जानिए किस तरह के लोग बनाते हैं अपवित्र रिश्ते

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ज्योतिष ज्ञान का अथाह सागर है जिसमें जाने पर थाह नहीं मिलती. गुरूजी कृष्णामूर्ति जी ने ज्योतिष को नयी दिशा दी और उनके सिद्धांतों का अनुसरण करने वाले लोगों ने उसे नयी ऊँचाइयों पर पहुँचाया. और यह प्रयास सतत जारी है. मनुष्य के जीवन में कई बार ऐसे मोड़ आते हैं जहाँ उसे नैतिक और अनैतिक में से एक का वरन करना होता है और इस कलयुग में मनुष्य की लिप्सा और तृष्णा का कोई अंत नहीं है चाहे वह स्त्री हो या पुरुष.

आज के समय में किसी को अच्छे बुरे की परवाह नहीं है और सभी लोग अंधों की तरह अपने स्वार्थों की पूर्ती करने में लगे हुए हैं. हम रोज़ ही अखबारों में पढ़ते रहते हैं की फलां स्त्री का अनैतिक यौन समबन्धों के कारण क़त्ल हो गया, फलां के साथ वैसा हो गया.

आजकल स्वाप्पिंग का चलन भी बहुत हो चुका है और हमारे जाने बिना यह बढ़ता ही जा रहा है. कॉलसेंटर कल्चर ने भी स्त्री पुरुष के विवाह पूर्व और विवाहेतर समबन्धों को बढाने में बहुत योगदान दिया है. इन्हीं सब कारणों के चलते विवाह नाम की क्रिया और परिवार नाम का संस्थान बहुत अन्धकार में जा चूका है. यहाँ तक की बड़े परिवारों में रक्त सम्बंधोयों के मध्य ही यौन सम्बन्ध स्थापित हो जाते हैं और किसी को पता नहीं चलता. जब तक पता चलता है तब तक देर हो चुकी होती है.

पंचम भाव और पंचम का उपनक्ष्त्र स्वामी विवाह पूर्व प्रेम सम्बन्ध, शारीरिक सम्बन्ध आदि के होते है अन्य बातों के अलावा, शुक्र काम का मुख्य करक गृह है और रोमांस प्रेम आदि पर इसका अधिपत्य है. मंगल व्यक्ति में पाशविकता और तीव्र कामना भर देता है और शनि गुप्त रास्तों से कामाग्नि की पूर्ती करने को प्रेरित करता है.

 “Astrology and Human Sex life” पुस्तक में  Robson ने लिखा है : यदि शुक्र पर मंगल की द्रष्टि हो , दोनों गृह एक दुसरे की राशियों में हो तो व्यक्ति का अपनी बहिन या भाई या रक्त सम्बन्धियों से यौन सम्बन्ध स्थापित होता है. और साथ ही यदि शुक्र के साथ चन्द्रमा हो – पुरुष की कुंडली में , तो वह अपनी बहिन या अन्य निकट सम्बन्धियों से यौन सम्बन्ध स्थापित करता है. यदि वही शुक्र गुरु के साथ हो स्त्री की कुंडली में तो वह अपने भाई या अन्य निकट सम्बन्धियों से सम्बन्ध स्थापित करती है.

शुक्र पर शनि की द्रष्टि अथवा शनि शुक्र के मध्य नक्षत्र परिवर्तन हो तो वह सम्बन्धियों से यौन सम्बन्ध दर्शाता है.स्त्री की कुंडली में यह पुत्र अथवा दामाद से सम्बन्ध दर्शाता है और यदि सूर्य की जगह चन्द्र हो और शुक्र मंगल सूर्य के पहले हों तो यह पुरुष की कुंडली में पुत्री अथवा बहु और स्त्री की कुंडली में पिता, चाचा अथवा अन्य सम्बन्धियों से यौन सम्बन्ध प्रदर्शित करता है .

एक सुशील स्त्री के बारे में गुरूजी श्री कृष्णामूर्ति जी ने कहा है की यदि सप्तम भाव का उपनक्ष्त्र स्वामी शुक्र , शनि अथवा मंगल न हो और वह शनि शुक्र मंगल के नक्षत्र में न विराजमान हो तो वह स्त्री पूर्ण चरित्रवान होगी.यदि उसका लग्न लाभेश के नक्षत्र मैं हो और उसपर गुरु की द्रष्टि हो तो वह निश्चित ही पूर्ण रूप से संयमित होगी.

कुंडली का अष्टम भाव अन्य बातों के अलावा यौन संबंधों और क्रिया से सम्बन्ध रखता है.
यदि किसी व्यक्ति का १,५,११ भाव का सम्बन्ध मंगल शुक्र शनि से हो , वह स्वामित्व भी हो सकता है और राशी नक्षत्र और उपनक्ष्त्र के रूप में भी हो सकता है और मंगल शुक्र १ और ११ के कार्येष गृह हो सकते हैं जिन पर शनि की द्रष्टि पड़ रही हो तब निश्चित ही व्यक्ति के अन्दर , चाहे स्त्री हो या पुरुष , उन्मुक्तता की भावना रहेगी और दशा अंतर आने पर वह इन कृत्यों में लिप्त होकर ही रहेगा.

स्त्री की कुंडली
22-8-1962, doha, qatar.
यह एक अत्यधिक सुंदर स्त्री की कुंडली है जिसको १९ वर्ष में ही क़तर एयरलाइन्स में होस्टेस की नौकरी मिल गयी थी. एक यात्री को वह बहुत पसंद आ गयी और उसने इस महिला से शादी कर ली. वह व्यक्ति करोडपति है. बहुत साल की शादी के बाद दोनों का तलाक हो गया , इस स्त्री के एक २१ वर्षीय लड़के से अनैतिक सम्बन्ध था जिसके कारण उसने अपने पति को छोड़ दिया . वह लड़का उसके पुत्र का सहपाठी था. जब उस लड़के का मतलब निकल गया तो उसने इस स्त्री को छोड़ दिया. इस स्त्री के अनगिनत लोगों से सम्बन्ध रहे और इसने कभी भी उसको अनैतिक नहीं समझा. मैंने जब इसका हाथ देखा था तो मैंने इसको बता दिया था की इसका किसी बहुत मक आयु के पुरुष से प्रेम सम्बन्ध है और इसका तलाक होने वाला है . २००१ के बात है. यह अब बॉम्बे में किसी धनवान व्यक्ति के साथ गुजर बसर कर रही है.

प्रथम भाव शुक्र के नक्षत्र और शनि के उपनक्ष्त्र में है ,पंचम भाव भी शुक्र के नक्षत्र और शनि के उपनक्ष्त्र मैं है ,११वें भाव का उपनक्ष्त्र स्वामी शनि है. शुक्र पर मंगल की द्रष्टि है.यह अत्यधिक मदिरा पान करती थी और अन्य नशों की भी इसको लत थी .

22-10-1968, पुरुष , 77E43-22N45
शुक्र स्वयं ही लग्न में है और मंगल से द्रष्ट है .शुक्र मंगल की राशि में है. ११वें भाव का उपनक्ष्त्र स्वामी शुक्र है ,पंचम भाव शनि के नक्षत्र और शुक्र के उपनक्ष्त्र में है ,अष्टम का उप्नाक्ष्त्र स्वामी लाभ में है , गुरु भी शनि के उपनक्ष्त्र में है. इस व्यक्ति को याद भी नहीं है की इसका कितनी महिलाओं से यौन सम्बन्ध रह चूका है.
 
पुरुष ,19-3-1973, 83E24, 21N54.
शनि लग्न में है और शुक्र पर द्रष्टि है , पंचम भाव शुक्र के नक्षत्र और मंगल के उपनक्ष्त्र में है. ११वे भाव का उपनक्ष्त्र स्वामी सूर्य है जो शनि के नक्षत्र और उपनक्ष्त्र में है. सूर्य बुध शुक्र ११वे भाव में हैं. ये समाचार मीडिया के एक बहुत बड़े संस्थान में बहुत बड़े पद पर विराजमान है.इसके जीवन में कई इस प्रकार के सम्बन्ध रहे हैं.

20-3-1955,13:42:40.
शनि की मंगल और लग्न पर द्रष्टि है , शुक्र सप्तम में चन्द्र के साथ है ,शनि शुक्र के उपनक्ष्त्र में है, मंगल शनि के नक्षत्र और शुक्र के उपनक्ष्त्र में है. इस जातक के कई देशी और विदेशी महिलाओं से शारीरिक सम्बन्ध रहे हैं. यह स्वयं बहुत ख्यति प्राप्त विद्वान् ज्योतिषी है.

 कुण्डलियाँ बहुत दी जा सकती हैं मगर मुझे उम्मीद है की पाठक समझ गए होंगे की किन ग्रहों की युति द्रष्टि नक्षत्र आदि के कारण व्यक्ति इन सब कार्यों की ओर अग्रसर हो जाता है. दशा भुक्ति और अन्तर का इसमें सबसे बड़ा योगदान होता है क्योंकि ऐसे योग हो तो बहुत लोगों की कुंडली में सकते हैं मगर फलीभूत तभी होते हैं जब सही दशा मिल जाती है. गुरूजी कृष्णामूर्ति जी की पद्धति अचूक और सटीक है इसमें कोई दो मत नहीं है.



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