राकेश दुबे@प्रतिदिन। हर चुनाव की तरह इस चुनाव में भी सारे दल करोड़ो की संख्या में रोज़गार सृजन का दावा कर रहे हैं| सत्तारूढ़ दल चाहे केंद्र के हो या राज्यों के वे तो इस मामले वो आंकड़े दिखा रहे हैं जिनकी पुष्टि कहीं से नहीं होती है| इसके उलट जो तस्वीर सामने आती है वह तो और भयावह है|
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन के ताजा आंकड़े बताते हैं कि स्नातक और ऊपर की शिक्षा पाए उनतीस साल तक के युवाओं में बेरोजगारी की दर १६.३ प्रतिशत है। तमाम तरह के डिप्लोमाधारकों की बाबत यह आंकड़ा १२.५ प्रतिशत है। इन दोनों श्रेणियों को जोड़ लें तो हर चार शिक्षित युवाओं में एक बेरोजगार है। इस गिनती में प्राथमिक, माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक तक पढ़ाई किए लोग शामिल नहीं हैं। साल भर पहले अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट ने भी इस रुझान को दर्शाया था कि शिक्षित युवाओं के रोजगार-विहीन रह जाने का सिलसिला बढ़ रहा है।
सरकारें कुछ भी कर लें | हमारे पाठ्यक्रम रोज़गार के बाज़ार में कौशल पूर्ण दावेदार भेजने में असफल रहे हैं | निजी हाथों में शिक्षा और राज्य की गलत प्राथमिकताओं ने इसे और गंभीर दशा में पहुंचा दिया है | देश के मूल व्यवसाय कृषि को अलाभकारी उद्द्योग और औद्द्योगीकरण को विकास का पैमाना मानने वालों के आंकड़े इसके मूल में हैं | रोज़गार केअवसर जैसे जुमले घोषणा पत्र तक ही रह जाते हैं , धरातल पर इसे उतारने में जो आवश्यक नीति बनाना चाहिए उसका अभाव अभी है और आगे भी रहेगा | क्योंकि राजनीतिक दलों की मान्यताएं और पैमाने गलत हैं | जिसे विकसित देश अच्छा समझते हैं जरूरी नहीं की वह भारत के लिए भी मुफीद हो | सोचिये, लेकिन घोषणा पत्र से बाहर आकर |
लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क 9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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