मध्यप्रदेश में भाजपा की 16 पक्की, 11 पर धक्कामुक्की

राजेश सिरोठिया/भोपाल मध्यप्रदेश में तीसरे चरण की दस सीटों पर मतदान के साथ ही सोलहवी लोकसभा के लिए इस राज्य की सभी 29 सीटों की किस्मत का फैसला ईवीएम मशीनों में कैद हो चुका है। लेकिन यह चुनाव अपने पीछे कई सवाल छोड़ गया है, जिनकी मीमांसा की शुरूआत हो चुकी है।

 हालांकि इसका वास्तविक आकलन और उसके दूरगामी राजनीतिक नतीजों का आकलन तो 16 मई को चुनावी नतीजे आने के बाद ही शुरू होगा। चुनाव होने के बाद छनकर आते रुझानों पर यकीन किया जाए तो भाजपा की 16 सीटों पर जीत पक्की है तो कांग्रेस की दो सीटें लगभग तय है। लेकिन सारा संघर्ष बाकी की 11 सीटों पर आकर टिक गया है। जो इनमें से ज्यादा सीटें जीतेगा नहीं उसका बोनस होगा।

मध्यप्रदेश के इतिहास में पहली दफे लगातार तीसरी बार विधानसभा चुनाव जीतकर राज्य के सिंहासन पर काबिज भाजपा ने लोकसभा चुनावों की तैयारी मिशन -29 के साथ शुरू की थी। उधर कांग्रेस ने भी करारी हार से सबक लेते हुए पूरी गंभीरता और संजीदगी के साथ अपने 2009 के चुनावी नतीजों को दोहराने के संकल्प के साथ प्रत्याशियों का चयन किया। इस बात को तो भाजपा ने भी मान लिया है कि कांग्रेस के प्रत्याशी भाजपाई उम्मीदवारों के मुकाबले ज्यादा कद्दावर थे।

लेकिन भाजपा कुछेक अपवादों को छोड़कर अपने प्रयोगों को सही मानकर चल रही है। भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी और भाजपा आलाकमान ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से वादा किया था कि प्रत्याशी चयन के मामले में वे मध्यप्रदेश भाजपा को पूरी आजादी देंगे। उन्होंने यह किया भी । लेकिन टीम शिवराज ने पार्टी के मजबूत उम्मीदवारों के बजाए नए चेहरों पर ज्यादा जोर दिया। मुरैना से अनूप मिश्रा, ग्वालियर से नरेंद्र सिंह तोमर, दमोह से प्रहलाद पटैल, विदिशा से सुषमा स्वराज , खंडवा से नंदकुमार चौहान,टीकमगढ़ से वीरेंद्र खटीक तथा इंदौर से सुमित्रा महाजन को छोड़ दें तो पार्टी के ज्यादातर प्रत्याशी कांग्रेस के मुकाबले मैदान में हल्के नजर आए।

 लेकिन भाजपा के अंदरूनी सूत्रों पर यकीन किया जाए तो शिवराज की रणनीति साफ है। वे लोकसभा में ऐसे चेहरों की भरमार के पक्ष में कतई नहीं हैं जो केंंद्र में एनडीए की सरकार बनने के बाद राज्य सरकार पर अनावश्यक दवाब नहीं डालें। नए चेहरों को जिताने के लिए शिवराज सिंह चौहान ने बेशक जमीन आसमान एक किया है लेकिन इन प्रत्याशियों की जीत यह भी साबित करेगी कि प्रदेश में मोदी लहर थी तो कितनी प्रचंड थी। या फिर कितनी कमजोर थी।

प्रदेश भाजपा के एक वरिष्ठ नेता की माने तो यदि पचास हजार से कम अंतर से किसी प्रत्याशी की जीत होगी तो उसे संगठन की मेहनत का नतीजा माना जाएगा। लेकिन जीत का आंकड़ा एक लाख तक पहुंचा तो वह जीत शिवराज सिंह चौहान के खाते में दर्ज होगी। लेकिन जहां एक लाख और दो लाख से ज्यादा के अंतर से जीत का आंकड़ा पहुंचेगा तो उसका श्रेय नरेंद्र भाई मोदी की झोली में पहुंचेगा।

अंदरखानों की बातों पर यकीन करें तो शिवराज ने ऐलानिया तौर पर भले ही सभी 29 सीटें जीतने का वादा किया था, लेकिन मोदी  को उन्होंने प्रदेश की 24 से 27 सीटें जीतने का यकीन दिलाया था। ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ जैसे कद्दावरों के साथ अनहोनी की आशंका को निर्मूल माने तो भी 27 का आंकड़ा छुआ भी जा  सकता था लेकिन फिलहाल तो यह मुमकिन नहीं दिख रहा है।

हालांकि यह बात भी सच है कि प्रत्याशियों का चयन करने के बाद जब टीम शिवराज मैदान में उतरी तो उसे जल्द ही इस बात का अंदाजा हो गया कि हल्के उम्मीदवारों के चयन का प्रयोग खतरा बन सकता है। उधर नरेंद्र मोदी के प्रबंधको ने भी अंदरूनी रपटों के आधार पर  प्रदेश भाजपा को आगाह किया तो फिर सरकार के साथ संगठन भी सक्रिय हुआ। कमजोर सीटों पर विशेष प्रयास के लिए टीम भेजी गई। सारे जतन किए गए। अब संगठन और सरकार की मेहनत कितनी कारगर साबित हुई इसका अंदाजा तो 16 मई को मतगणना के बाद भी होगा । लेकिन भाजपा के 11प्रत्याशी तो ऐसे माने जा सकते हैं जिनके  मन में नतीजा आने तक धुकधुकी लगी रहेगी।

मुरैना में अनूप मिश्रा अपनी जीत के दावे बेशक कर सकते हैं लेकिन उनकी जीत का अंतर बड़ा रह सकेगा ऐसा अभी नहीं कहा जा सकता। उधर ग्वालियर में तमाम प्रतिकूल रपटों के बावजूद नरेंद्र सिंह तोमर के समर्थक भले ही जीत के प्रति आश्वस्त हैं। लेकिन ग्वालियर फतह के आंकड़े को एक लाख बताने में उनकी सिट्टी पिट्टी गुम है। भिंड में कांग्रेस से आयातित भाजपा प्रत्याशी डा. भागीरथ प्रसाद को कांग्रेसी विधायक इमरती देवी ने छठी का दूध याद दिला दिया है। नतीजा भले ही कुछ भी हो पर भागीरथ प्रसाद नतीजे आने तक चैन से नहीं बैठ सकते।

खजुराहो में राजा पटैरिया ने भाजपा प्रत्याशी और पूर्व मंत्री नागेंद्र सिंह को दिन में तारे दिखा दिए हैं तो सतना में भाजपा के गणेश सिंह कांग्रेस से अजय सिंह उर्फ राहुल भैया तथा बसपा के धर्मेंद्र तिवारी के सामने अभी भी सहमे दिख रहे हैं। रीवा में भाजपा के जनार्दन मिश्रा की हालत भी कांग्रेस के सुंदरलाल तिवारी और बसपा सांसद देवराज पटैल के सामने भीगी बिल्ली जैसी है। जबलपुर में कांग्रेस के विवेक तन्खा ने भाजपा सांसद राकेश सिंह की हवा को काफी हद तक बिगाड़ दिया है तो सागर में गोविंद राजपूत के सामने बौने साबित होते लक्ष्मीनारायण यादव को हार से बचाने के लिए मुख्यमंत्री से लेकर सागर जिले के मंत्री भूपेंद्र सिंह ठाकुर और अरविंद मेनन से लेकर संगठन के पदाधिकारियों को पूरी ताकत झोंकना पड़ी है।

विदिशा में सुषमा स्वराज की जीत तो पक्की है लेकिन जीत के आंकड़ों को लेकर अनुमानों का दौर जारी रहने वाला है। कमोबेश यही बहस भोपाल में आलोक संजर को लेकर भी चलती रहेगी। बैतूल का किला भाजपा ने फतह कर लिया लगता है लेकिन खंडवा में नंदकुमार सिंह चौहान , देवास में मनोहर ऊंटवाल, रतलाम में दिलीप सिंह भूरिया, राजगढ़ में रोडमल नागर और धार में सावित्री ठाकुर की जीत मोदी लहर की असली परीक्षा साबित होगी।

खंडवा में  भाजपा को अरूण यादव, धार में उमंग सिंगार, रतलाम में कांतिलाल भूरिया, देवास में सज्जन सिंह वर्मा, राजगढ़ में नारायण आमलावे ने उन्हें कड़ी टक्कर दी है। एक बात तय है कि इतनी अनूकूल परिस्थितियों के बावजूद हारे भाजपा नेताओं के भविष्य पर सवालिया निशान लग जाएगा। जो विधायक रहते हुए लड़े हैं वो बच जाएं लेकिन बाकियों के तो बिस्तर सिमटने वाले हैं।


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