संपत्तिकर घोटाले में चपरासी का शपथपत्र और सुलगते सवाल

भोपाल। क्या यह संभव है कि, वर्ष 2010 से करोड़ों का संपत्तिकर एवं अन्य करों का घोटाला सिर्फ एक चपरासी अकेले करता रहा? इन चार साल में वार्ड की जिम्मेदारी संभालने वाले वार्ड प्रभारियों को इतनी बड़ी गड़बड़ी की भनक तक नहीं लगी।

हर दिन आय-व्यय का हिसाब लेने वाले जोनल अधिकारी और आवासीय संपरीक्षा के लिए जिम्मेदार आडीटर को नाममात्र की भी गड़बड़ी का पता तक नहीं चला। बिना फाइल बने और बिना सक्षम आदेश के ही आनन-फानन में नल कनेक्शन करने वाले जल कार्य विभाग के इंजीनियर और अन्य कर्मचारियों को भी घोटाले से कुछ लेना देना नहीं है। वार्ड-41 में शुरुआती जांच में ही 42 लाख रुपए का संपत्ति कर एवं अन्य घोटाला सामने आने के बाद हडकंप मच गया है। वर्ष 2010 से घोटाले की जांच शुरू होने और नीचे से ऊपर तक भ्रष्टाचार में अधिकारियों के शामिल होने के तथ्य सामने आने की शुरुआत होते ही अचानक ही महीनेभर से गायब चपरासी श्याम सिंह सोमवार को नमूदार हो गया और शपथ पत्र देकर चार साल में करोड़ों रुपए के घोटाले को अपने सिर ले लिया। आयुक्त विशेष गढ़पाले के सामने हाजिर होकर शपथ पत्र देने वाले श्याम सिंह के बयान लिए जाना अभी शेष हैं। यानि श्याम सिंह को फिलहाल तो एफआईआर दर्ज होकर जेल जाने का दूर-दूर तक खतरा नहीं है। इसी के साथ इस घोटाले को विभागीय जांच में ही दफन करने की तैयारी भी शुरू हो गई है।

शपथ पत्र भी सवालों के घेरे में

चपरासी श्याम सिंह का शपथ पत्र वर्ष 2010 से संपत्ति कर घोटाले की पूरी जिम्मेदार अपने ऊपर लेने के संबंध में है। हालांकि, यह शपथ पत्र बनाने के बारे में उसको किसने हिदायत दी, किसने ड्राμट तैयार किया, कहां टाइप किया गया और शपथ पत्र देने से पहले

महीनेभर से कहां गायब था? चार साल से करोड़ों रुपए हड़पने वाले ने रुपए कहां ठिकाने लगाए? अचानक ही गायब चपरासी कैसे मय शपथ पत्र के कमिश्नर के सामने पेश हो गया? शपथ पत्र में इसका भी स्पष्टीकरण नहीं है कि, चुनावी आचार संहिता के बाद भी बिना फाइल बने पीएचई के इंजीनियर मय अमले के आनन- फानन में कनेक्शन कैसे कर आए? चार साल तक वार्ड प्रभारी अवध नारायण मकोरिया और दीपक भालेराव के हस्ताक्षर वाली रसीद बुक कैसे जारी होती रही और फर्जीवाड़ा होने के बाद भी लाखों रुपए लेजर और बैंक खातों में गड़बड़ी करके कैसे जमा करवाए जाते रहे। जोन अधिकारी और आॅडीटर भी चार साल तक सब कुछ कैसे और क्यों सही ठहराते रहे?

जांच के लिए बनी कमेटी से अलग हुए उपायुक्त तिवारी

संपत्ति कर घोटाले की जांच के लिए बनाई गए दो सदस्यीय दल के एक सदस्य उपायुक्त श्रीराम तिवारी ने अपने आप को जांच से अलग कर लिया है। इस बारे में तिवारी ने पत्र भी निगमायुक्त को लिखा है, जिसमें जल्द ही सेवानिवृत्ति का हवाला दिया है। ऐसे में अब जांच पूरी करने का जिम्मा राजस्व अधिकारी प्रदीप वर्मा पर आ गया है। हालांकि, सूत्रों का कुछ और ही कहना है कि, हड़पी गई रकम करोड़ों में है और ईमानदारी से की गई जांच में कई अधिकारियों का फंसना तय है। चार साल के दौरान पदस्थ रहने वालों के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर हैं, ऐसे में सिर्फ एक चपरासी के शपथ पत्र की आड़ में अधिकारियों का बच निकलना मुमकिन नहीं है।

कईयों को क्लीन चिट देने की चर्चाएं

संपत्ति कर घोटाले के सामने आने के बाद एफआईआर दर्ज कराने के बजाय हो रही जांच भी सवालों के घेरे में है। दस्तावेजों की छानबीन और हड़पी गई राशि की जब्ती के लिए प्रशिक्षित और सक्षम पुलिस ही है। 2010 से संपत्तिकर और अन्य करों की गड़बड़ी के लिए वार्ड प्रभारी रहे अवध नारायण मकोरिया, दीपक भालेराव, जोन अधिकारी मतीन सिद्दीकी, कैलाश मैना और सक्सेना के साथ ही दो आॅडीटर और जल कार्य विभाग के सहायक यंत्री, उप यंत्री एवं सुपरवाइजर आदि सीधे जिम्मेदार माने जा रहे हैं, जोकि या तो घोटाले में शामिल हैं या आपराधिक लापरवाही के लिए जिम्मेदार ठहराए जा सकते हैं। इसके बाद भी चपरासी के शपथ पत्र के आधार पर बाकी को क्लीन चिट दिए जाने की सरगर्म चर्चाएं हैं।

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