राकेश दुबे/प्रतिदिन। विवाद के साथ “आप” का नाता स्थाई होता जा रहा है | अब आप के सलाहकार प्रशांत भूषण ने काश्मीर में जनमत संग्रह की बात कहकर पूरी “आप पार्टी अवधारणा” पर ही सवालिया निशान लगा दिया है |
2011 में भी प्रशांत भूषण कुछ ऐसा ही कह चुके हैं और अब अरविन्द केजरीवाल ने काश्मीर मुद्दे पर यह कहकर प्रशांत भूषण का बचाव किया है कि “यह उनकी निजी राय है” केजरीवाल का यह बचाव सही नहीं है |
आप के अन्य सदस्यों के बारे में सोशल मीडिया पर बहुत सारी सामग्री बिखरी पड़ी है और उसके अर्थ पृथकतावादी ही निकलते हैं |
डर है कि राजनीति की विकल्पहीनता के कारण उत्पन्न हुए इस एक नये राजनीतिक उपकरण के साथ इस समय दोहरा संकट है | एक वे जो पहले से जुड़े है और दुसरे वे जो अब जुड़ रहे हैं | प्रशांत भूषण सरीखे कुछ लोग जो पहले से जुड़े है अव वे करोड़ रुपया देकर आप की राय को प्रभावित कर रहे हैं और दूसरे वे सेवानिवृत अधिकारी जो अपने सेवा काल में कभी भ्रष्टाचार के खिलाफ नहीं बोले और अब आप से ईमानदार होने का प्रमाण्पत्र ले रहे हैं | ऐसे ही लोगों ने राजनीतिक दलों के चेहरों को विद्रूप किया है | “आप” बचे तो जाने |
