राकेश दुबे@प्रतिदिन। भारत के महामहिम राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने ६५ वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर संकेतों में भारत के वर्तमान और भावी शासकों नसीहत दी है और जनता और सरकार के बीच रिश्ते कैसे बने और कायम रहे इसकी भी हिदायत दी है | जो समझेंगे वे देश का हित करेंगे और जो न समझेंगे उनसे किसी प्रकार की अपेक्षा व्यर्थ है | देश में इन दिनों जो चल रहा है है उससे महामहिम ही नहीं देश का हर समझदार आदमी दुखी है |
जैसे कि श्री प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि लोकलुभावन अराजकता शासन का विकल्प नहीं हो सकती. नेताओं को जनता से वही वादे करने चाहिए,जो वे पूरे कर सकें | वैसे तो यह सीधे दिल्ली वर्तमान सरकार पर कटाक्ष था , लेकिन यह सभी के लिए एक सन्देश है |सबके घोषित और अघोषित घोषणा पत्र होते है और वे कभी-कभी अराजकता की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं |
उन्होंने चेतावनी दी कि झूठे वादों की परिणिति मोहभंग होता है और जनता में रोष पैदा होता है और सत्ताधारी दल को उसका सामना करना होता है | अनुभव की बात है यह तो कांग्रेस, भाजपा और अन्य कई दल इसके प्रत्यक्ष प्रमाण है |राजनीतिक दल इसके बावजूद भी वादे करने के आदी है | महामहिम ने देश की सामाजिक और आर्थिक तरक्की की वर्तमान रफ्तार को भी धीमी बताया , उन्होंने स्पष्ट कहा है कि सामाजिक आर्थिक तरक्की की रफ्तार घोंघे की तरह नहीं घोड़े की रफ्तार की तरह होना चाहिए | बढती आबादी और वर्तमान रफ्तार के लिया यह एक कड़ा व्यंग्य है |
उन्होंने कहा है कि"अगले चुनाव कौन जीतता है, यह कम महत्वपूर्ण है. लेकिन भारत की एकता और अखंडता के प्रति ज़्यादा जवाबदेह कौन है यह ज़्यादा महत्वपूर्ण है."श्री मुखर्जी ने समाज में फैले भ्रष्टाचार पर भी चिंता जताई. उन्होंने कहा, "भ्रष्टाचार एक कैंसर है जो लोकतंत्र को धीरे-धीरे नष्ट करता है और देश की बुनियाद कमज़ोर करता है. लोग गुस्से में हैं क्योंकि वे भ्रष्टाचार देख रहे हैं| अगर सरकारें ये कमियां दूर नहीं करतीं तो मतदाता सरकारों को हटा देंगे|"
सरकारों में बैठे और सरकार बनाने वालों को प्रणब दा ने मन्त्र दे दिया,कौन कितना लाभ लेता है,समय बतायेगा |
