राकेश दुबे/प्रतिदिन। मध्यप्रदेश सरकार को अपनी दारू नीति का नया कदम दो दिन में वापिस लेना पड़ा| बड़ी मासूमियत के साथ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने कहा की कुछ निर्णय “दिमाग कहता है, करो तो कर देते हैं, दिल कहता है पुनर्विचार करो तो कर लेते है|”
मुख्यमंत्री जब इस वाक्य को उच्चारित कर रहे थे| देशी के ठेके पर विदेशी शराब बेचने के विरोधी मंत्री गोपाल भार्गव उनके पीछे खड़े थे | सत्य तो यह है की कोई भी शराब विदेशी नहीं है, बनाने के तरीकों के कारण एक देशी तो दूसरी भारत में निर्मित विदेशी मदिरा | लायसेंस भी इसी तरह जारी होते हैं | विदेशी कही जानेवाली मदिरा का लायसेंस “इंडियन मेड फारेन लिकर” के नाम से जारी होता है |
अब बात दिल और दिमाग से सोचने की | दोनों दारू एक साथ एक जगह बिकवाने के पीछे मूल दिमाग वर्तमान गृह मंत्री बाबूलाल गौर का था, यूँ तो अब वे भी विरोध में है | पहले यह सुविधाजनक प्रस्ताव उनकी सहमति से ही बना था |
भारतीय जनता पार्टी का विश्वास महात्मा गाँधी में कितना है, सर्वज्ञात है और नरेंद्र मोदी तो अब उसके आदर्श पुरुष है | गुजरात में शराबबंदी है | क्या मध्यप्रदेश सरकार और विशेषकर इस विषय में रूचि रखने वाले मंत्रियों को पूर्ण नशाबन्दी की बात नहीं सोचना चाहिए | राजस्व जुटाने के नाम पर मध्यप्रदेश सरकार यूँ भी कुछ ज्यादा ज्यादती प्रदेश के नागरिकों से बिजली, पेट्रोलियम पदार्थों पर देश में सबसे ज्यादा कर लगाकर कर ही रही है | इससे सरकार का खजाना कितना भरता है? राजस्व एकत्रीकरण और भी प्रयोग हैं दारू के सिवाय | इस पर दिल और दिमाग दोनों से सोचने की जरूरत है |
मध्यप्रदेश सरकार के उन मंत्रियों को आगे आना चाहिए, जो महज़ राजनीतिक कारणों से स्कूल में अंडा परोसने के विरोधी है | अंडा यदि तामसिक है तो दारू तो घोर तामसिक है | यह अलग बात है की कुछ मंत्रियों का पैतृक व्यवसाय ही मयखाना संचालन का रहा है, अब बदले हो तो समाज को भी बदलो | दिल और दिमाग दोनों से सोचो दारू न तो नागरिकों के हित में है और न सरकार के |