कि सीबीएसई पैटर्न के स्कूलों में सत्र मार्च से ही शुरू हो जाता है। जबकि अन्य स्कूलों में दो महीने बाद । जब शिक्षा विभाग किताबों के संबंध में कोई आदेश जारी करता है तब तक सीबीएसई स्कूल की किताबे बिक चुकी होती है। इसके बाद इस नियम का कहीं पर भी पालन नहीं हो पाता है। जिससे विभाग पर आरोप लग रहे है।

कार्यवाई कब तक

जिला शिक्षा विभाग ने नये सत्र में किताबों की कमीशनबाजी के खेल को खत्म करने के लिये अभी तक कोई ठोस कार्यवाही नहीं की है। हालत यह है कि यदि अभी से विभाग चेता नहीं तो इस बार फिर से पुराना खेल शुरू हो जायेगा। इन स्कूल संचालकों की मनमानी पर रोक नहीं लग पायेगी।

परवाह नहीं नियमों की

स्कूलों की मनमानी अधिकारियों के सामने दिखाई देती है। इस मनमानी को रोकने के लिये कठोर नियम भी बने हैं, लेकिन इन्हें लागू करने वाले ही अनदेखा करते रहते हैं। इनकी लापरवाही से हर साल बच्चों को शिक्षा दिलाना पड़ रही है। यही कारण है कि आम आदमी अपने बच्चों को इन निजी स्कूलों में पढ़ा ही नहीं पाते हैं।

कड़ी कार्यवाही का प्रावधान

अधिनियम के मुताबिक इस तरह की मनमानी  करने वाले निजी स्कूल संचालकों पर कडी कार्यवाही का प्रावधान है। अगर समय रहते स्कूल संचालक नियमों का पालन नहीं करते तो उप पर विभाग द्वारा नियमानुसार कार्यवाही की जा सकती है। संचालकों द्वारा तय दुकानों से किताबें बिक्री होती है तो इसकी शिकायत मिलने पर स्कूल की मान्यता भी निरस्त हो करने का प्रावधान है। फिर चाहे वह स्कूल माध्यमिक शिक्षा बोर्ड या फिर सीबीएसई पाठ्यक्रम का हो।

फीस पर भी नहीं अंकुश

इन निजी स्कूलों में मनमाने ढंंग से फीस वसूल की जाती है। नियम के मुताबिक अवकाश के महीनों की फीस नहीं ली जानी चाहिए, जबकि यह स्कूल १२ माह की फीस वसूल कर रहे है। इसके बाद भी जिम्मेदार इसे देखकर भी अनदेखा कर देते हैं। जिसे लेकर कई बार पालकों द्वारा शिकायत की गई, लेकिन  प्रशासन द्वारा कोई ठोस कार्यवाही नहीं की जाती है जिससे निजी स्कूलों के संचालकों का खेल जारी है। जब तक इन पर लगाम नहीं लगाई जाती है तब तक स्कूल के संचालक फीस, किताबें और यूनीफाम के नाम पर अभिभावकों की जेबें ढीली करते रहेंगे।

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