राकेश दुबे@प्रतिदिन। 2009 के चुनाव के नतीजों के एक दिन बाद मैने देश के प्रसिद्ध विचारक के एन गोविन्चार्य जी से पूछा था | इस परिस्थिति में इन दोनों बड़े राजनीतिक दलों को क्या करना चाहिए ? गोविन्द जी का जवाब था “दोनों के चरित्र का मूलभूत अंतर समाप्त हो गया है, इन्हें मिलकर सरकार बना लेना चाहिए |”
2009 के बाद जो थोडा अंतर बचा था, वह दिल्ली विधानसभा और आज संसद में एक दूसरे की हिमायत, सारी वर्जनाओं को तोडकर जिस तरह की गई , वह प्रमाणित करता है कि “ देश को अब एक मजबूत प्रतिपक्ष की जरूरत है, जिसमे जोश और होश दोनों का समावेश हो |” साथ ही उनके आय के स्रोत शुद्ध भारतीय हों |
उस दिन दिल्ली विधान सभा में जो दिखा था, वह आहट थी और आज जो हुआ वह किसी बड़े खतरे का पुष्ट संकेत है | जो आपातकाल की तरफ जाता है | १९७४ में कान्ग्रेस अकेली थी, अब भाजपा साथ है | शरद यादव, मुलायम सिंह, दिनेश त्रिवेदी की बातों की पुष्टि हो चुकी है, लोकसभा के कैमरे बंद कर कार्रवाई संचालित करना और किसी हादसे से बचाव के लिए गृह मंत्री के सामने सुरक्षा दीवार बनकर कांग्रेस सांसदों का खड़ा होना और इस सब को भाजपा का समर्थन, सिर्फ एक ही बात कहता है कि मजबूत प्रतिपक्ष की जरूरत है देश को | प्रजातंत्र खतरे में है |
संसद का दृश्य समझने के लिए यह पंक्तियाँ काफी हैं |तेलंगाना मुद्दे पर भाजपा द्वारा सरकार का समर्थन किए जाने का विरोध करते हुए तृणमूल कांग्रेस के सदस्यों ने लगातार नारे लगाए। विधेयक पर शिवसेना ने भाजपा का साथ नहीं दिया और उधर, वाम मोर्चे में माकपा ने जहां इसका विरोध किया वहीं भाकपा ने इसका समर्थन किया। जद यू के सदस्यों ने सदन में व्यवस्था के बिना विधेयक को पारित कराने के विरोध में सदन से वाकआउट किया। विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि भाजपा शुरू से ही पृथक तेलंगाना राज्य के पक्ष में रही है।
भाजपा इसे अपनी विश्वसनीयता की कायमी मान रही है, ऐसी विश्वसनीयता, को सामान्य बातचीत में “सांठ-गांठ” ही कहा जाता है | फिर ढोंग क्यों ?