चीन: यह 2014 है 1962 नहीं, साफ समझ लें

shailendra gupta
राकेश दुबे@प्रतिदिन। भारतीय जनता पार्टी के उपाध्यक्ष मुख़्तार अब्बास नकवी और उनके इर्द-गिर्द घूमने वाले खुश है कि चीनी अख़बार “ग्लोबल टाइम्स” में उनका साक्षात्कार छपा है| ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है, खुश तो आपसे ज्यादा पाकिस्तान है| इस सबके पीछे 1962 अब तक ल्हासा में फिर से न खुलने वाला भारतीय महावाणिज्य दूतावास और कार्यालय है|

चीन 1962 से आज तक अनुमति नहीं दे रहा है तो पाकिस्तान खुश है| भाजपा को कांग्रेस [1962] की तरह “हिंदी-चीनी भाई भाई कहने का मौका मिला तो वो भी खुश है | इसके विपरीत हर भारतवासी दुखी है, जब भी वह गूगल पर भारत का नक्शा देखता है और 1947 के बाद के भारत का भाल नक्शे से गायब देखता है| यही समय है भारत को अपने इस पडौसी से रिश्ते तय करने का|

चीन और भारत ने इस वर्ष अर्थात 2014 को “मैत्री आदानप्रदान वर्ष “ माना है| चुनाव के बाद वहां से यहाँ और यहाँ से वहां आवाजाही का दौर चलेगा| अरुणाचल के निवासियों को स्टेपल वीजा, हमारी जमीन , घुसपैठ जैसे कई मुद्दे हैं| जिन पर इस वर्ष में बात होना जरूरी है| मैत्री एक तरफा यातायात नहीं होती है| 

1962 और उसके बाद भारत पंचशील और अन्य कई सामाजिक राजनीतिक और कुटनीतिक दबावों के चलते वह सब नहीं कह और कर सका जो देश हित में था अब समय बराबरी से बात करने का है| “अक्साई चीन” में 30 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन भारत की है सबसे पहले उसकी वापिसी की बात होना चाहिए|

लोकसभा चुनाव के बाद चीन पर पक्ष और प्रतिपक्ष की नीति क्या होगी ? इस पर अभी से विचार और स्पष्टता जरूरी है|

लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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