भोपाल। जलस्रोतों को प्रदूूषण और अतिक्रमण से बचाने और नदी, झील, तालाबों के प्रति आम जनमानस में जागरूकता लाने के उद्देश्य को लेकर राजधानी की प्रतिष्ठित संस्था ‘‘कर्मश्री’’ ‘‘अपने भोज-अपने ताल’’ नाम से बडा़ अभियान शुरू करने जा रही है।
‘‘कर्मश्री’’ अध्यक्ष और हुजूर विधायक रामेश्वर शर्मा ने इस अभियान के तहत प्रतिमाह 6 तारीख को जलस्रोतों के किनारे-किनारे 2 घंटे की पदयात्रा करने का ऐलान किया है। इसका आरंभ 6 फरवरी को नर्मदा जयंती के पावन अवसर पर कालियासोत के किनारे पदयात्रा कर किया जाएगा।
इस बारे में जानकारी देते हुए श्री शर्मा ने बताया कि नदियां, झीलें और तालाब हमारे पूर्वजों की धरोहर है, लेकिन हम आधुनिकता के अंधानुकरण के चलते इसे धीरे-धीरे बरबाद कर रहें हैं। इनमें साफ पानी के बजाए सीवेज का गंदा पानी बहाया जा रहा है, इसे कचरे का घर बनाया जा रहा है। उन्होने कहा कि प्रदूषण और अतिक्रमण के चलते धीरे-धीरे जलस्रोतों का अस्तित्व समाप्त होते जा रहा है। इससे पारिस्थितिक अंसतुलन का खतरा भी बढ़ते जा रहा है।
हम आने वाली पीढि़यों को कैसे बताएंगे कि यह हमारी नदियां, झील और तालाब है। अतः इन जलस्रोतों के संरक्षण के लिए बड़े पैमाने पर जागरूकता लाने की आवष्यकता है। इसी उद्देष्य को लेकर हमने प्रतिमाह भोपाल के किसी ना किसी जलस्रोत के किनारे पदयात्रा करना तय किया है। इसकी शुरूवात कोलार के चारों ओर बहने वाली कालियासोत नदी के पथ की पदयात्रा से करना तय किया गया है।
इसके तहत कालियासोत डेम से लेकर दूसरे छोर तक पदयात्रा की जाएगी। श्री शर्मा ने बताया कि कालियासोत के दोनो ओर आबादी है, इसकी अपनी संस्कृति, अपना इतिहास है। यह बारहमासी नदी है, लेकिन हमने इसे कचरे का घर और सीवेज का अड्डा बना दिया है। इसे रोकना होगा, कालियासोत का संरक्षण करना होगा। पदयात्रा के माध्यम से इस संबंध में लोगों को जागरूक किया जाएगा। श्री शर्मा ने बताया कि आने वाले समय में ‘‘अपने भोज-अपने ताल’’ अभियान के तहत कई अन्य गतिविधियां भी आयोजित की जाएंगी।
अध्ययन भी करेंगे
जलस्रोतों के संरक्षण हेतु प्रतिमाह 6 तारीख को पदयात्रा कर जनमानस में जागरूकता लाने के साथ-साथ ‘‘कर्मश्री’’ की टीम पदयात्रा के दौरान जलस्रोतों के संरक्षण हेतु प्रभावी योजना बनवाने और लागू करवाने हेतु अध्ययन भी करेगी। संस्था अध्यक्ष रामेष्वर शर्मा ने बताया कि हर नदी और तालाब का अपना एक इतिहास और अपनी स्वयं की एक संस्कृति होती है। पदयात्रा के दौरान इस इतिहास और संस्कृति का जीवंत अध्ययन किया जाएगा जिससे इन जलस्रोतों के संरक्षण हेतु प्रभावी प्रणाली विकसित करने हेतु ऐसी योजना बनाई जा सकेगी कि इनका अस्तित्व लंबे समय तक कायम रह सके।
पहली पदयात्रा कालियासोत, दूसरी बड़े तालाब के पथ पर
हर माह की 6 तारीख को की जाने वाली पदयात्रा का आरंभ 6 फरवरी को कालियासोत के पथ की पदयात्रा कर किया जाएगा जबकि अगले माह 6 मार्च को बड़े तालाब के पथ पर पदयात्रा करने का कार्यक्रम तय किया गया है।
भोपाल में ग्रीन-काॅरीडोर विकसित कराना भी उद्देष्य
राजा भोज की एतिहासिक नगरी जिसमें झील और तालाबों का अपना एक इतिहास और संस्कृति है। आने वाली पीढि़यां भी अपनी इस विरासत पर गर्व कर सके इसके लिए इनका संरक्षण किया जाना आवष्यक है। विधायक श्री शर्मा ने कहा कि तेजी से बढ़ते भोपाल में प्रकृति के संरक्षण और लोगों को शुद्ध वातावरण उपलब्ध कराने हेतु भोपाल में कालियासोत सहित छोटे-बड़े सभी तालाबों के आसपास ग्रीन काॅरीडोर विकसित कराना भी पदयात्रा का महत्वपूर्ण उद्देष्य है। उन्होनें कहा कि हमारी ईच्छा है कि भोपाल में ऐसा ग्रीन काॅरीडोर बने जहां लोग परिवार सहित आकर शुद्ध-स्वच्छ वातावरण में आकर प्रकृति की गोद में घूमे, पिकनिक मनाएं, सैर पर आएं, नई पीढि़ को उर्जा मिले, और प्रकृति के संरक्षण का संदेष भी मिले। उन्होने कहा कि पदयात्रा के माध्यम से इस संबंध में अध्ययन कर सरकार को उचित मंच पर इसका सुझाव दिया जाएगा और इस संबंध में प्रयास किए जाएंगे।
नर्मदा जयंती से संघर्ष की शुरूआत
‘‘कर्मश्री’’ अध्यक्ष एवं विधायक श्री शर्मा ने बताया कि जलस्रोत के संरक्षण हेतु संघर्ष आरंभ करने हेतु नर्मदा जयंती का पावन दिन इसीलिए चुना गया क्योंकि जीवनदायनी माॅं नर्मदा स्वयं संघर्ष का प्रतीक है। विपरीत दिषा में बह कर यह खुद लड़ती है और दूसरों को भी परिस्थितियों से लड़ने की प्रेरणा देती है। नर्मदा नदी प्रेरणा भी है और संघर्ष का प्रतीक भी है। अतः ऐसी पावन जीवनदायनी नर्मदा जी की जयंती से इस पुण्य कार्य का आरंभ करने से हमें भी कठिनाईयों से लड़ते हुए उद्देष्य की प्राप्ति में सफलता मिलेगी। गौरतलब है कि नर्मदा नदी, गंगा गोदावरी सहित भारत की अधिकांष नदियों की विपरीत दिषा में अर्थात पूर्व से पष्चिम की ओर बहती है। विपरीत दिषा में बहकर भी यह मध्यप्रदेष, गुजरात सहित कई क्षेत्रों की जीवनदायिनी नदी है।
कालियासोत का इतिहास
उपलब्ध ऐतहासिक अभिलेखों के आधार पर यह माना जाता है कि धार प्रदेश के प्रसिद्ध परमार राजा भोज एक असाध्य चर्मरोग से पीडि़त हो गए थे। एक संत ने उन्हें सलाह दी कि वे 365 स्त्रोतों वाला एक विशाल जलाशय बनाकर उसमें स्नान करें। साधु की बात मानकर राजा भोज ने राजकर्मचारियों को काम पर लगा दिया। इन राज-कर्मचारियों ने एक ऐसी घाटी का पता लगाया, जो बेतवा नदी के मुहाने स्थित थी। लेकिन उन्हें यह देखकर झुंझलाहट हुई कि वहाँ केवल 356 सर-सरिताओं का पानी ही आता था। तब ‘‘कालिया’’ नाम के एक गोंड मुखिया ने पास की एक नदी की जानकारी दी, जिसकी अनेक सहायक नदियाँ थीं। इन सबको मिलाकर संत के द्वारा बताई गई संख्या पूरी होती थी। इस गोंड मुखिया के नाम पर इस नदी का नाम ‘‘कालियासोत’’ रखा गया, जो आज भी प्रचलित है।