मध्यप्रदेश में 12 पुलिसवालों ने की आत्महत्या, साल में सबसे ज्यादा मौतें हार्टअटैक से

भोपाल। दिल की बीमारी के कारण बीते तीन माह में अपनी जान गंवा चुके पुलिस के आधा दर्जन जवानों की मौत ने एक बार फिर से पुलिस के मेडिकल चैकअप पर सवाल खडे कर दिए हैं। काम की अधिकता के कारण पुलिसकर्मी लगातार बीमारियों के शिकार हो रहे हैं।

कभी-कभार शिविर में चैकअप कराने के अलावा इन्हें अन्य कोई चिकित्सा मुहैया नहीं कराई जा रही है। इसी का नतीजा है कि ज्यादातर पुलिसकर्मियों का शरीर समय के साथ तोंदू, बेडोल हो रहा है। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो की 2012 की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि 2002 में पुलिसकर्मियों की स्वाभाविक मौत का आंकड़ा जहां 1779 था, जबकि आत्महत्या के 111 मामले सामने आए थे। वहीं यह आंकड़ा 2012 के बाद से लगातार बढ़ गया है।

जहां पूरे देश में पुलिसकर्मियों की 2724 स्वाभाविक मौतें हुर्इं और 196 आत्म हत्याएं हुर्इं। वहीं अकेले मप्र में 12 आत्म हत्याएं, 133 स्वाभाविक मौतें रिकार्ड में दर्ज की गर्इं थी। भोपाल जिले के तीन माह पर गौर करें, तो यहां आधा दर्जन पुलिसकर्मी अपनी जान गंवा चुके हैं। इनमें एक अखिल भारतीय सेवा का युवा अधिकारी भी शामिल है।

आदेश कागजों में रह गया
तोंदू पुलिस कर्मियों को लेकर अगस्त 2010 को भोपाल एसपी योगेश चौधरी ने जिले के पुलिसकर्मियों को फिट रहने के निर्देश दिए थे अन्यथा कड़ी कार्रवाई करने के लिए कहा गया था। लेकिन उनके तबादले के बाद

उनका आदेश कागजों में रह गया। इसी तरह मानव अधिकार आयोग ने अनफिट पुलिस अधिकारियों को फील्ड से हटाने की सलाह दी थी। पुलिस कर्मियों के परिजनों ने काम की अधिकता को लेकर मानव अधिकार आयोग से गुहार लगाई थी।

विभागीय काम की अधिकता
जहां पुलिस के काम की अधिकता के कारण विभागीय जटिलता बढ़ गई है, वहीं पुलिस जवानों को लेकर उनके आला-अधिकारियों के पास भी फुर्सत नहीं है। आए दिन आपराधिक घटनाओं को लेकर परेशान रहना, आए दिन वीआईपी ड्यूटी में व्यस्तता और लॉ एंड आर्डर की स्थितियों से निपटने के लिए हरवक्त तैयार रहना होता है, इस कारण खानपान की समय का पता नहीं रहता है। जबकि केंद्रीय पुलिस फोर्स को इन परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ता है। वे सुबह व्यायाम से लेकर ब्रेकफास्ट, लंच सभी समय पर करते हैं।

नहीं झेल पाते तनाव
बढ़ती उम्र के कारण पुलिस कर्मियों का शरीर ज्यादा तनाव नहीं झेल पाता। खासतौर पर 50 वर्ष की आयु के बाद कर्मचारियों पर अपने परिवार की जिम्मेदारियां भी आ जाती हैं। इधर, नौकरी के दौरान राजनीतिक हस्तक्षेप, ड्यूटी का तनाव इतना परेशान कर देता है, कि वे सेहत पर ध्यान नहीं रख पाते हैं।

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