भोपाल। व्यावसायिक परीक्षा मंडल अर्थात व्यापमं में कोई घोटाला नहीं हुआ बल्कि ये तो घोटालों का व्यापमं चल रहा है। हर रोज एक नया प्रश्न उठता है और उसके जवाब में एक नया घोटाला। आरटीआई कार्यकर्ता अजय दुबे ने जब कुछ पन्ने पलटे तो पता चला कि ये तो 'काली कमाई का कारखाना' है जो कई सालों से सफलतापूर्वक चल रहा है। मजेदार तो यह कि यहां घोटाले के बाद रिकार्ड भी नष्ट कर दिया जाता है।
व्हाइट कॉलर वालों की ब्लेकमनी बनाने का यह फार्मूला आखिर है क्या और कैसे कैसे काम करता था, गहराई से जानना है तो यह प्रेस रिलीज पढ़िए जो सामाजिक कार्यकर्ता मनोज त्रिपाठी एवं आरटीआई कार्यकर्ता अजय दुबे ने जारी किया।
आॅनलाईन परीक्षा से किया इंकार, कहा मंहगी है
मप्र व्यवसायिक शिक्षा मण्डल ने वित्तीय भार अधिक पड़ने के कथित और तर्क के आधार पर आॅनलाईन परीक्षा करवानें की प्रक्रिया को रोका जबकि स्थानीय निधी संपरीक्षा की नवीनतम आॅडिट रिपोर्ट के अनुसार मण्डल ने करोड़ो रूपये की आर्थिक गड़बडि़याॅं निरंतर बढ़ रहीं हैं जिससे स्पष्ट है कि उच्च स्तर का मण्डल प्रबंधन और मप्र शासन रोकने में असमर्थ रहा।
सूचना के अधिकार की मदद से प्राप्त दस्तावेजों को देखने पर यह स्पष्ट होता है कि व्यापंम के स्ट्रोंग रूम में आंसर शीट्स के प्रबंधन में भी हेरा-फेरा की गई है जिससे व्यापंम घोटोले के अतीत के काले पन्नों का पता चलता है। व्यापंम में सुनियोजित साजिश के तहत अपराधिक गतिविधियाॅं संचालित होती रहीं और मप्र शासन का तकनीकी शिक्षा विभाग आंख मूंद कर सोता रहा।
व्यापमं के ये अध्यक्ष हैं जिम्मेदार
निम्नलिखित बिन्दुओं से व्यापंम घोटाले की साजिश बेनकाब होती है तथा व्यापंम के तत्कालीन अध्यक्ष श्री अजीत रायजादा, श्री रणवीर सिंह, श्री एस.के. चतुर्वेदी, श्री दिलीप मेहरा, श्री एम.के. राय और श्रीमति रंजना चौधरी को शक के दायरे में खड़ा करती है -
परीक्षा आॅनलाईन कराते तो घोटाला कैसे करते
1. व्यापंम की कार्यपालक समिति आठवीं बैठक 18/10/2011 और तत्कालीन अध्यक्ष श्रीमति रंजना चौधरी की अध्यक्षता में हुई थी जिसमें ओएमआर परीक्षा पद्धति और आॅनलाईन परीक्षा पद्धति का तुलनात्मक अध्ययन किया गया था तथा आश्चर्यजनक तरीके से और सम्पूर्ण राष्ट्र एंव विश्व में प्रचलित आॅनलाईन परीक्षा पद्धति को आधारहीन तर्कों के साथ नकारा गया था। जिस व्यापंम में करोड़ो रूपयों की आर्थिक अनियमिततायें लगातार जारी थीं वहाॅं आॅनलाईन परीक्षा इसलिए नहीं अपनाई गईं क्योकिं उससे वित्तीय भार अधिक पड़ता। यह अपराधिक साजिश का हिस्सा था जिसके तहत् ओएमआर पद्धति को घोटाले के लिए उपयोग किया जाए।
परीक्षा फार्म बिके कम, परीक्षार्थी आए ज्यादा, ये कैसे हुआ ?
2. व्यापंम में पिछले कुछ वर्षों में जारी प्रवेश पत्रों के आधार पर विक्रय आवेदन फार्मो की तुलना में अधिक परीक्षार्थी परीक्षा में आश्चर्यजनक तरीके से सम्मिलित हुए जिससे करीब चार करोड़ की आर्थिक क्षति व्यापंम को हुई।
व्यापमं ने कितनी की आॅनलाईन कमाई कुछ पता नहीं
3. व्यापंम एंव एमपी आॅनलाईन के मध्य किये गये अनुबंध और अन्य महत्वपूर्ण दस्तावेज के गायब रहने से आॅडिट ने करीब 32 लाख रू. की गड़बड़ी पकड़ी।
4. कम विक्रय आवेदन फार्म की राशि करीब 5 करोड़ रू. का रिकाॅर्ड आॅडिट करने वालों को उपलब्ध नहीं हुआ जिससे कई गंभीर आशाएं जन्म लेती है।
5. 5- VPS – 2 की रसीद बुकों से गायब रहने से बड़ी राषि के दुरूपयोग की प्रबल संभावना प्रतीत होती है।
6. ए. के. सुराना वित्तीय सलाहकार की इंटरनल आॅडिट रिपोर्ट भी गायब है जिससे गंभीर गड़बडि़यों की संभावना जाहिर होती है।
7. वर्ष 2008-09 में संविदा शिक्षक की परीक्षाओं में लिफाफा मुद्रण पर करीब 24 लाख रू. के आर्थिक गड़बड़ी उजागर हुई।
8. वर्ष 2007-08 में पुलिस विभाग परीक्षा में लिफाफा मुद्रण पर करीब 37 लाख रू. की आर्थिक गड़बड़ी हुई।
9. वर्ष 2008-09 में संविदा शिक्षक की परीक्षाओं में नियम पुस्तिका और एमओआर फार्म के मुद्रण पर करीब 11 लाख रू. की आर्थिक गड़बड़ी हुई।
10. वर्ष 2008-09 में परीक्षा केन्द्रो की अग्रिम राशि में करीब 4 करोड़ 23 लाख के हिसाब का रिकोर्ड उपलब्ध नहीं है जिससे गंभीर आर्थिक अनियमितता प्रतीत होती है।
11. व्यापंम में घोटाले के अपराधियों ने स्ट्रोंग रूम जैसी उच्च सुरक्षा वाली व्यवस्था में सेंध लगाकर आंसर शीट्स और चैक बुक के रिकाॅर्ड को गायब किया तथा कई बार परीक्षा संपन्न होने के पष्चात् आंसर शीट्स अनावष्यक तरीके से छपवाई।
12. व्यापंम की परीक्षाओं के लिए 2008 और 2011 के बीच में करीब 93 लाख रू. परिवहन व्यवस्था पर खर्च किया गया जिसका मूल अभिलेख भी आॅडिट के सामनें प्रस्तुत नहीं हुआ जिससे गंभीर भ्रष्टाचार की पुष्ठि होती है।
13. वर्ष 2010 से 2013 तक परीक्षाओं की सुरक्षा सुनिष्चित करने वाले केन्द्रिय पर्यवेक्षकों को करीब 50 लाख रू. का भुगतान किया गया लेकिन आज दिनांक तक व्यापंम ने इन असफल पर्यवेक्षकों की जबावदेही तय नहीं की जो कि कई गंभीर आशंकाओं को जन्म देती है।
एसटीएफ कुछ नहीं कर पाएगी, हाईकोर्ट संज्ञान ले
हमारा स्पष्ट आरोप है कि जो व्यापंम करोड़ो रू. की बर्बादी करने के लिए जिम्मेदार है वह विश्वस्नीय और सुरक्षित आॅन लाईन परीक्षा करवाने में एक साजिश के तहत् इच्छुक नहीं था। मप्र सरकार के तकनीकी शिक्षा विभाग और सूचना प्रौघोगिकी विभाग के बड़े एंव जिम्मेदार अफसर भी इस समुची षडयंत्र की कहानी के किरदार है जिनकी जाॅंच मप्र हाईकोर्ट की निगरानी में स्पेशल इंवेस्टीगेशन टीम के जरिए होनी चाहिए क्योंकि साधारण एसटीएफ इन ताकतवर अपराधियों के खिलाफ कार्यवाही करने में अक्षम है। जल्दी इस विषय पर कई नये तथ्यों को सार्वजनिक करेगें।