STF को ही नहीं मालूम उसके पॉवर क्या हैं

डॉ नवीन जोशी/भोपाल। मध्यप्रदेश में विशेष अपराधों की रोकथान के लिए गठित एसटीएफ (स्पेशल टॉस्क फोर्स) को खुद अपनी ही शक्ति का अहसास नहीं है और अधिकारों की जानकारी नहीं है इस कारण अपराधियों को पकड़ने में नाकाम साबित हो रहा है एसटीएफ।

पिछले दिनों व्यापमं एवं अन्य प्रकरणों में एसटीएफ मात खा गई। विवेचना के दौरान सभी आरोप प्रमाणित होने के बावजूद छोटे आरोपियों को गिरफ्तार तो कर लिया लेकिन बड़े आरोपियों की न तो गिरफ्तारी हो सकी और न ही गिरफ्तारी का प्रयास किया गया बल्कि वैधानिक प्रक्रियाओं को कलंकित करते हुए कोर्ट से ही गिरफ्तारी वारंट जारी करने का अनुरोध किया जाता रहा, जबकि एसटीएफ स्वंय ही बिना वारंट के संदिग्धों का गिरफ्तार करने का अधिकार रखती है।

सुविज्ञ सूत्रों के अनुसार जब सभी मामलों में भ्रष्टाचार होता है तो भ्रष्टाचार की धाराओं में एसटीएफ प्रकरण कायम करती और न ही अभियोजित किया जाता है। जिसका लाभ आरोपियों को सीधे-सीधे मिल जाता है। सीजेएम कोर्ट में जिन धाराओं के तहत फिलहाल एसटीएफ चालान पेश कर रही है उनमें कम सजा के प्रावधान वाले ही है जबकि स्पेशल कोर्ट में यदि चालान पेश होता है तो गंभीर मामलें में बड़ी सजा आरोपी पा सकते है।

रही बात शासन से अनुमति प्राप्त कर अभियोजित करने की तो एसटीएफ शासन से दूरी क्यों बना रहा है? सीआरपीसी और प्रिवेंषन ऑफ करप्शन एक्ट में थाना प्रभारी, विवेचना अधिकारी को ही असीमित अधिकार प्राप्त होते है एसटीएफ समाज हित में चाहे तो किसी भी व्यक्ति को संदेश के आधार पर खुद ही गिरफ्तार कर सकता है।

व्यापमं के प्रकरण एसटीएफ की जो भद पिटी है उससे लगता है कि यह प्रकरण ईओडब्ल्यू (आर्थिक अपराध अनुसंधान ब्यूरों) या लोकायुक्त को स्थानांतरित कर देगा तो बेहतर परिणाम निकलेंगे। पुलिस मुख्यालय के जानकार सूत्र बताते है कि एसटीएफ गृह मंत्रालय के अधीन आता है जबकि ईओडब्ल्यू और लोकायुक्त सामान्य प्रशासन विभाग के अधीन आते है। ऐसी स्थिति में व्यापमं गंभीर मुददे पर एसटीएफ का साहस न दिखा पाना प्रदेश के और देश के शिक्षा जगत में राज्य की छवि को खराब करता है।

एडीजे प्रथम श्रेणी होते है विषेष न्यायाधीष

एसटीएफ बार-बार यह मांग कर रहा है कि व्यापमं और अन्य प्रकरणों में विशेष अदालतों का गठन किया जाये जबकि विशेष अदालतें पहले से कार्यशील है प्रत्येक जिलें में एडीजे प्रथम श्रेणी विशेष न्यायाधीश होते है और उनके पास सभी गंभीर मामलों की सुनवाई होती है बषर्ते की उनके पास ऐसे प्रकरण पहुंचायें जाये। जबकि एसटीएफ सारे मामलें सीजेएम की कोर्ट में प्रस्तुत कर रहा है।

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