देखते जाइए, 47 लाख मीट्रिक टन चना क्या क्या फोड़ देगा

भोपाल। वो कहावत है ना कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता, परंतु यदि चना 47 लाख मीट्रिक टन हो तो ? अनुमान लगाइए वो क्या क्या नहीं फोड़ सकता। लोकसभा चुनाव आ रहे हैं, यदि एहतियात नहीं बरता तो वो बीजेपी को भी फोड़ देगा।

ऐसा लग रहा है कि इस बार 30 लाख किसानों की चने की कमाई केंद्र और राज्य सरकार के पाटों के बीच घुन की तरह पिसने वाली है। यह स्थिति इसलिए बनी है कि इस साल मध्यप्रदेश में चने की बंपर फसल होने जा रही है।

करीब 47 लाख मीट्रिक टन। जाहिर है कि ऐसे में किसानों को खुश होना चाहिए लेकिन वहां तो चिंता के बादल मंडराने लगे हैं। वजह साफ है, आखिर उनका बंपर चना खरीदेगा कौन।

न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने वाले केंद्र ने चने खरीदने से हाथ पीछे खींच रखे हैं। वजह है चने के न्यूनतम समर्थन मूल्य का उसके बाजार मूल्य से ज्यादा होना। वहीं मध्यप्रदेश सरकार 3100 रुपए प्रति क्विंटल के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर इसे खरीदने की स्थिति में नहीं है। इसके लिए उसे 6000 करोड़ रुपए अतिरिक्त जुटाने होंगे। यही वजह है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने चने की खरीद के लिए केंद्र पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है।

पिछले एक दशक से राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन महासंघ (नेफेड) चने की फसल का उपार्जन नहीं कर रहा है। इस बार भी नेफेड चना खरीदी के संकेत नहीं दिए हैं। इसके पीछे प्रमुख कारण चने का समर्थन मूल्य बना है। आमतौर पर फसल की कीमत न्यूनतम समर्थन मूल्य से अधिक होती है, ताकि किसानों का नुकसान न हो। इस बार स्थिति अलग है।

गेहूं-चावल खरीदती है प्रदेश सरकार
मुख्यमंत्री चौहान ने दैनिक भास्कर से चर्चा में कहा कि प्रदेश सरकार गेहूं और चावल का उपार्जन करती है, जबकि दलहन की फसलों का उपार्जन करने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर वे प्रधानमंत्री से भी मुलाकात करेंगे। जब सीएम के ध्यान में लाया गया कि पिछले कई वर्षों से केंद्र ने चने का उपार्जन नहीं किया तो उन्होंने कहा कि इस बार परिस्थितियां भिन्न हैं और किसानों को उनकी फसल की सही कीमत दिलाने के लिए केंद्र को जल्द ही इस बारे में कदम उठाने चाहिए।

किसानों को होगा नुकसान
आमतौर पर इस फसल की कीमत न्यूनतम समर्थन मूल्य से अधिक ही होती है। इसीलिए किसानों को बाजार से अपनी फसल की अच्छी कीमत मिल जाती है, परंतु इस बार स्थिति अलग है। बंपर पैदावार के बीच चने का बाजार मूल्य 2300 से 2500 रुपये प्रति क्विंटल तक आ गया है, जबकि न्यूनतम समर्थन मूल्य 3100 रुपए प्रति क्विंटल है। यदि केंद्र सरकार ने किसानों की फसल नहीं उठाई तो चने की कीमतें कम होने के कारण किसानों को भारी नुकसान होने की संभावना है।

जनवरी में नेफेड को बता दिया था सूत्रों के अनुसार राज्य सरकार ने चने की बंपर पैदावार और उपार्जन के संबंध में नेफेड को जनवरी के प्रथम सप्ताह में ही अवगत करा दिया था। चूंकि नेफेड की तरफ से कोई पहल नहीं हुई तो मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार से इस संबंध में पत्र लिखकर नेफेड को मप्र में चने की खरीद के लिए तैयारी करने के निर्देश देने का अनुरोध किया है।

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