जबलपुर। आज की पीढ़ी को शायद ही यह मालूम हो कि आजाद भारत में राज्यों के पुनर्गठन के लिए बने आयोग ने प्रस्तावित मध्यप्रदेश की राजधानी के लिए सर्वाधिक उपयु क्त पाते हुए जबलपुर का नाम प्रस्तावित किया था-पर एक गहरी सियासती साजिश के तहत निर्ममता से जबलपुर के चयन को नकार कर भोपाल के सिर पर राजधानी का ताज रख दिया गया।
इसमें बड़ी भूमिका पूर्व राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा की थी, जिन्होंने भोपाल के नमक का कर्ज अदा किया और हर तरह से सुपात्र जबलपुर से उसका हक छिन गया। इसके लिए तबके जबलपुर और महाकौशल के राजनीतिक नेतृत्व की गैर वजनदारी भी कारण बनी। किसी नेता में इतना वजन नहीं था कि ताल ठोंक कर इस खुले अन्याय, अपमान और अवहेलना को चुनौती दे सके।
राजनीतिक नेतृत्व की इस प्रभावहीनता का सिलसिला आज भी वैसा ही है। यहां के सियासती नेता भोपाल में काबिज सरकारों के सामने अपने लिए कटोरा लेकर दान और भिक्षा में पद, पदवी की याचना करते रहे और उपकृत होते ही राजदरबारी बनकर धन्य होते रहे। नतीजा यह निकला कि न केवल जबलपुर बल्कि पूरा महाकौशल, विंध्य और बुंदेलखंड भोपाली सल्तनत का दास और उपनिवेश बनकर रह गया। सन् 1956 में राज्य पुनर्गठन आयोग ने भाषा के आधार पर पूरे देश के राज्यों का पुनर्गठन किया और प्रस्तावित नवगठित राज्यों की राजधानियों का भी नामांकन किया था। आयोग की समस्त सिफारिशों में से केवल एक को अस्वीकार किया गया वह थी मध्यप्रदेश की राजधानी जबलपुर को बनाना। एशिया का सबसे बड़ा शिक्षा केन्द्र सन् 1956 से पहले महाकौशल, मध्य भारत बरार (विदर्भ) का हिस्सा था और जबलपुर इस प्रदेश का चहेता।
यह राजधानी नागपुर के बाद दूसरा सबसे बड़ा शहर था। उस वक्त जो संस्थान नागपुर में स्थापित होते थे, उसके समतुल्य जबलपुर को भी नवाजा जाता था। सन् 1960 तक शिक्षण संस्थानों की सं ख्या और पाठ्यक्रमों की विविधता के हिसाब से इसे एशिया का सबसे बड़ा शिक्षा केन्द्र माना गया था। आजादी से पहले जबलपुर के पास जो था वह उसकी भौगोलिक स्थिति के कारण था। एशियाटिक ज्योग्राफिकल सोसायटी के दस्तावेजों में जबलपुर के दक्षिणी द्वार को एशिया का सबसे खूबसूरत प्राकृतिक द्वार बताया गया था। दोनों तरफ रहस्यमयी
सी लगने वाली चट्टानों की घाटी के बीच प्रवेश करते ही एक आध्यात्मिक सी अनुभूति होती थी।
बावन तालाबों के इस शहर को स्वतंत्रता सेनानी और उत्तर प्रदेश की तत्कालीन राज्यपाल सुचिता कृपलानी ने बैतूल के साथ प्रदेश का सबसे शहर कहा था। हाईकोर्ट का झुनझुऩा पकड़ाया पूर्व मुख्यमंत्री स्व. श्यामाचरण शुख्ल उस दौर के जबलपुर के सिविल लाइंस क्षेत्र को मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ का सबसे सुकूनदेह इलाका मानते थे। फिरंगियों ने इसकी पात्रता के अनुकूल यहां रक्षा, दूरसंचार, रेलवे के बड़े-बड़े केन्द्र स्थापित किए थे। मध्य प्रदेश बनते ही
इसे बेदर्दी और बेशर्मी से नजरअंदाज किया जाता रहा। राजधानी के एवज में जबलपुर को हाईकोर्ट का झुनझुना थमाया गया और बाद में इसकी अनेक पीठें स्थापित कर इसके महत्व को कमजोर किया गया। महाकौशल, विंध्य और आधे से अधिक बुंदेलखंड में स्वास्थ्य और चिकित्सा उपलब्ध कराने वाले जबलपुर में की शाखा नहीं खुली। उसे भी भोपाल ने छीन लिया।
उच्च न्यायालय की मुख्यपीठ जबलपुर में है, पर विधि एकेडमी भोपाल चली गई। साठ के दशक तक मध्य प्रदेश की खेलधानी का सम्मान पाने वाले जबलपुर की जगह खेल प्राधिकरण का मुख्य केन्द्र भोपाल में खोला। यह अन्याय गाथा अनंत है। इसकी शुरूआत पक्के तौर पर मध्य प्रदेश के पहले पुनर्गठन से हुई। जबलपुर से राजधानी छीनने या कहें की लूट, डकैती को सही ठहराने के लिए जितने कुतर्क हो सकते थे वे दिए गए।
जबलपुर ने भीख नहीं मांगी थी पुनर्गठित मध्य प्रदेश के मध्य में होने, मालवा और छत्तीसगढ़ से समान दूरी, नर्मदा की अगाध जलराशि, मनचाही जमीन, आबो-हवा, जंगल और वन्य जीवों की शरण स्थली जबलपुर, विंध्याचल और सतपुड़ा के मिलन स्थल पर नर्मदा घाटी में बसा है, लेकिन इसे राजधानी के लिए नाकाबिल और कस्बाई करार दिया
गया। तर्क दिया गया कि भोपाल में नवाबी दौर की तहजीब और इमारतें मौजूद हैं। किसी प्रस्तावित, चयनित, पात्र नगर से राजधानी का हक छीनने के लिए यह तर्क न केवल हास्यास्पद था बल्कि कलेजे में तीर की तरह चुभने वाला भी। राजधानियां तो बनतेबनते आकार लेती हैं। उनकी संरचना, बसाहट, नगर नियोजना, सुव्यवस्थित, सुविचारित और विज्ञान होती है। यही जबलपुर की उम्मीद और उपेक्षा थी।
जबलपुर ने इसकी भीख नहीं मांगी थी। पुनर्गठन आयोग ने ही इसे शत-प्रतिशत पात्र, योग्य और दावेदार पाया था, लेकिन तमाम तर्कसंगत कारणों को कचरे के ढेर में डाल दिया गया। जिस तरह इस ऐतिहासिक नगर के स्वाभिमान और हक को छीना गया, उसका दर्द पीढिय़ों तक यूं ही सालता रहेगा। जबलपुर की जगह भोपाल को उपकृत करके राजधानी बनाया जाना एक अन्याय था। इसके चलते महाकौशल, विंध्य और बुंदेलखंड इतिहास और अतीत के किसी पन्ने पर ठहर गए। इसने जबरदस्त इलाकाई असंतुलन पैदा किया। महाकौशल के गठन और तब तक जबलपुर को उपराजधानी तुल्य दर्जा देकर इसकी नियोजित तर की के लिए भोपाल, इंदौर जैसा आर्थिक पैकेज अगर नहीं दिया गया तो यह अन्याय किसी दिन विस्फोटक हो सकता है।