जागो संविदा कर्मचारियों जागो , अभी नहीं तो कभी नहीं

अमित कुमार। जी हाँ में बात कर रहा हूं उन संविदा कर्मचारियों की जिन्होंने अपने जीवन के बहुमूल्य कई वर्ष सरकारी आदेशों के पालन में निकाल दिए है और उसके बदले में सरकार ने उन्हें दिया क्या।

1- कार्य शासकीय किया लेकिन खुद को शासकीय कर्मचारी कहने तक का हक़ नहीं दिया।
2- नियमित कर्मचारियों के साथ रहकर उनसे कहीं ज्यादा कार्य किया लेकिन वेतन उनसे आधी भी नहीं मिली।
3- शासकीय सेवकों के भविष्य एवं उनके परिवार की भविष्य सुरक्षा हेतु कई सारी व्यवस्थाएं की गई है लेकिन संविदा कर्मचारी की नौकरी तक का कोई भविष्य नहीं है, चाहे जब निकाल दिए जाने वाली प्रक्रिया उनपर लागू फिर उनके परिवार का क्या भविष्य होगा वह आप खुद ही सोच सकते है।
4- शासकीय कर्मचारी को हर माह मिलने वाले रुपयों को वेतन का नाम दिया और संविदा वालो के उन रुपयों को पारिश्रामिक/मेहनताना (मजदूरी) नाम दिया गया अब ऐसे में उन्हें मजदूर ही कह लिया जाए तो क्या बुरा होगा।

और भी कई सारी बातें हैं जो बेचारा संविदा कर्मचारी अपने दिल में ही रखकर दिल ही दिल रोता रहता है लेकिन कभी दूसरों पर जाहिर नहीं होने देता।
लेकिन मेरे दोस्तों अब अपनी चुप्पी तोड़कर अपने लिए कुछ कर दिखाने का समय आ गया है क्योकि हमारे आगे और पीछे हमारा कोई हारी-गुहारी नहीं है जो हमारी समस्याएं समझ सके और हमारे लिए कुछ कर सके सो किसी से उम्मीद करने से अच्छा है कि हमें खुद ही कुछ करना होगा जिससे हमारे लिए अंधी बनी बैठी इस सरकार कि आँखे खुल जाए।

विधानसभा चुनावों के समय भी सिर्फ आस्वासन ही मिला था और फिर आचार संहिता लग गई और अब ऐसा ही कुछ हमारे साथ इन लोकसभा चुनाव के समय होने वाला है क्योकि मार्च पहले या दूसरे सप्ताह में आचार संहिता लग जायेगी और फिर पिछली बार कि तरह हम  सिर्फ हाँथ मलते रेह जायेंगे। इसलिए मेरे भाइयों उठो जागो और अपने दूसरे संविदा भाइयों को भी जगाओ और सारे काम बंद करो सिर्फ अपने हक़ के लिए अनशन करो, आंदोलन करो, जबतक कि सरकार अपनी जायज मांगे पूरी न करदे और दिखा दो सरकार को कि हम नहीं होंगे तो क्या होगा और यह सब आचार संहिता लगने के पहले ही करना होगा और वो भी अपनी एकता और समर्पण के बलबूते।

मेरे भाइयों आपने वो कहावत तो सुनी ही होगी कि............. इन्तजार करने वाले को सिर्फ उतना ही नसीब होता है जितना कोशिश करने वाले अपने पीछे छोड़ जाते है……
तो भाइयों अब हमारा इन्तजार करने का समय ख़त्म हुआ और कोशिश करने का समय शुरू।

आपका ही
अमित कुमार
धन्यवाद

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