चुनाव खर्च की सीमा: बेईमानी का पहला दस्तावेज़

राकेश दुबे@प्रतिदिन। लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए ७० लाख रूपये तक खर्च करने की इजाजत मिलने वाली है| कई लोग तो विधानसभा चुनाव में इससे ज्यादा खर्च कर डालते हैं| कुछ चतुर सुजान लोग यहाँ-वहां से खर्च कराते हैं और इस बात का तमगा भी ले लेते हैं, उनने तयशुदा रकम से भी कम खर्च में चुनाव लड़ा है| सत्य इसके विपरीत होता है|

क्या आप मानेगे?  छत्तीसगढ़ जहां एक विधानसभा सीट पर चुनाव-खर्च की सीमा सोलह लाख रुपए थी, वहां ज्यादातर उम्मीदवारों ने औसतन ८,४६,९३६ रुपए यानी ५३  प्रतिशत खर्च किया। जबकि दिल्ली में जहां १४ लाख रुपए की सीमा थी, वहां औसत खर्च ७,१६,७४४ रुपए यानी ५१ प्रतिशत ही हुआ। इन पांचों राज्यों में खर्च का सबसे कम औसत ४६ प्रतिशत राजस्थान में रहा और उससे थोड़ा ज्यादा ३८ प्रतिशत मध्यप्रदेश का था। जबकि मिजोरम में, जहां सिर्फ ८  लाख की सीमा थी, ५५  प्रतिशत खर्च हुआ।

अगर हम मुख्यमंत्री बनने वाले राजनेताओं के चुनावी खर्च पर निगाह डालें तो सर्वाधिक खर्च ६६  प्रतिशत वसुंधरा राजे ने और सबसे कम खर्च केजरीवाल ने २९ प्रतिशत किया। केजरीवाल का दावा है कि उन्होंने अपना चुनाव महज ३.९९  लाख रुपए में लड़ा। शिवराज सिंह चौहान ने बुधनी में आयोग की सीमा का ६३  प्रतिशत और विदिशा में ६१ प्रतिशत व्यय किया। दो स्थानों से चुनाव लड़ने और फिर एक स्थान को छोड़ने वाले से, उस स्थान पर चुनाव में हुए शासकीय खर्च की वसूली बाबत प्रावधान होना चाहिए|

ऐसा अनुमान है किआम चुनाव लड़ने जा रहे उम्मीदवारों को चुनाव के दौरान ७०  लाख रुपये खर्च करने की इजाजत मिल सकती है| चुनाव आयोग ने कानून मंत्रालय को लोकसभा और विधानसभा चुनाव में उम्मीदवारों की खर्च सीमा बढ़ाने संबंधी सिफारिश की है| इस सिफारिश को मंजूर करना औपचारिकता भर माना जा रहा है| चुनाव आयोग ने विधानसभा चुनाव में खर्च की सीमा १६  से बढ़ा कर२८ लाख करने की भी सिफारिश की है| आयोग ने फरवरी, 2011 में लोकसभा चुनाव में खर्च की सीमा 25 लाख से 40 लाख रुपये कर दी थी| अभी बड़े राज्यों के लिए खर्च की सीमा ४० लाख है, जबकि गोवा और लक्षद्वीप जैसे छोटे राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों के लिए २२  और १६ लाख है| राज्यों में यह सीमा फिलहाल ८ से १६ लाख रुपये के बीच है|

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