वर्ष 1673 में राजा लालसिंह द्वारा कायम किये गये राघौगढ़ राजघराने में उनकी पीढ़ी के तेरहवें राजा दिग्विजय सिंह की पत्नी रानी आशा सिंह को बिछड़े हुए एक बरस बीत गया, हर लम्हा यूं अहसास होता रहा जैसे वो यहीं मौजूद हैं। हालांकि आजादी के बाद सभी राजघराने भारतीय गणतंत्र में विलीन हो गए थे लेकिन राघौगढ़ वासियों के लिये बल्कि गुना जिलावासियों के लिये वे सदैव रानी बनकर ही सेवारत रहीं।
इसलिये यह कहना मुनासिब होगा कि वे आखिरी रानी थीं जो आज भी क्षेत्रवासियों के दिलों पर राज करती हैं। दिग्विजय सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में उन्होंने असहाय बीमारों की जो मदद की वे सदैव जिलेवासियों को याद रहेंगी। जब कोई पीडि़त उनसे सहायता की गुहार करता था तब वे कभी ये नहीं सोचती थीं कि ये राघौगढ़ का वासी है या अन्य कहीं का रहने वाला है। वे अपने मुख्यमंत्री पति से उसकी हरसंभव सहायता के लिये जिद करती थीं।
सर्वविदित है कि उनके पिता कर्नल डॉ जगदेव सिंह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे और गांधी जी के विचारों से प्रभावित थे। गरीबों की सेवा का यह गुण उन्हें अपने पिता से विरासत में मिला था। उनके भाग्य से पति दिग्विजय सिंह भी गांधी के विचारों से ओतप्रोत मिले। प्राय: ऐसा संगम दुर्लभ ही देखने मिलता है। विवाह पूर्व उनके पति दिग्विजय सिंह सार्वजनिक जीवन में प्रवेश कर चुके थे। विवाह उपरांत रानी आशा सिंह ने उन्हें पारिवारिक जिम्मेदारी से लगभग मुक्त रखा।
यही एक प्रमुख वजह रही कि दिग्विजय सिंह राजनीतिक क्रियाकलाप में बेफिक्र होकर लगे रहे और एक छोटे कार्यकर्ता से मुख्यमंत्री बनने तक और वहां से राष्ट्रीय राजनीति के क्षितिज तक का सफर उन्होंने तय किया जो आज भी जारी है। 27 फरवरी 2013 को लम्बी बीमारी से लडऩे के बाद आखिर वे जिंदगी की जंग हार गईं। दरअसल वे जंग हारी नहीं बल्कि परमपिता परमेश्वर के बुलावे पर अलौकिक दुनिया में प्रवेश कर गईं।
हम जिलेवासियों की स्मृति में वे सदैव बनी रहेंगी। दिग्विजय सिंह की जिंदगी में आए इस खालीपन को भरा जाना मुमकिन नहीं है, उन्हें केवल दुआ दी जा सकती है कि इस कमी को सहने की उन्हें ताकत मिले। जिलेवासियों की भावभीनी श्रद्धांजलि।
नूरुलहसन नूर, गुना